बांग्लादेश में क्यों जरूरी हैं शेख हसीना

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पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश के संसदीय चुनाव को प्रभावित करने में वहां के विपक्षी दलों ने जमकर राजनैतिक पैंतरेबाजियों के अलावा मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) पर चुनाव में धांधली करने, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और भारत के साथ बेवजह दोस्ती बढ़ाने वाले गैर-जरूरी आरोप लगाए। मगर जनता ने सभी आरोपों को नकार दिया। हसीना फिर सरकार बनाएंगी। रविवार को छिटपुट घटनाओं के साथ आम चुनाव संपन्न हो गया। हालांकि बांग्लादेश चुनाव आयोग की उम्मीद से कहीं कम मतदान हुआ है।

वोटिंग प्रतिशत तकरीबन चालीस फीसदी रहा। कई संसदीय क्षेत्र में तो मात्र 30-32 प्रतिशत ही मतदान हुआ। इसे मतदाताओं की उदासीनता कहें या मौजूदा सरकार के प्रति संतुष्टि? अब यह साफ है कि शेख हसीना पार्टी अवामी लीग ही सत्ता में वापसी करेगी। हसीना के अलावा भारत भी यही चाहता है, क्योंकि दोनों देशों के प्रमुखों की कूटनीति और सियासी केमिस्ट्री दोनों मुल्कों के हित में हैं।

बांग्लादेश का मुख्य विपक्षी दल ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ यानी ‘बीएनपी’ के चुनाव बहिष्कार के बाद अवामी लीग का और रास्ता साफ हो गया था। बांग्लादेश में कुल 300 संसदीय सीटें हैं जिनमें 299 सीट पर फिलहाल चुनाव संपन्न हुआ है। एक सीट पर चुनाव इसलिए निरस्त किया गया, क्योंकि वहां ऐन वक्त पर एक उम्मीदवार की मृत्यु हो गई। पांच-सात संसदीय सीटों पर बहिष्कार के चलते भी चुनाव रोका गया। बांग्लादेश चुनाव को संपन्न करवाने के लिए भारत से एक तीन सदस्यीय चुनाव पर्यवेक्षकों का दल भी पहुंचा था। उन पर भी पाकिस्तानी की सहयोगी मानी जाने वाली पार्टी ‘बीएनपी’ ने गड़बड़ी करवाने के आरोप लगाए। बीएनपी शुरू से नहीं चाहती थी कि भारत की दखल इस बार के चुनाव में हो? जबकि, भारतीय चुनाव पर्यवेक्षक शेख हसीना के आमंत्रण पर गए थे।

दरअसल, हसीना भारत से विशेष स्नेह रखने के साथ-साथ उसे अपना दूसरा घर भी मानती हैं। भारत एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना भरोसेमंद मित्र कहती हैं। यही, बात वहां के मुख्य विपक्षी दल को अखरती है। इस चुनाव में शेख हसीना ने मतदाताओं से चुनाव कैंपेन के दौरान कई मर्तबा अपने पुराने जख्मों को कुरेदा भी। उन्होंने 1975 का ज्रिक किया। बताया कि जब वह छोटी थीं, तब उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान के अलावा मां और तीन भाइयों की घर में ही निर्मम हत्या कर दी गई थी। उस वक्त शेख हसीना अपनी छोटी बहन रिहाना के साथ विदेश में पढ़ाई कर रही थीं। घर पर होतीं तो उनके साथ भी हादसा हो सकता था। शेख हसीना ने बांग्लादेश की जनता को बताया कि उस मुसीबत की घड़ी में उन्हें भारत ने ही शरण दी थी।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने देश के लोगों को भारत के खिलाफ इस चुनाव में खूब भड़काया। दरअसल, भड़काने का ये काम उन्होंने खुद से नहीं किया, बल्कि उन्हें पाकिस्तान से आईएसआई ने करवाया। भारत के सहयोग से इस वक्त बांग्लादेश विकास की नई ऊचाइयां छू रहा है। कई ऐसे बड़े प्रोजेक्ट हैं जिन्हे भारत अपने प्रयास से करवा रहा है। चुनाव कैसे करवाने हैं इसको लेकर भी उन्होंने भारतीय चुनाव आयोग से रायशुमारी की। तभी भारत के एक चुनाव दल ने वहां पहुंचकर अच्छे से चुनाव संपन्न करवाया।

