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धुआं-धुआं होती जिंदगी के ऐशट्रे बनने के खतरे!

विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर हर साल सवाल उठते हैं। …और उठते रहेंगे। धुआं-धुआं होती जिंदगी, जलती-बुझती सिगरेट और ऐशट्रे की राख से उठती बदबू सांसों में जहर घोलने के लिए काफी है। हवा का जहरीला होना कतरा-कतरा मौत की तरफ खुद को धकेलना होता है। सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू और खैनी की तलब न जाने कितने लोगों को मौत के पंजों में जकड़ चुकी है। बावजूद इसके लोग अपनी ही नहीं, घर-परिवार की जिंदगी को दोजख बना रहे हैं। ऐसी कहानियां त्रासद हैं। अपने कविता संग्रह 'जिंदगी, सिगरेट और ऐशट्रे' की प्रस्तावना में कवि निखिल कपूर लिखते हैं-' जिंदगी एक छोटे मासूम बच्चे की तरह होती है, पल में किलकारियां पल में आंसू । सही गलत से परे , सुख और दुख की परिभाषाओं से दूर। फिर धीरे धीरे हम जिंदगी को परिभाषाओं , नियमों और संस्कारों की बेड़ियों में जकड़ते जाते हैं।' हालांकि निखिल ने यह सब अपनी कविताओं के संदर्भ में कहा है। मगर वह यह संदेश तो देते ही हैं कि हम सही गलत से परे अपनी आदतों को अपनी तरह परिभाषित कर जिंदगी को धुआं-धुआं करने से बचा नहीं पाते। इस साल इस दिवस की विषय वस्तु -'पर्यावरण के लिए खतरनाक है तंबाकू' है। हर साल 31 मई को सारी दुनिया इस दिवस को मनाकर तंबाकू का सेवन न करने का संकल्प लेती है। बावजूद इसके तस्वीर नहीं बदल रही। पिछले साल इस दिवस की थीम 'कमिट टू क्विट' थी।

इस दिवस को मनाने के पीछे का मकसद यह होता है कि तंबाकू के खतरों और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके नकारात्मक प्रभावों के प्रति लोगों को जागरूक किया जाए। साथ ही निकोटिन के कारोबार और तंबाकू के सेवन से होने वाली बीमारियों और मौतों को कम किया जा सके। मगर ऐसा कुछ नहीं हो रहा। मोटा अनुमान है कि हमारे देश में करीब 22 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। इनमें 2200 लोग रोज दम तोड़कर परिवार को दे जाते हैं आहें, आंसू और टीस। इस दर्द को कोई नहीं समझ रहा। आज तंबाकू से तैयार होने वाले विभिन्न तरह के उत्पाद जैसे सिगार, सिगरेट, गुटखा आदि का निर्माण बहुराष्ट्रीय कंपनियां करके इनको गरीब मुल्कों में खफा रही हैं। आज तंबाकू के दुष्प्रभाव से भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देश प्रभावित हैं। विकसित देशों के साथ कई विकासशील देश भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। तंबाकू के विश्वव्यापी खतरे के बीच यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह आया कहां से। इतिहास की किताबों में इसका जनक क्रिस्टोफर कोलंबस है। 1492 में कोलंबस ने पहली बार सैन साल्वाडोर द्वीप पर तंबाकू की खोज की। अपनी दूसरी समुद्री यात्रा में वह स्पेन में तंबाकू के पत्ते लेकर पहुंचा। …और 1558 में तंबाकू के बीज पूरे यूरोपीय महाद्वीप में फैल गए और धीरे-धीरे उपनिवेशवादियों के आक्रमण के साथ पूरी दुनिया में फैल गए।

आज भारत विश्व में तंबाकू का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 1995 में यहां कुल 450 मिलियन किलोग्राम (करीब साढ़े चार लाख टन) तंबाकू का उत्पादन होता था। इसमें हर साल इजाफा हुआ। अप्रैल 2021 से फरवरी 2022 के बीच भारत ने 838.80 मिलियन डॉलर कीमत के तंबाकू उत्पादों का निर्यात किया। इस उद्योग के फैलाव और तंबाकू उत्पादों की बढ़ती मांग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फरवरी 2021 की तुलना में 2022 में 12.78 फीसदी की वृद्धि के साथ भारत ने 78 मिलियन डॉलर कीमत के तंबाकू उत्पादों का निर्यात किया। सच बात तो यह है कि इतने बड़े उद्योग के आगे छोटे-छोटे संकल्प और नारे कैसे साकार रूप लेंगे। अगर हमें तंबाकू के सेवन के खिलाफ लोगों को खड़ा करना है तो इस व्यापार को भी छोटा करना होगा। तंबाकू उत्पादों के सेवन से मनुष्य की औसत आयु 60-70 के बीच सिमट रही है। यह सच है कि तंबाकू के सेवन से होने वाले गंभीर खतरों से सारी दुनिया परिचित है। बावजूद इसके यह लत जान की दुश्मन बनी हुई है। हैरानी है कि तंबाकू निषेध दिवस पर बड़ी-बड़ी बातें और दावे करने के बाद हम अगली सुबह सबकुछ भूल जाते हैं।

तंबाकू के सेवन की वजह से होने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोगों से 80 लाख से अधिक लोग काल के गाल में समा रहे हैं। इससे पर्यावरण को भी क्षति हो रही है। तंबाकू उद्योग के कचरे, इसके उत्पादों को बनाने और पैकेजिंग में पर्यावरण का भयंकर नाश किया जा रहा है। साफ है तंबाकू उत्पाद बीमारी बांटने के साथ आने वाली पीढ़ियों को भी संकट में डाल रहे हैं। तंबाकू उत्पादों का कचरा (गुटखा रैपर, कागज, सिगरेट का शेष हिस्सा) पारिस्थितिक तंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय है। वैश्विक स्तर पर सिगरेट को तैयार करने के लिए 60 करोड़ से अधिक पेड़ काटे जाते हैं और 22 बिलियन ( 2200 करोड़) लीटर से अधिक मात्रा में पानी खर्च होता है। इसके अलावा केवल उत्पादों के निर्माण में ही 8.40 करोड़ टन की मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। पेड़ों की कटाई, पानी और कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन, तीनों पर्यावरण के लिए चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। इन खतरों को देखते हुए दावे से कहा जा सकता है कि तंबाकू मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए जहर से कम नहीं है। इस विषपान को न करने पर ही भलाई है।

मुकुंद