भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा नगरी में परम पावन श्रीवृन्दावन धाम स्थित है। मथुरा मण्डल में स्थित श्रीवृन्दावन जाग्रत आदि तीनों अवस्थाओं से परे, चिन्मय तुरीयांश रूप है। नारदपुराण के अनुसार, श्रीवृन्दावन धाम गोपीवल्लभ श्रीकृष्ण भी एकान्त लीलाओं का पावन स्थल है, जहां सखीस्थल के समीप गिरिराज गोवर्धन शोभा पाता है। वृन्दावन वृन्दा देवी का तपोवन है। वह नन्दगांव से लेकर यमुना के किनारे-किनारे दूर तक फैला हुआ है। यमुना जी के मुख्य तट पर रमणीय तथा पवित्र वृन्दावन सुशोभित है। वृन्दावन में भी कुसुम सरोबर परम पुण्यमय स्थल है। उसके मनोहर तट पर वृन्दा देवी का अत्यन्त सुखदायक आश्रम है, जहां मध्याह्न काल में सखाओं के साथ श्याम सुंदर श्रीकृष्ण नित्य विश्राम करते हैं। वृन्दावन में परम पावन पुण्य स्थान ब्रह्मकुण्ड प्रसिद्ध है। जो मनुष्य वहां भगवान श्रीकृष्ण का चिन्तन करते हुए स्नान करता है, वह श्री श्यामसुंदर के वैभव का कुछ चमत्कार देखता है। जहां श्रीकृष्ण का तत्त्व जानकर इन्द्र ने उन गोविन्द देव का चिन्तन किया था, उस स्थान को गोविन्द कुण्ड कहते हैं। वहां स्नान करके भी मनुष्य गोविन्द को पा लेता है। जहां एक होकर भी अनेक रूप धारण करके श्यामसुंदर ने गोपांगनाओं के साथ रास लीला की थी, उसका भी महात्म्य है। जहां नन्द आदि गोपों ने भगवान श्रीकृष्ण का वैभव देखा था, वह यमुना जी के जल में तत्वप्रकाश नामक तीर्थ कहा है। जहां गोपों ने कालियामर्दन की लीला देखी थी, वह भी पुण्यतीर्थ बताया गया है, जो मनुष्यों के पाप का नाश करने वाला है। जहां स्त्री, बालक, गोधन और बछड़ों सहित गोपों को कृष्ण ने दावानल से मुक्त किया, वह पुण्यतीर्थ स्नान मात्र से सब पापों का नाश करने वाला है।
जहां भगवान ने घोड़े का रूप धारण करने वाले केशी नामक दैत्य को खेल-ही-खेल में मार डाला था, वह पुण्यतीर्थ अरिष्ट कुण्ड के नाम से विख्यात है, जो स्नान करने मात्र से मुक्ति देने वाला है। जहां भगवान श्रीकृष्ण ने शयन, भोजन, विचरण, श्रवण, दर्शन तथा विलक्षण कर्म किया, वह पुण्य क्षेत्र है, जो स्नान मात्र से दिव्य गति प्रदान करने वाला है। जहां राधाजी ने अत्यन्त कठोर तपस्या की थी, वह श्रीराधाकुण्ड स्नान, दान और जप के लिए परम पुण्यमय तीर्थ है। वह परम पुण्यमय तीर्थ पुण्यात्मा पुरुषों से सेवित है और दर्शन मात्र से ही मोक्ष देने वाला है। वहां की आन्तरिक लीला का दर्शन करने में देवता लोग तपस्या से भी समर्थ नहीं हो पाते। जो सब ओर की आसक्तियों का त्याग करके वृन्दावन की शरण लेते हैं, उनके लिए तीनों लोकों में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। जो वृन्दावन के नाम का भी उच्चारण करता है, उसकी भी श्रीकृष्ण के पति सदा भक्ति बनी रहती है। पवित्र वृन्दावन के नर-नारी, वानर, कृमि, कीट-पतंग, खग, मृग, वृक्ष और पर्वत भी निरन्तर श्रीराधाकृष्ण उच्चारण करते रहते हैं। जो श्री कृष्ण की माया से मोहित हैं और जिनका चित्त कामरूपी मल से मलिन हो रहा है, ऐसे मनुष्यों को स्वप्न में भी श्रीवृन्दावन का दर्शन दुर्लभ है।
जिन पुण्यात्मा मनुष्यों ने श्रीवृन्दावन का दर्शन किया है, उन्होंने अपना जन्म सफल कर लिया। वे श्रीहरि के कृपा पात्र हैं। मुक्ति की इच्छा रखने वालों लोगों को भव्य एवं पुण्य वृन्दावन का सेवन करना चाहिए। सदा वृन्दावन का दर्शन करना चाहिए, सदा वहां की यात्रा करनी चाहिए तथा सदैव उसका सेवन और ध्यान करना चाहिए। इस पृथ्वी पर श्रीवृन्दावन के समान कीर्तिवर्धक स्थान दूसरा कोई नहीं है। कृष्णावतार में भगवान कृष्ण ने नन्द आदि के द्वारा गिरिराज गोवर्धन पूजन के द्वारा भोजन कराया। अन्नकूट तथा दुग्ध आदि के द्वारा तृप्त कराया, उसके पश्चात उसे प्यासा जानकर भगवान ने नूतन मेघों का जल पिलाया। यह गिरिराज गोवर्धन भगवान श्रीकृष्ण के हृदय से प्रकट हुआ है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक विभिन्न उपचारों से गोवर्धन पर्वत की पूजा और प्रदक्षिणभाव से परिक्रमा करता है, उसका फिर इस संसार में जन्म नहीं होता। भगवान के निवास से गोवर्धन पर्वत परम पवित्र हो गया है।
इस लिए सब प्रकार से प्रयत्न करके दूसरे पवित्र तथा पुण्यदायक वनों, नदियों और पर्वतों को छोड़कर मनुष्यों को सदा वृन्दावन का सेवन करना चाहिए। जहां यमुना जैसी पुण्यदायिनी नदी है, जहां गिरिराज गोवर्धन जैसा पुण्यमय पर्वत है, उस वृन्दावन में मोरपंख का मुकुट धारण किए कनेर के फूलों से कानों का शृंगार किए नटवर वेषधारी श्याम सुन्दर श्रीकृष्ण गोपों, गोओं तथा गोपिकाओं के साथ नित्य विचरण करते हैं। उस वृन्दावन में जाकर, जैसे जीव भगवान को पा ले, उस प्रकार भगवत्सुख का अनुभव करके जो फिर वृन्दावन को छोड़कर कहीं अन्यत्र चला जाता है, वह श्रीकृष्ण की माया की पिटारी रूप इस जगत में कहीं भी सुखी नहीं हो सकता है। भगवान गोपीनाथ श्रीकृष्ण यहां पग-पग पर प्रेम से द्रवितचिन्त हो नीच-ऊंच का विचार नहीं करते। अपने सब भक्तों का उद्धार कर ही देते हैं। जो व्रज के गोपों, गोपियों, खगों, मृगों, पर्वतों, गौओं, भूभागों तथा धूलकणों का भी दर्शन एवं स्मरण करके उन्हें प्रणाम करता है, उसके प्रेमपाश में आबद्ध हो भगवान श्रीकृष्ण उस भक्त के अन्तःकरण में अपने प्रति दास्य भाव का उदय करा देते हैं। संसार-भय से डरे हुए पापहीन मनुष्यों को सदा इस वृन्दावन धाम का श्रवण, कीर्तन, स्मरण तथा ध्यान करना चाहिए।