
लखनऊः उत्तर प्रदेश की राजधानी में 60 फीट ऊंचे रूमी दरवाजा की अपनी अलग ही पहचान है। पर्यटकों व इतिहासकारों के बीच रूमी दरवाजा विशेष महत्व रखता है। आजकल रूमी दरवाजा की मरम्मत का कार्य जोरों पर हैं और इसके लिए उधर से गुजरने वाले वाहनों के सुगम यातायात को एक अल्पकालिक मार्ग बनाया गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकारियों ने शुक्रवार को रूमी दरवाजा का निरीक्षण किया और सुगम यातायात पर पुरजोर चर्चा करते हुए अल्पकालिक मार्ग के बीच में बैरेकेडिंग को स्थिर स्थान पर लगवाया।
मरम्मत के जुटे श्रमिकों व उनके अधिकारी से कार्य को जनवरी से पहले पूरा करने के लिए भी चर्चा की गयी। रूमी दरवाजा के एक छोर पर अल्पकालिक मार्ग बनवाया गया, जिससे आने-जाने वाले गुजर रहे थे। फिलहाल रूमी दरवाजा के बांयी ओर बनाये गये इस मार्ग के दो हिस्से कर दिये गये हैं। जिससे आने वाले के लिए अलग मार्ग, तो जाने वाले के लिए उससे जुड़ा हुआ एक प्लेन सड़क बना दी गयी है। इस मार्ग से छोटे वाहन, चार पहिया वाहन व बस जैसे वाहनों को लाया लेजाया जा सकता है।
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रूमी दरवाजा का इतिहास सन् 1784 से अभी तक सुना व पढ़ा जाता है। इतिहासकार बताते हैं कि नवाब आसफुद्दौला ने रूमी दरवाजा बनवाया था जो इमामबाड़ा के छोटे व बड़े हिस्से को जोड़ते हुए मध्य में स्थित है। इसकी डिजाइन को तत्कालीन नवाब ने सुंदर बताया था। आज के वक्त रूमी दरवाजा को लखनऊ के पर्यटन की शान कहा जाता है।
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