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दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका: सिखों को घरेलू उड़ानों में कृपाण ले जाने की अनुमति को चुनौती

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को सिखों को घरेलू उड़ानों में कृपाण ले जाने की अनुमति के खिलाफ दायर की गई एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद के साथ मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय (एमसीए), गृह मंत्रालय (एमएचए), नागरिक उड्डयन महानिदेशक (डीजीसीए) और डीजी, नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो को नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई के लिए 15 नवंबर की तारीख तय की। पीठ ने अधिकारियों को आठ सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

अधिवक्ता हर्ष विभोर सिंघल के माध्यम से दायर याचिका में 4 मार्च को जारी डीजीसीए की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया है कि 'कृपाण' केवल एक सिख यात्री घरेलू उड़ानों में ले जा सकता है, बशर्ते उसके ब्लेड की लंबाई 15.24 सेमी (6 इंच) से अधिक न हो और कुल लंबाई 22.86 सेमी (9 इंच) से अधिक न हो।

याचिका में कहा गया है कि अपवाद सिर्फ भारतीय नागरिकों के लिए नहीं है। आक्षेपित अधिसूचनाएं सिख भारतीय नागरिकों के लिए प्रयोज्यता में अंतर नहीं करती हैं और अन्य देशों के सिख भारत में घरेलू मार्गों पर किसी भी भारतीय विमान में यात्रा करते समय कृपाण ले जा सकते हैं, हालांकि उनके संबंधित देशों के कानून वहां नागरिक उड़ानों में कृपाणों को ले जाने पर रोक लगा सकते हैं।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू सेना की उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें सिख यात्रियों को घरेलू उड़ानों में कृपाण ले जाने की अनुमति देने के नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो के फैसले को चुनौती दी गई थी।

न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी की पीठ ने याचिकाकर्ता संगठन को हाईकोर्ट जाने को कहा। पीठ ने कहा, "आप हाईकोर्ट जाइए। उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता के साथ अपील खारिज की जाती है।" याचिका में कहा गया था, "सिख यात्रियों/कर्मचारियों/हितधारकों को उक्त आदेश के तहत दी गई स्वतंत्रता साथी यात्रियों और कर्मचारियों की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। आदेश यह सुनिश्चित नहीं करता है कि क्या हवाई अड्डे और विमान जैसे उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों में कृपाण ले जाने वाला व्यक्ति एक वास्तविक सिख है या फिर कोई ऐसा धोखेबाज है, जो स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर सकता है।"

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याचिका में कहा गया है कि सिख यात्रियों को दी गई स्वतंत्रता मनमानी है और धर्म के आधार पर किए गए भेदभाव के संबंध में अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है, क्योंकि किसी भी गैर-सिख व्यक्ति को ऐसी कोई भी वस्तु ले जाने की अनुमति नहीं है, जो सह-यात्रियों के लिए संभावित तौर पर खतरा पैदा कर सकती है।

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