नई दिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में लगातार तेजी आ रही है। पिछले कारोबारी सत्र में ब्रेंट क्रूड की कीमत प्रति बैरल 2.04 डॉलर बढ़कर 96.48 डॉलर प्रति बैरल हो गई। सिर्फ एक ही कारोबारी सत्र में ब्रेंट क्रूड के कीमत में 2.2 प्रतिशत की उछाल आई है। इसी तरह वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्लूटीआई) क्रूड की कीमत भी पिछले कारोबारी सत्र में 2.36 डॉलर यानी 2.5 प्रतिशत की उछाल के साथ 95.46 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई।
आपको बता दें कि सितंबर 2014 के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की ये सबसे ऊंची कीमत है। सितंबर 2014 में ब्रेंट क्रूड 96.78 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया था, जबकि वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्लूटीआई) क्रूड सितंबर 2014 में 95.82 डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था। जिसकी वजह से कच्चे तेल के आयात पर निर्भर रहने वाले भारत जैसे देशों का इंपोर्ट बिल काफी ज्यादा हो गया था। हालांकि 2014 के बाद कच्चे तेल की कीमत में लगातार गिरावट आई, जिसके कारण कच्चे तेल के आयात पर निर्भर करने वाले देशों को काफी राहत मिली थी।
जानकारों का कहना है कि पहले कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से बनी वैश्विक परिस्थितियों के कारण और अब रूस और यूक्रेन के बीच के तनाव ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पर काफी असर डाला है। कोरोना संक्रमण की वजह से 2019 में काफी नुकसान का सामना करने के बाद तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक और उसके सहयोगी देशों ओपेक प्लस ने कच्चे तेल के उत्पादन में काफी कटौती कर दी थी। जिसके कारण पिछले 1 साल से कच्चे तेल की कीमत में लगातार तेजी का रुख बना हुआ है।
कच्चे तेल की कीमत में लगातार हो रही बढ़ोतरी के कारण 1 दिसंबर 2021 को ब्रेंट क्रूड की कीमत 68.87 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी। उम्मीद की जा रही थी कि 2022 में ओपेक और ओपेक प्लस में शामिल देश कच्चे तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी करेंगे, ताकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की उपलब्धता सामान्य हो सके। ऐसा होने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में भी कमी आती, जिससे भारत जैसे कच्चे तेल के आयातक देशों को काफी राहत मिल सकती थी।
कमोडिटी मार्केट के एक्सपर्ट मयंक श्रीवास्तव का कहना है कि ओपेक और ओपेक प्लस में शामिल देशों की पिछली बैठक में कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने की बात पर सहमति भी बनी थी। लेकिन 2022 की शुरुआत से ही रूस और यूक्रेन के बीच जिस तरह से तनाव बढ़ा है, उसके कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में नकारात्मक माहौल बनने लगा है। इसकी वजह से कच्चे तेल की कीमत में भी लगातार तेजी दिख रही है। पिछले ढाई महीने के दौरान ही कच्चे तेल की कीमत में 27.61 डॉलर की बढ़ोतरी हो चुकी है। इस तरह 1 दिसंबर 2021 से लेकर अभी तक के करीब ढाई महीने में कच्चे तेल की कीमत है 40 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हो चुकी है।
आपको बता दें कि भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से अधिक कच्चा तेल अंतर्राष्ट्रीय बाजार से खरीदता है। ऐसी स्थिति में कच्चे तेल की कीमत में हो रही बढ़ोतरी से भारत में भी पेट्रोल और डीजल समेत दूसरे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में तेजी आने की आशंका बन गई है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में प्रति बैरल एक डॉलर की बढ़ोतरी होने से भारत में सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर पेट्रोल या डीजल की कीमत में प्रति लीटर 40 पैसे तक का भार बढ़ जाता है, जिसकी पूर्ति पेट्रोल या डीजल की कीमत में बढ़ोतरी करके किया जाता है।
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इस तरह अगर देखा जाए तो 1 दिसंबर 2021 से लेकर अभी तक की अवधि में सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर डीजल या पेट्रोल की कीमत में प्रति लीटर 11 रुपए से अधिक की बढ़ोतरी करने का दबाव बन चुका है। इसके साथ ही अगर डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में आई कमजोरी को भी इस गणना में जोड़ दिया जाए, तो इन ढाई महीने में सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर प्रति लीटर करीब 14 रुपए की बढ़ोतरी करने का दबाव बन गया है।
जानकारों का कहना है कि सियासी वजहों से सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियां अभी पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी नहीं कर रही हैं, जिसकी वजह से उनका संचित घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में 10 मार्च को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद एक बार फिर देश में पेट्रोल और डीजल की कीमत में तेज बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू हो सकता है।
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