Monday, October 21, 2024
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Chanakya Niti: यह छह चीजें मनुष्य को अंदर ही अंदर अग्नि की तरह जला देती हैं

नई दिल्लीः आचार्य चाणक्य की नीतियां मनुष्यों के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करती है। उनके विचार चाहे जितने कठिन हों पर अगर उन बातों का अनुसरण किया जाए तो जीवन में कभी भी अफसलता का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। बल्कि हर दिन मनुष्य सफलता की ऊंचाइयों पर ही चढ़ेगा। आचार्य चाणक्य ने बताया कि वह कौन सी चीजें है जो एक व्यक्ति को भीतर ही भीतर अग्नि की तरह जलाती रहती हैं।

श्लोक
कुग्रामवासः कुलहीन सेवा कुभोजन क्रोधमुखी च भार्या।
पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्॥

इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने बताया है कि दुष्टों के गांव में निवास करना, कुलहीन की सेवा, कुभोजन, क्रोधी जीवनसंगिनी, मूर्ख पुत्र और विधवा पुत्री यह सभी चीजें व्यक्ति को बिना अग्नि के ही जला डालती है। अर्थात् यह चीजें व्यक्ति को हमेशी दुख पहुंचाती हैं।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्टों के गांव में निवास करना एक सज्जन व्यक्ति के लिए काफी कष्टदायक होता है। क्योंकि ऐसे लोगों के बीच में रहने के चलते सज्जन व्यक्ति की गिनती भी उन्ही दुष्टों में होती है और इसका सीधा प्रभाव उस सज्जन व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है और वह मन ही मन जलता रहता है। इसी तरह कुलहीन की सेवा करना भी मनुष्य के लिए हितकर नहीं होता है। क्योंकि इसका सीधा प्रभाव उस व्यक्ति के घर के सदस्यों पर भी पड़ता है। जिससे वह व्यक्ति दुखों का सामना भी करता है। आचार्य चाणक्य बताते है कि कुभोजन भी व्यक्ति को अंदर ही अंदर जलाता रहता है। क्योंकि कुभोजन अर्थात् खराब भोजन करने से व्यक्ति की सेहत पर असर पड़ता है। इसलिए व्यक्ति को कभी भी खराब भोजन नहीं करना चाहिए।

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वहीं व्यक्ति घर के बाहर की समस्याओं से जूझने के बाद घर पहुंचे और घर पर भी उसे शांत और मधुरवाणी के स्थान क्रोधी स्वभाव की पत्नी का सामना करना पड़े तो यह स्थिति भी व्यक्ति के लिए काफी दुखदायी होती है और इस प्रकार वह बिना अग्नि के स्वयं में ही जलता रहता है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि किसी व्यक्ति का पुत्र मूर्ख हो तो वह उसके लिए बेहद कष्टकारी होता है। क्योंकि ऐसा पुत्र पिता के साथ ही पूरे कुल का नाम बदनाम कर देता है। इसी तरह आचार्य चाणक्य बताते हैं कि हर पिता यह इच्छा होती है कि उसकी संतान हमेशा सुखी रहे। ऐसे में अगर किसी पिता की पुत्री असमय विधवा हो जाए तो यह पिता के लिए कष्टकारी होता है और अपनी पुत्री के दुख को देखकर पिता अंदर ही अंदर जलता रहता है।

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