लखनऊः सरसों के अलावा तमाम अन्य खाद्य तेलों के दाम बढ़ने से लोग परेशान हैं, हालांकि अब इसके सस्ते होने की भी उम्मीद जगने लगी है। इसका कारण है कि अब तिलहन उत्पादन बढ़ाने को लेकर किसान भी मंथन कर रहे हैं। कई सरकारी संस्थान भी इनकी मदद के लिए अब खुलकर सामने आ रहे हैं। लखनऊ शहर के डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय और बख्शी का तालाब के चंद्रभानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय में इस बात के लिए वैज्ञानिक हल निकालने पर विचार चल रहा है, हालांकि दोनों संस्थानों की ओर से इस दिशा में कदम भी बढ़ाए जा चुके हैं।
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बाजारों में महंगाई से मचा हाहाकार
पिछले दिनों बाजार में मचे महंगाई के हाहाकार से सब परेशान हैं। इसमें सबसे ज्यादा रसोई पर बोझ पड़ रहा है। ऐसे में सरकार की ओर से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के माध्यम से सुधार की गुंजाइश पर प्रयास किए जा रहे हैं। बख्शी का ताल में भी इस पर काम चल रहा है। उम्मीद है कि जल्द ही उपाय भी तलाश लिए जाएंगे। इसका कारण है कि सरकार और स्वयं विश्वविद्यालय खाद्य तेल की महंगाई पर चिंतित हैं। सबसे पहले बख्शी का तालाब के बीज भंडारण पर सुधार की कवायद की जाएगी। कारण है कि किसान यहां से जो बीज लेते हैं, वह गुणवत्ता में खरे नहीं उतर रहे हैं।
विश्वविद्यालय चाहता है कि निजी स्तर पर एक तिलहन परियोजना विकसित की जानी चाहिए। यह सरकार की योजना से थोड़ा भिन्न हो सकती है। सरकार अपने रास्तों पर काम कराएगी, लेकिन वैज्ञानिक निजी स्तर पर अपनी सूझ-बूझ को किसानों के साथ सहभागी बनाएंगे। पिछले दिनों यहां उत्पादन को बढ़ाने के लिए तिलहन मेला भी लगाया गया था। बख्शी का तालाब के चंद्रभानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ डॉ.सत्येंद्र कुमार सिंह ने किसानों से अपील की कि सरसों की टाइप-नौ, टाइप-30, गिरिराज तथा शंकर प्रजाति-5222 बोकर आने वाले दिनों में महंगाई को मार सकते हैं। उन्होंने कहा कि बीज केंद्र से कैसा भी बीज खरीदने या फिर कहीं से लिया या मांगा गया सरसो बीज के रूप में इस्तेमाल न करें। इससे मेहनत प्रभावित होती है, साथ ही उपज कम होती है।
एक-एक दाना है महत्वपूर्ण
चकौली गांव के किसान देशराज का कहना है कि किसान सरसों की बुआई शीघ्र कर दें। बोने के समय प्रति एकड़ 3 बोरी सल्फर तथा 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस व 30 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ डालें। समय से सरसों की बुआई करने से कीट एवं बीमारियों का खतरा कम रहता है। उन्होंने बताया कि बीते दिनों डॉ. भीमराव आम्बेडर विश्वविद्यालय की एक टीम गांवों में गई थी। जो बातें यहां बताई गई हैं, उन पर गौर करना बहुत जरूरी है। किसानों ने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि खेतों में खड़ी फसल का दाना कितना होगा। उन्होंने कहा कि एक-एक दाने का बड़ा होना पूरी फसल के लिए लाभकारी होता है, इसलिए कुछ बड़े और पुष्ट दाने मिट्टी मेंं बिखेरकर मजबूत उत्पादन ले सकते हैं।
दूसरी ओर विश्वविद्यालय की ओर से कृषि संबंधी योजनाओं की भी जानकारी दी जा रही है। डॉ. रवि वर्मा किसानों को उपज बढ़ाने के तरीके बता रहे हैं। उन्होंने बताया कि बीज केंद्र पर गेहूं के अलावा सरसों की खेती का रकबा बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि जल्द ही गांवों में विश्वविद्यालय की टीम जाएगी। कई गांवों के किसानों को प्रशिक्षित करने पर विचार किया जा रहा है। इसमें किसानों की तमाम समस्याएं सुलझाई जाएंगी। सरसों के बीज, बिजाई और उपज संख्या दोहरी करने पर फोकस किया जाएगा, ताकि आने वाली फसल अगले साल के तेल के दामों पर नियंत्रण बनाए रख सकें।
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