धान को रोग से बचाने के लिए इस्तेमाल करें जिंक सल्फेट, वैज्ञानिकों ने बताए खेती के गुर

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कानपुर : जुलाई माह का एक तिहाई समय निकल चुका है और इन दिनों किसान भाई धान (paddy) की रोपाई कर रहे हैं। ऐसे में सीएसए के वैज्ञानिक किसानों के खेतों पर पहुंचकर धान रोपाई की वैज्ञानिक विधि बताई। वैज्ञानिकों ने बताया कि अगर वैज्ञानिक विधि से धान की रोपाई हुई तो पैदावार में असर पड़ना स्वाभाविक है।

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के कुलपति डॉक्टर डीआर सिंह के निर्देशन में कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर के कृषि वैज्ञानिक विकासखंड चौबेपुर के गांव बनसठी, बहरमपुर, रमेशपुर एवं दीपपुर आदि गांवों का भ्रमण किया। इस दौरान वैज्ञानिकों ने किसानों के खेतों पर जाकर किसानों को धान रोपाई की वैज्ञानिक पद्धतियां समझाई। मृदा वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने किसानों एवं रोपाई कर रही कृषक महिलाओं को पौध से पौधे की दूरी एवं मृदा में जड़ की उचित गहराई के बारे में जानकारी दी है। डॉक्टर खान ने इस दौरान धान की नर्सरी को जैव उर्वरक एजोटोबेक्टर से उपचारित करने की सलाह दी। जिससे वायुमंडलीय नत्रजन मृदा में संरक्षित हो सके।

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उन्होंने इस दौरान किसान भाइयों को संतुलित उर्वरक प्रबंधन की भी जानकारी दी। उनको रोपाई कैसे करी जाए इसके बारे में उनके खेत में जाकर रोपाई कराई गई। वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी कि धान (paddy) रोपाई करने के बाद खेत से पानी निकाल दें, क्योंकि खेत में पानी भरा रहने से अधिक तापमान होने के कारण धान (paddy) की पौध की जड़ें सड़ सकती हैं जिससे आर्थिक नुकसान हो सकता है। साथ ही खेत पर ही किसानों को सलाह दी कि धान की अच्छी उपज लेने के लिए 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश आवश्यक है।

उन्होंने धान (paddy) में खैरा रोग के बचाव के लिए जिंक सल्फेट प्रयोग करने की सलाह दी तथा धान की फसल को कीट एवं रोगों से बचाव के लिए समय-समय पर व्हाट्सएप के माध्यम से कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेते रहें। इस अवसर पर प्रगतिशील कृषक शिव कुमार पाल, रमेश,संजय एवं दिनेश प्रताप सिंह सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

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