घर में मृत मिलीं सिंगर वाणी जयराम, हाल ही में पद्म भूषण से हुईं थीं सम्मानित

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मुंबईः पद्म भूषण से सम्मानित वेट्रन प्लेबैक सिंगर वाणी जयराम अब इस दुनिया में नहीं रहीं। वह अपने चेन्नई स्थित आवास में मृत पाई गईं। वह 77 वर्ष की थीं। चेन्नई स्थित थाउजेंड लाइट्स पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है। फिलहाल उनकी मृत्यु का कोई कारण सामने नहीं आया है। वाणी जयराम को इसी साल गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से नवाजा था। तीन बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीतने वाली वाणी जयराम का असली नाम कलैवनी था। महज 8 साल की उम्र में ऑल इंडिया रेडियो के लिए गाने वाली वाणी कभी भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी करती थीं। शादी के बाद पति ने उनकी गाने की प्रतिभा को और निखारने पर जोर दिया। उसके बाद उन्होंने बाकायदा शास्त्रीय संगीत सीखा और बैंक की नौकरी छोड़कर गायकी को ही अपना मूल पेशा बनाया। वाणी जयराम का नाम इसी साल पद्म पुरस्कार के लिए चुना गया था। 1000 से अधिक भारतीय फिल्मों और 20,000 रिकॉर्ड किए गए गीतों के साथ 5 दशकों से अधिक का करियर। इतना व्यापक रेंज किसी असाधारण गायिका का ही हो सकता है। वाणी 1970 और 1990 के दशक के बीच कई संगीतकारों की पसंद रही हैं। उन्होंने कन्नड़, तमिल, तेलुगु, हिंदी, मलयालम, मराठी, ओडिया, असमिया, बंगाली, गुजराती और हरियाणवी सहित कई भारतीय भाषाओं में गाया है।

शास्त्रीय संगीतकारों के परिवार में जन्म
30 नवंबर, 1945 को तमिलनाडु के वेल्लोर में जन्मी वाणी शास्त्रीय संगीतकारों के परिवार से आती हैं। उनके माता-पिता दुरईसामी अयंगर और पद्मावती भी संगीत की दुनिया से जुड़े हुए थे। उनकी मां ने उन्हें रामुनाजा अयंगर से क्लासिकल म्यूजिक की ट्रेनिंग दिलवाई थी। बाद में उन्होंने कर्नाटक संगीत में औपचारिक प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। बचपन से ही वाणी को संगीत के प्रति एक ऐसा आकर्षण था, जहां वह रेडियो से चिपकी रहती थीं।

स्टेट बैंक में नौकरी करती थीं वाणी
वाणी ने मद्रास यूनिवर्सिटी के क्वीन मैरी कॉलेज से अपनी डिग्री पूरी की और हैदराबाद में भारतीय स्टेट बैंक में कार्यरत थीं। शादी करने के बाद वाणी अपना परिवार शुरू करने के लिए मुंबई आ गईं। उनके जुनून और उनके संगीत कौशल को जानने के बाद उनके पति जयराम ने उन्हें पटियाला घराने के उस्ताद अब्दुल रहमान खान के संरक्षण में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षण लेने के लिए राजी किया। वाणी ने इसके बाद वहां से दीक्षा ली। इसके बाद बैंक की नौकरी छोड़ दी और प्रोफेशनल सिंगर बनने की राह पर निकल पड़ीं।

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पहली बार मराठी फिल्म के लिए गाया था गाना
1969 में उनका पहला संगीत कार्यक्रम था और उसी वर्ष, उन्हें संगीतकार वसंत देसाई से मिलवाया गया। उनकी आवाज सुनकर वसंत देसाई ने एक मराठी एल्बम के लिए ‘ऋणानुबंधाचा’ गाना गाने के लिए वाणी को मौका दिया।। यह गीत रिलीज होते ही अपने मराठी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो गया। इस गीत से वाणी इतना फेमस हो गईं कि बॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी फिल्म गुड्डी (1971) में उन्हें तीन गाने दिए। वाणी जयराम ने इस फिल्म के लिए बोले रे पापिहारा, हरि बिन कैसे जीयूं और हमको मन की शक्ति देना गाया। ये तीनों ही गाने सुपरहिट रहे और वाणी का नाम हिंदी सिनेमा की दुनिया में चल पड़ा।

कई पुरस्कार जीते
78 साल की वाणी जयराम ने कन्नड़, तमिल, हिंदी, तेलुगू, मलयालम, मराठी समेत 19 भारतीय भाषाओं में 10 हजार से अधिक गाने गाए थे। वाणी जयराम ने सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका तमिल के लिए तीन और तेलुगु के लिए दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते। उन्होंने फिल्म मीरा के अपने गीत ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल’ के लिए 1980 का फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का पुरस्कार जीता। 2013 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए 60वां फिल्मफेयर दक्षिण भारतीय पुरस्कार मिला। वाणी जयराम ने सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक के लिए चार राज्य पुरस्कार भी जीते, जिनमें नंदी पुरस्कार, गुजरात राज्य फिल्म पुरस्कार, तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार और ओडिशा राज्य फिल्म पुरस्कार शामिल हैं।

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