क्षेत्रों में आरएम का चार्ज संभाल रहे सेवा प्रबंधक 

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लखनऊ : एक ओर जहां परिवहन निगम मुख्यालय में तैनात टेक्निकल शाखा के कई अफसर सेवानिवृत्त होने वाले हैं, तो वहीं दूसरी ओर क्षेत्रों में तैनात सेवा प्रबंधक क्षेत्रीय प्रबंधक का कार्यभार संभाले हुए हैं। परिवहन निगम के दो रीजनों में क्षेत्रीय प्रबंधक का काम सेवा प्रबंधक संभाल रहे हैं। इनमें एक ऐसा भी रीजन शामिल है, जहां पर वर्कशाप का काम पूरी तरीके से आउटसोर्स एजेंसी के जिम्मे है। ऐसे में यहां पर सेवा प्रबंधक का क्या काम है, यह बड़ा सवाल है।एक अन्य रीजन भी सेवा प्रबंधक के हवाले है।

गौरतलब है कि निगम मुख्यालय पर तैनात प्रधान प्रबंधक (प्राविधिक) श्याम बाबू 31 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। निगम मुख्यालय पर तैनात सेवा प्रबंधक कृष्णपाल सिंह 30 नवंबर को, एसपी सिंह सेवा प्रबंधक और प्रधानाचार्य प्रशिक्षण संस्थान कानपुर 31 दिसंबर को और बरेली क्षेत्र के सेवा प्रबंधक संजीव कुमार यादव 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इसके अलावा 31 जनवरी 2024 को मुख्य प्रधान प्रबंधक प्राविधिक का कार्यभार देख रहे आरएन वर्मा भी सेवानिवृत्त हो जाएंगे। ऐसे में बीते दो से तीन महीने में निगम मुख्यालय पर तैनात प्राविधिक शाखा के कई अफसर सेवानिवृत्त हो जाएंगे, बावजूद इसके क्षेत्रों में सेवा प्रबंधक डबल चार्ज संभाल रहे हैं। इसके चलते ऑफ रोड बसों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

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इससे परिवहन निगम की आय भी खासा प्रभावित हो रही है। बीते अगस्त माह में जहां परिवहन निगम को 40 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, तो सितंबर माह में 16 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा। सूत्रों की मानें तो टेक्निकल शाखा के अफसरों की यह मंशा रहती है कि क्षेत्रों में आरएम की जिम्मेदारी एसएम ही संभालें। टेक्निकल शाखा के अफसर इस मामले में संचालन शाखा के अफसरों से कोसों आगे भी हैं। वह जो चाहते हैं, वह करा लेते हैं। इसके चलते ही संचालन शाखा के अफसरों पर तो प्रबंधन कार्रवाई कर देता है, लेकिन टेक्निकल शाखा के अफसर पर कार्रवाई नहीं होती है। जानकारी के अनुसार, क्षेत्रों से परिवहन निगम मुख्यालय को सामानों की डिमांड तो पूरी भेजी जाती है, लेकिन सामान आधा ही मिलता है।

क्षेत्र वर्क 121 सॉफ्टवेयर से सामानों की डिमांड भेजते हैं, बावजूद इसके क्षेत्रों को डिमांड के अनुसार पूरा सामान भेजा ही नहीं जाता है। इससे जोड़-तोड़ कर मेंटीनेंस का काम चलाया जाता है। स्टोर में सामानों की कमी है। आलम यह है कि कहीं कूलेंट नहीं है, तो कहीं डिस्टिल वाटर नहीं मिल रहा है। डिमांड के मुताबिक, सामान न मिलने से ऑफ रोड बसों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। सूत्रों की मानें तो ऑफ रोड बसों का जो आंकड़ा निगम मुख्यालय को भेजा जाता है, उसके मुकाबले वर्कशॉप में ऑफ रोड बसों की संख्या अधिक होती है। ऑफ रोड बसों के आंकड़े छुपाए जाते हैं, ताकि टेक्निकल शाखा के अफसरों पर कोई आंच न आए।

अब नहीं दिया जाता ओके का सर्टिफिकेट 

पूर्व में यह व्यवस्था बनाई गई थी कि डिपो के फोरमैन द्वारा ओके का सर्टिफिकेट देने के बाद ही बस मार्ग पर भेजी जाएगी। हालांकि, वर्तमान इस नियम का पालन किसी भी वर्कशॉप में नहीं किया जा रहा है। अब बस को ओके का सर्टिफिकेट ही नहीं दिया जाता है। अब मुंहजबानी ही बस को ओके बता दिया जाता है, जबकि हकीकत यह है कि वर्कशॉप में ओके बताकर खड़ी की गई बस भी खराब होगी। अफसर अगर डिपो में जाकर बस की जांच करें, तो इसका खुलासा खुद हो जाएगा।

शिकायत पर पीछे पड़ जाते हैं टेक्निकल शाखा के अफसर 

वर्कशॉप में जहां सामानों की भारी कमी है, तो वहीं मैकेनिकों की संख्या भी कम है। मैकेनिकों को मिलने वाला मानदेय भी काफी कम है, बावजूद इसके अगर कोई वर्कशॉप की शिकायत करता है तो टेक्निकल शाखा के अफसर उसके पीछे पड़ जाते हैं, लेकिन टेक्निकल शाखा के अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। इन अफसरों से सम्बंधित शिकायतों की सारी रिपोर्ट दबा दी जाती है। नियमतः 05 प्रतिशत से अधिक बसें ऑफ रोड नहीं होनी चाहिए। हालांकि, रीजन स्तर पर इससे कहीं अधिक संख्या में रोजाना बसें ऑफ रोड रहती हैं। इसके बाद भी ऑफ रोड बसों की सही रिपोर्ट निगम मुख्यालय को नहीं भेजी जाती है।