कागजों तक सिमटा सड़क सुरक्षा माह, दुर्घटनाओं में नंबर-1 पर राजधानी

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लखनऊः देश समेत प्रदेश में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा माह का आयोजन किया जा रहा है। इस क्रम में लखनऊ आरटीओ की ओर से भी रोजाना विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन के जरिए लोगों में सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलायी जा रही है, बावजूद इसके यातायात नियमों के पालन के प्रति सुधार अभी नाकाफी दिखायी पड़ रहा है।

खासकर ओवरस्पीडिंग, रांग साइड ड्राइविंग के मामले में अभी भी जागरूकता कोसों दूर दिखायी पड़ रही है। आंकड़े भी इस बात के गवाह हैं कि ओवरस्पीडिंग और रांग साइड ड्राइविंग से होने वाले हादसों और मौतों की संख्या करीब 50 प्रतिशत है। इसके अलावा गाड़ी चलाते समय मोबाइल का इस्तेमाल और ड्रंकेन ड्राइविंग से होने वाले हादसे करीब 20 प्रतिशत हैं। राजधानी लखनऊ की बात की जाए तो हेलमेट और सीटबेल्ट के मामले में हाल के वर्षों में काफी सुधार दिखायी पड़ रहा है। हालांकि हकीकत यह भी है कि चालान की कार्रवाई और जुर्माने की बढ़ी धनराशि को इसके लिए अधिक जिम्मेदार माना जा सकता है।

बावजूद इसके हेलमेट और सीटबेल्ट लगाने के प्रति लोगों में बढ़ी जागरूकता से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। एआरटीओ प्रवर्तन अमित राजन राय के अनुसार, राजधानी में 2019-20 में हुए सड़क हादसों का जो आंकड़ा सामने आया है, उसके अनुसार दुर्घटना में घायल और मृतकों की संख्या में करीब 40 प्रतिशत की कमी आयी है। यह आंकड़ा इस बात का गवाह कहा जा सकता है कि लोगों में यातायात नियमों के प्रति जागरूकता बढ़ी है। हालांकि अभी भी सड़क हादसों के बहुत सारी वजहें ऐसी हैं जिनमें बहुत अधिक सुधार होना बाकी है।

8 साल में बढ़ी 40 प्रतिशत मौतें

आंकड़ों की मानें तो बीते 8 सालों में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या में 40 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, वहीं सड़क हादसे भी करीब 42 प्रतिशत बढ़े है। बीते एक दशक में सड़कों और एक्सप्रेस-वे का जाल बढ़ने के साथ इन सड़कों पर वाहनों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है। सड़कों के निर्माण में रोड इंजीनियरिंग की अनदेखी, वाहन चालक द्वारा यातायात नियमों का पालन न करना, ओवरस्पीडिंग, लापरवाही से दुर्घटनाएं बढ़ रही है। जिनमें मृतकों और घायलों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।

हादसों में लखनऊ टॉप पर

प्रदेश में 2019 के सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े के अनुसार, सड़क हादसों के मामले में राजधानी लखनऊ टॉप पर है, वहीं हादसों में हुई मौतों के मामले में कानपुर का पहला नंबर है। वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार, 1685 हादसों के साथ लखनऊ पहले पायदान पर है, जबकि हादसों में 692 मौतों के साथ कानपुर शहर पहले नंबर पर है। गौर करने वाली बात यह है कि इन जिलों में ही सबसे अधिक ब्लैक स्पॉट भी हैं, जहां पर जरा सी लापरवाही जानलेवा होती है।

15 जनपदों में सबसे अधिक हादसे और मौतें

वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश के 75 जिलों में से 15 जनपदों में सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाएं और मौतें हुई हैं। टॉप टेन जिलों की सूची में शामिल लखनऊ और कानपुर में सबसे अधिक ब्लैक स्पॉट भी चिन्हित किए गए हैं। जिम्मेदारों की मानें तो अब एजेंसियां संयुक्त रूप से खामियों को दुरूस्त करने और सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने का प्रयास करेंगी।

हादसे रोकने में रोड इंजीनियरिंग का अहम रोल

सड़क हादसों पर अंकुश लगाने में रोड इंजीनियरिंग की अहम भूमिका है, मगर सड़कों के निर्माण के दौरान विभागीय समन्वय का खासा अभाव दिखायी पड़ता है। जिसका खामियाजा बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं और उनमें हो रही मौतों के रूप में सामने आ रहा है।

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नियम तोड़ने पर होता है डीएल निरस्त

यात्री कर अधिकारी रविचंद्र त्यागी के अनुसार, वाहन संचालन के दौरान लोगों में हेलमेट-सीटबेल्ट को लेकर जागरूकता काफी बढ़ी है। हालांकि पीलियन राइडर्स (वाहन पर पीछे बैठने वाले) के लिए हेलमेट लगाने की अनिवार्यता के बावजूद इसका पालन न के बराबर है। उनके अनुसार राजधानी में रांग साइड ड्राइविंग को लेकर अभी लोगों जागरूकता नहीं है, जबकि रांग साइड ड्राइविंग हादसों की बड़ी वजह में से एक है। पीटीओ रविचंद्र त्यागी के अनुसार, बार-बार यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ डीएल निरस्त करने की कार्रवाई की जाती है। इनमें अधिकतर कॉमर्शियल वाहनों के चालक या कानून तोड़ने के आदी व रूतबेदार लोग शामिल होते हैं।

वर्ष 2012 से 2019 तक हुए हादसे

वर्ष हादसे मृतक घायल
2012 29972 16149 22155
2013 30615 16004 23024
2014 31034 16287 22337
2015 32385 17666 23205
2016 35612 19320 25096
2017 38811 20142 27507
2018 42568 22256 29664
2019 42572 22655 28932