Chhattisgarh, जगदलपुरः केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जगदलपुर पहुंचे और बस्तर ओलंपिक के समापन समारोह में शामिल हुए। बस्तर ओलंपिक में संभाग के सातों जिलों से अलग-अलग खेलों के 2900 से ज्यादा खिलाड़ी हिस्सा लेने आए हैं, जिनकी सारी व्यवस्थाएं जिला प्रशासन ने कर ली हैं। प्रशासन के मुताबिक इस आयोजन में करीब 300 आत्मसमर्पित नक्सली भी हैं। इसके साथ ही नक्सली घटना में विकलांग हुए, नक्सल हिंसा के शिकार कुल 18 खिलाड़ी भी अलग-अलग खेलों में शामिल हुए हैं।
Chhattisgarh: आत्मसमर्पित नक्सलियों का हुआ स्वागत
हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने वाले नक्सलियों का यहां स्वागत किया गया। इनमें से कई छत्तीसगढ़ पुलिस में भी भर्ती हुए हैं। छत्तीसगढ़ दौरे पर आए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज रविवार शाम को इनसे मुलाकात करेंगे। आत्मसमर्पित नक्सली संध्या ने कहा कि हमें कहा गया था कि हम गरीबों की सेवा करेंगे, इसीलिए हम शामिल हुए। हमारे शामिल होने के बाद हकीकत काफी अलग थी। यह बिल्कुल भी वैसा नहीं था जैसा हमने शामिल होने पर सोचा था। संध्या ने आगे कहा कि मैं 2001 में शामिल हुई और 2014 में सरेंडर कर दिया। सरेंडर करने वाली नक्सली सुकांति का कहना है कि मैं 2003 में शामिल हुई और 2018 में सरेंडर कर दिया।
Chhattisgarh: सुनाई अपनी-अपनी व्यथा
मुझे कहा गया था कि हम अपनी मर्जी से अपना जीवन जिएंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। इसलिए मैंने 2018 में छोड़ दिया। मैं अब अपना जीवन खुशी से जी रही हूं। सरेंडर करने वाले नक्सली शंकर मड़का (5 लाख रुपये का इनामी मिलिशिया कंपनी कमांडर) ने कहा कि मैं 2007 में शामिल हुआ और 2023 में छोड़ दिया। मैं 2019-2023 तक मिलिशिया कंपनी इंचार्ज था। मैंने 12 नक्सलियों की अपनी टीम के साथ दो एसटीएफ जवानों को मार गिराया। नक्सली पीड़ित विनोद वाचम ने कहा कि मैं बीजापुर जिले का रहने वाला हूं। मैं नक्सली क्रूरता का शिकार हुआ हूं। साल 2007 में नक्सली गांव पहुंचे थे।
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उन्होंने मेरे सामने ही मेरे पिता को पकड़ लिया और अपने साथ ले गए। उन्हें जन अदालत में लाया गया। यहां उन्हें एक पेड़ में रस्सी से बांधकर उल्टा लटका दिया गया। नीचे आग लगाई गई और फिर पूरे शरीर को चाकू से गोद दिया गया। नक्सली पीड़ित नागेश वाचम ने कहा कि मैं बीजापुर जिले का रहने वाला हूं। मैं वर्ष 2012 की उस घटना को कभी नहीं भूल सकता, जब नक्सलियों ने मेरे पिता और भाई की बेरहमी से हत्या कर दी थी। जन अदालत लगाई गई और सैकड़ों ग्रामीणों के सामने मेरे पिता और भाई की आंखों पर पट्टी बांध दी गई। फिर उनके दोनों हाथ-पैर बांध दिए गए, जिसके बाद पूरे शरीर को चाकू से गोद दिया गया। मैं तीरंदाजी के लिए बस्तर ओलंपिक आया हूं।
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