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बांग्लादेश और भारत की सीमाएं आपस में साझा होती हैं, कमोबेश दोनों मुल्कों की संस्कृति भी आपस में मेल खाती है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के रीति-रिवाज एक जैसे ही हैं। भारत की हुकूमत इस पड़ोसी मुल्क की तरक्की में सहयोग करने से कभी पीछे नहीं हटती। हालांकि, खुराफाती चीन और पाकिस्तान इस बार नहीं चाहते हैं कि शेख हसीना की वापसी हो। दोनों चाहते हैं कि उनकी मनमाफिक ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ देश में हुकूमत करे, जिसके जरिए वह भारत को परेशान करे। लेकिन शायद उनकी नापाक कोशिशों पर इस बार भी शेख हसीना पानी फेरेंगी।

शेख हसीना सन-2009 से सत्ता पर काबिज हैं। उन्होंने भारत के सहयोग से अपने यहां बहुत कुछ किया। जनता भी यही चाहती है कि भारत का सहयोग उन्हें सदैव मिले, इसलिए वो शेख हसीना को ही बार-बार चुनते हैं। चुनाव में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के अलावा 26 अन्य सियासी दल भी मैदान में उतरे । करीब 1500 उम्मीदवारों के अलावा 436 निर्दलीय कैंडिडेट ने भी अपनी किस्मत आजमाई। चुनाव के दौरान बहिष्कार करने वाले हजारों विपक्षी नेताओं-कार्यकर्ताओं को अरेस्ट किया। मानवाधिकार समूहों ने आपत्ति दर्ज कराते हुए सभी गिरफ्तार लोगों को रिहा करने की अपील हसीना सरकार से की है।

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चुनाव के दौरान बांग्लादेशी खुफिया एजेंसियों को इनपुट मिल गए थे, कि विपक्षी नेता-समर्थक पाकिस्तान की आईएसआई के कहने पर गड़बड़ी कर सकते हैं। लगभग वैसा हुआ भी, इसलिए कोई बड़ी अप्रिय घटना न घटे, तभी एक साथ हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया और इतने ही लोगों को उनके घरों में नजरबंद भी करना पड़ा। इस कदम को समझदारी ही कहेंगे, खुदा न खास्ता अगर ऐसा नहीं किया जाता तो चट्टोग्राम जैसी खूनी घटनाएं अन्य जगहों पर भी हो सकती थी।

चट्टोग्राम में चुनावी झड़प हुई, जमकर गोलीबाजी हुई, जिसमें तीन लोगों की सरेआम हत्या कर दी गई, जिनकी हत्या हुई उनको ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ के लोग अपने पक्ष में वोट करने का दबाव डाल रहे थे। नहीं माने तो उन्हें गोलियों से भून डाला। शरीरबाड़ी में भी बीएनपी के नेता अवामी लीग के जिला अध्यक्ष मोहम्मद आसीम को चुनाव बूथ पर ही चाकुओं से घोप डाला, जिनका इलाज मीरपुर के जिला अस्पताल में जारी है। चीन और पाकिस्तान की इस चुनाव में शुरू से दखल रही। चुनाव के एकाध दिन पहले तक ऐसा प्रतीत हुआ कि शायद चुनाव रद्द ही हो जाएंगे। बहरहाल जनादेश भारत-बांग्लादेश दोनों के लिए सुखद है। हसीना एक मर्तबा फिर प्रधानमंत्री बन सकती हैं।

डॉ. रमेश ठाकुर

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