लखनऊः बेमौसम बारिश अब किसानों के लिए ही नहीं, पशुओं के लिए भी आफत मानी जा रही है। प्रदेश के कई जिलों के किसान व पशुपालक चारे के लिए परेशान हैं। खेत तालाब के रूप में तब्दील हो गए हैं और खेतों में काटकर रखी गई बाजरा और जौ तैरने लगी है। जोरदार बारिश होने के कारण चारों ओर पानी भरा है। किसान चाह कर भी पानी नहीं निकाल सकते हैं। पशुओं को पालने के लिए चारे का संकट गहरा गया है। एक ओर पशुपालक परेशान हैं, तो दूसरी ओर प्रशासन ने भी अभी तक किसी प्रकार की मदद या गाइडलाइन जारी नहीं की है।
फसल की बुवाई के लिए अब तक का समय अनुकूल नहीं था। महंगे खाद, बीज और कीटनाशक डाल कर फसल को पकने के समय तक पहुंचा दिया था लेकिन सितम्बर के महीने में सक्रिय हुए मानसून ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। सितम्बर में कई दिनों तक हुई बारिश ने खरीफ फसल को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था। जो कुछ बचने की उम्मीद थी, अक्टूबर की पांच तारीख को चैपट हो गई। बारिश से खरीफ की फसल चारों खाने चित मानी जा रही है। कई किसानों ने बताया कि बाजरा और ज्वार की खेती पास के जिलों में की जाती हे। इन दिनों बाजरे और ज्वार की फसल की कटाई की शुरुआत हो जाती है। कटाई के शुरुआत में ही बारिश हुई और खेतों में फसल पूरी तरह से तहस-नहस हो गई। खेतों में पानी भरने से इसके सड़ने का डर सता रहा है। बाली के अंदर का दाना अंकुरित होने लगा है।
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माना जा रहा है कि दाना खराब होने के साथ चारा भी सड़ने लगा है। किसानों के लिए परिवार वालों का पोषण करने के लिए पशुपालन प्रमुख जरिया है। रोजमर्रा का खर्चा इसी से निकलता है। बीते दिनों जो हालत हुई, इससे किसानों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो रही है। बाजरे की फसल का चारा फरवरी से मार्च तक साथ देता है। फसल बर्बाद होने के साथ ही चारे के दामों में भी भारी बढ़ोत्तरी होनी तय है। तमाम किसानों ने कृषि संसाधनों का उपयोग कर फसल तैयार की थी। महंगा तेल खपत के बाद जो हालत हुई है, इसकी भरपाई अब मुश्किल है।
- शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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