नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। चार जजों सीजेआई, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने समलैंगिक विवाह पर बंटा हुआ फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक एक साथ रह सकते हैं, लेकिन शादी को मान्यता नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है, इसलिए केंद्र सरकार को एलजीबीटीक्यू समुदाय के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया। इस मामले पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक जोड़ों को भी सामान्य लोगों की तरह उनका अधिकार मिलना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह तर्क सही नहीं है कि समलैंगिक जोड़े बेहतर माता-पिता नहीं बन सकते। यह साबित करने के लिए कोई अध्ययन नहीं है कि सामान्य जोड़े बेहतर माता-पिता होते हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि समलैंगिक जोड़ों को शादी करने का अधिकार है। समलैंगिक जोड़ों को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार है। चीफ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिकता सिर्फ शहरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि गांव में खेती का काम करने वाली महिला भी समलैंगिक हो सकती है।
केवल संसद को है मैरिज एक्ट में बदलाव का अधिकार
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि विवाह संस्था स्थिर और अपरिवर्तनीय है। विवाह की व्यवस्था को कानून द्वारा बदल दिया गया है। चीफ जस्टिस ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव का अधिकार सिर्फ संसद को है। न्यायालय को संसद के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने में सावधानी बरतनी चाहिए। संविधान पीठ के सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल ने मुख्य न्यायाधीश के फैसले पर सहमति जताई। जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने चीफ जस्टिस के फैसले से असहमति जताई और कहा कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। जस्टिस हिमा कोहली जस्टिस एस रवींद्र भट्ट के फैसले से सहमत हुईं।
जैविक संतानोत्पत्ति की कोई अनिवार्यता नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने दस दिन तक मामले की सुनवाई के बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कहा था कि लिंग की अवधारणा ‘परिवर्तनशील’ हो सकती है, लेकिन मां और मातृत्व की नहीं। कोर्ट ने कहा था कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है। देश का कानून विभिन्न कारणों से गोद लेने की अनुमति देता है। यहां तक कि एक व्यक्ति भी बच्चे को गोद ले सकता है। ऐसे पुरुष या महिला, एकल यौन संबंध में हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर आप संतानोत्पत्ति में सक्षम हैं तब भी आप बच्चा गोद ले सकते हैं। जैविक संतानोत्पत्ति की कोई अनिवार्यता नहीं है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि शादी और तलाक के मामले में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है। ऐसे में देखना होगा कि कोर्ट किस हद तक जा सकता है। सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा था कि सरकार का जवाब संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। यह केशवानंद भारती और पुत्तु स्वामी मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी खिलाफ है। क्योंकि अनुच्छेद 32 के तहत न्यायिक समीक्षा का अधिकार भी संविधान की मूल भावना है। 13 मार्च को कोर्ट ने मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया था।
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