राज परिवार ने मां दंतेश्वरी को दिया बस्तर दशहरा में शामिल होने का न्योता

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दंतेवाड़ा: राज परिवार के सदस्यों ने दंतेवाड़ा में मांईजी के मंदिर में विनय पत्रिका अर्पित कर उन्हें बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) में शामिल होने का परंपरानुसार न्योता दिया। पंचमी से अष्टमी तक माता मावली की डोली सभाकक्ष में स्थापित रहती है।

मां दंतेश्वरी का छत्र और माता मावली की डोली अष्टमी तिथि को 22 अक्टूबर को बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) में शामिल होने के लिए जगदलपुर रवाना होगी। 22 अक्टूबर को जगदलपुर में माता मावली की डोली एवं मां दंतेश्वरी के छत्र को स्थापित किया जायेगा। दूसरे दिन नवमी तिथि को डोली को मां दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है। मां की डोली यहां से दशमी तिथि को बस्तर के लिए प्रस्थान करेगी।

बस्तर महाराजा देते हैं न्योता

रियासतकालीन परंपरानुसार बस्तर महाराजा द्वारा विनय पत्रिका और अक्षत सुपारी देवी दंतेश्वरी के चरणों में अर्पित की जाती है। न्यौते को स्वीकार करने के बाद डोली को गर्भगृह से बाहर मंदिर के सभाकक्ष में रखा जाता है। जहां मावली माता की प्रतिमा को नए कपड़े में हल्दी-चंदन का लेप लगाकर, पूजा अर्चना कर डोली में विराजित किया जाता है।

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मांईजी को बस्तर के लिए विदा करते हैं श्रद्धालु

मांईजी की डोली के साथ पुजारी सेवादार समरथ मांझी व चालकी के साथ 12 परगना के लोग शामिल होते हैं। डोली और छत्र मंदिर से आतिशबाजी के साथ निकलती है। तत्पश्चात डंकनी नदी के पास बनाए गए पूजा स्थल में श्रद्धालु पूजा अर्चना कर मांईजी को बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए विदा किया जाता है। आंवराभाटा से मांईजी की डोली जगदलपुर रवाना होती है। दंतेवाड़ा से जगदलपुर तक आंवरा भाटा, हारम गीदम, बास्तानार, किलेपाल, कोडेनार, डिलमिली, तोकापाल, पंडरीपानी, मे देवी का स्वागत सत्कार किया जाता है। हजारों श्रद्धालु देवी के स्वागत एवं पूजा-अर्चना की परंपरा का निर्वहन करते हैं।

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