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सिक्कों से छोटे व्यापारी परेशान, बड़े व्यापारी और बैंक नहीं ले रहे चिल्लर

मंदसौरः 1, 2, 5 और 10 सिक्कों को लेने से ग्राहक कतरा रहा है तो वहीं व्यापारी भी परेशान है। ग्राहकों के अनुसार दस के पांच नोट जेब या पर्स में रखना आसान है, लेकिन पांच सिक्कों को रखना परेशानी है। इसी तरह से व्यापारियों के गल्ले में भी दस के सिक्के बड़ी मात्रा में जमा हो रहे हैं। सिक्कों का भारी मात्रा में बाजार में आना, आरबीआई द्वारा दस के नए नोट छापना बंद करना है।

आरबीआई से चेस्ट ब्रांचों को 20 रुपए, 50 रुपए, 100 रुपए और 500 रुपए के नए नोट मिल रहे हैं, लेकिन दस रुपए के नोट बंद हैं। ढाई साल से बैंकों की ब्रांचों को नए नोट नहीं मिले हैं। आखिरी बार अक्टूबर 2018 में 10 के नए नोट आए थे। बैंकों के जरिए ग्राहकों को दस रुपए के नए नोट नहीं पहुंच रहे हैं। दीपावली जैसे त्योहार पर 10 के नए नोटों की किल्लत रही। लक्ष्मी पूजन पुराने नोटों से ही हो पाया। स्थिति यह है कि बाजार में जो भी लेन देन हो रहा है और पुराने नोटों से या दस रुपए के सिक्कों से हो रहा है।

दस रुपए के नोट का बाजार में ज्यादा चलन है। सब्जी, दूध, फल सहित अन्य रोजमर्रा की खरीदी छोटे नोटों से होती है। खासकर दस रुपए के नोट से। इससे यह जल्दी फट जाते हैं। दस रुपए का एक नोट बनाने में 1.01 रुपए खर्च होते हैं। ज्यादा चलन होने से अधिकतम दो साल के भीतर दस रुपए का नोट खराब हो जाता है। वहीं एक सिक्का ढालने में 5.54 रुपए खर्च होते हैं। ये खराब नहीं होते हैं, चूंकि बाजार में दस रुपए की करेंसी का ज्यादा चलन है। इससे बैंकों का पूरा फोकस दस रुपए के सिक्कों पर है ताकि इनका चलन बड़े और दस रुपए के नोट की छपाई का खर्च बच सके।

नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 रुपए के नोट बंद कर दिए थे। बाजार में करेंसी की दिक्कत ना आए इसलिए बड़ी संख्या में 100 रुपए तक की करेंसी भेजी थी। बाजार में दस रुपए के सिक्कों की भरमार है। नोट बंदी के पहले बाजार में जहां सिक्कों की कमी थी और दस फीसदी राशि अधिक देने पर सिक्के मिल रहे थे। अब बैंकों के यह हाल है कि सिक्के लेने कोई नहीं आ रहा। हर बैंक की ब्रांचों में चार से पांच लाख रुपए के सिक्के रखे हैं।

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