Balrampur Hospital: कर्मचारी व भवन तैयार, बस MRI मशीन का इंतजार

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लखनऊ: बलरामपुर अस्पताल में बेहतर इलाज के लिए रोज दो हजार से अधिक मरीज ओपीडी में आते हैं और करीब 25 मरीजों को चिकित्सकों के द्वारा हर रोज एमआरआई जांच लिखी जाती है। लेकिन भवन निर्माण हुए तीन साल बीत चुके हैं फिर भी एमआरआई मशीन नहीं लग सकी है। चिकित्सा के लिए मरीज और तीमारदार निजी डायग्नोस्टिक सेंटर से महंगी एमआरआई कराने पर  विवश है।

सरकारी दावों की बात की जाए तो चिकित्सा सुविधा के नाम पर उत्तर प्रदेश सर्वोत्तम प्रदेश है। यूपी के स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक जब सरकारी और निजी अस्पतालों के औचक निरीक्षण पर निकल वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था की जमीनी हकीकत की जानकारी लेते रहते हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर इसका कोई असर देखने को नहीं मिलता है।

तीन साल पहले CM योगी ने किया था MRI भवन का शिलान्यास

ऐसा ही कुछ हाल राजधानी के प्रतिष्ठित सरकारी अस्पताल बलरामपुर अस्पताल का है जो जिले का ही नहीं बल्कि यूपी का सबसे बड़ा सरकारी चिकित्सालय है। फरवरी 2019 में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बलरामपुर के 150वें स्थापना दिवस के अवसर पर एमआरआई भवन का शिलान्यास किया था। इस शिलान्यास के कुछ माह बाद ही एमआरआई भवन का निर्माण भी पूर्ण हो गया। संस्थान में एमआरआई मशीन चलाने के लिए तीन एक्सरे टेक्नीशियन को लोहिया संस्थान में तीन माह की ट्रेनिंग भी दिलाई जा चुकी है। इतना सब हो जाने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की अस्पताल आने वाले मरीजों के प्रति लापरवाही और उदासीनता कम नहीं हो रही।एमआरआई भवन में आज तक मशीन नहीं लग सकी है।

लखनऊ समेत कई जिला अस्पतालों में MRI की सुविधा नहीं

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजधानी लखनऊ समेत आसपास के अन्य जिला अस्पतालों में भी मरीजों को एमआरआई की सुविधा नहीं मिल पा रही है। इस जांच के लिए मरीजों को निजी डॉयग्नोस्टिक सेंटरों का रूख करना पड़ रहा है जहां उनसे मनमाने पैसे वसूले जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के लापरवाही भरे रवैये का खामियाजा मरीज को महंगे इलाज से भरना पड़ रहा है।

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 दस हजार मरीजों को नहीं मिल पा रही MRI की सुविधा

746 बेड सुविधायुक्त प्रदेश का सबसे बड़ा जिला अस्पताल बलरामपुर पिछले तीन साल से एमआरआई मशीन का इंतजार कर रहा है। इसी तरह राजधानी का प्रतिष्ठित श्यामाप्रसाद मुखर्जी जिला चिकित्सालय है इसमें 400 तो लोकबंधु में 318 बेड की सुविधा है। इन तीन अस्पतालों में देखा जाए तो करीब दस हजार मरीज की ओपीडी होती है। तीनों ही जिला अस्पतालों में एमआरआई की जांच की सुविधा नहीं है। यहां आने वाले गंभीर मरीजों को लोहिया या केजीएमयू के लिए रिफर कर दिया जाता है जहां पहले से ही मरीजों का बहुत दबाव रहता है।

केजीएमयू और लोहिया में एमआरआई की प्रतीक्षा सूची लगातार लम्बी होती जा रही है। इससे मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है। सबसे अधिक वे मरीज प्रभावित गरीब है। जो महंगे निजी संस्थानों में पैसों की कमी के चलते एमआरआई कराने का रूख नहीं कर पाते और इलाज के बिना ही महीनों बिता देते हैं।

बलरामपुर अस्पताल, लोकबंधु और सिविल हॉस्पिटल में प्रतिदिन करीब सौ से अधिक मरीजों को एमआरआई की जांच के लिए चिकित्सक सलाह देते हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की लापरवाही की वजह से एमआरआई की मशीन अस्पतालों में नहीं लग पा रही है।

MRI के नाम पर मनमाने पैसे वसूल रहे निजी डॉग्नोस्टिक सेंटर

लोहिया या केजीएमयू में यही जांच 3500 रूपये में हो जाती है लेकिन यहां पर मरीजों के दबाव को देखते हुए नम्बर आने में ही हफ्तों लग जाते हैं। वहीं दूसरी ओर निजी डायग्नास्टिक सेंटरों की बात की जाए तो यह सेंटर एमआरआई रिपोर्ट के 5200 से 7000 हजार तक पैसे वसूल रही हैं। अगर बलरामपुर में एमआरआई मशीन लग जाएगी तो प्रतिदिन करीब सौ से ज्यादा मरीजों को राहत मिलेगी।

लोहिया व KGMU में दो से तीन माह का इंतजार

लोहिया में भर्ती मरीजों का एमआरआई तो तुरंत हो जाता है लेकिन ओपीडी के मरीजों को एमआरआई करवाने की तारीख करीब दो से तीन माह बाद की मिलती है। यह हाल तब है जब लोहिया में दो एमआरआई मशीन लगी हैं और दोनों में ही जांच की जा रही है। ऐसा माना जाता है कि अगर एमआरआई की जांच 24 घंटे हो तो प्रतीक्षा सूची में तेजी से गिरावट देखने को मिल सकती है। केजीएमयू की हालत और ज्यादा खराब है यहां पर एक मशीन पर ट्रामा सेंटर समेत सभी विभागों के मरीजों का दबाव रहता है। यहां पर भी जांच की प्रतीक्षा सूची तीन माह लम्बी है।

पिछले साल 9 जिलों के लिए मिला था बजट

एमआरआई की जांच के लिए सिर्फ लखनऊ ही नहीं कई अन्य जनपद भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले साल बजट में नौ जिलों में एमआरआई मशीन लगवाने के लिए धन आवंटित हुआ था। इन मशीनों की खरीदारी के लिए मेडिकल कार्पोरेशन लिमिटेड को निर्देश भी दिए गए थे। जिन जिलों के लिए एमआरआई मशीन की खरीद होनी थी उनमें लखनऊ, गाजियाबाद, मेरठ, नोएडा, सहारनपुर, गोंडा, मुरादाबाद, आजमगढ़, बांदा व सहारनपुर शामिल था। इसके लिए 13.55 करोड़ रूपये प्रति एमआरआई मशीन के हिसाब से नौ मशीन के लिए करीब 122 करोड़ रूपये की मंजूरी मिली थी। एक साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी एक भी एमआरआई मशीन की खरीद नहीं हो सकी है।

रिपोर्ट- पवन सिंह चौहान

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