लखनऊः कोरोना से उत्पन्न चिंताजनक परिस्थितियों से पूरा देश विचलित है। लोग तनाव में हैं। जबकि मनोवैज्ञानिक तनाव को इम्यून सिस्टम की कमजोरी का बहुत बड़ा कारण मानते हैं। मनोवैज्ञानिकों की सलाह है कि कोरोना काल में तनाव से दूर रहें। देश में रोजाना चार लाख नए कोरोना संक्रमित मरीज मिल रहे हैं। करीब चार हजार लोग अपनी जान भी गवां रहे हैं। हर तरफ लोग भयभीत और आक्रांत हैं। चिकित्सक कोरोना से लड़ने में इम्यून सिस्टम को मजबूत करने की सलाह दे रहे हैं। जबकि इम्यून सिस्टम का सबसे बड़ा दुश्मन तनाव है। बलिया स्थित टीडी कालेज में मनोविज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डा.अनुराग भटनागर ने कहा कि कोरोना के कारण जो परिस्थितियां बनी हैं, लोग चिंतित और भयभीत हैं। यह स्वाभाविक है लेकिन इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है। उन्होंने कहा कि ध्यान देने वाली बात है कि समाज का हर वर्ग पूरी क्षमता के साथ अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए इस परिस्थिति से डटकर मुकाबला कर रहा है। समाज के हर व्यक्ति की यह जिम्मेदारी बनती भी है कि इस महामारी में किसी न किसी प्रकार से सहयोग दें। डा.भटनागर बताते हैं कि तनाव एक मनोवैज्ञानिक विकृति है। यह स्थिति अधिक समय तक बने रहने से व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण इम्यूनिटी भी प्रभावित होती है।
कोविड-19 से बचने के लिए एकमात्र उपाय के रूप में इम्यूनिटी स्ट्रांग करने की सलाह चिकित्सक और एक्सपर्ट दे रहे हैं। इम्यून सिस्टम बहुत नाजुक होता है। यह रोगों से लड़ने में सहायक होता है। यह विभिन्न प्रकार के वायरस, बैक्टीरिया और इंफेक्शन से बचाव करता है। इम्यून सिस्टम कई तरह से स्ट्रांग होता है। इसमें संतुलित आहार और संयमित जीवन अहम है। लेकिन हमारे शरीर की कार्य करने की क्षमता को कई मनोवैज्ञानिक कारण भी प्रभावित करते हैं। उसमें एक महत्वपूर्ण कारण है मनोवैज्ञानिक तनाव। चाहे कितना भी पौष्टिक भोजन करें, यदि तनाव लेंगे तो इम्यूनिटी मजबूत नहीं कर पाएंगे। इसलिए जितना सम्भव हो तनाव से दूर रहें। तनाव के कई स्टेज होते हैं। पहले स्टेज में तनाव से शरीर में कार्टिसोल नामक हार्मोन्स निकलता है। यह मेटाबोलिज्म को प्रभावित करता है। दूसरे स्टेज में लंबे समय तक तनाव रहने के शरीर का रेजिस्टेंस पावर कम होता है। तीसरे स्टेज में व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को खत्म कर देता है। डा. भटनागर ने कहा कि अलग-अलग लोगों के तनाव के स्तर भी अलग-अलग होते हैं। एक व्यक्ति के लिए तनाव से तात्पर्य टेंशन, प्रेशर और बाहरी दुखद तत्वों से है। लेकिन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से तनाव से तात्पर्य बायोकेमिकल, दैहिक, व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन से है।
यह भी पढ़ेंःडीआरडीओ ने विकसित किया एआई मॉडल का ऍल्गोरिथम, अब नहीं कराना…
निराशा में भी होती है उम्मीद की किरण
निराशा में भी उम्मीद की एक किरण होती है। इस सामाजिक मुहावरे का जिक्र करते हुए डा.भटनागर में कहा कि आशावादी प्रवृत्ति के लोग तनावपूर्ण परिस्थितियों में भी सबसे अच्छे व्यवहार की उम्मीद रखते हैं। अपने को जल्द और प्रभावशाली रूप में निकाल ले जाते हैं। सहनशीलता को भी अहम बताते हुए कहा कि सहनशील व्यक्ति में चुनौतियों से निपटने का गुण होता है। एक सहनशील व्यक्ति प्रतिबद्धता के साथ तनावपूर्ण परिस्थितियों को भी रुचिकर महसूस करता है। वह पूरी ताकत से नियंत्रण करता है। जीवन में आने वाली चुनौतियों को सामान्य रूप में लेता है और घबराता नहीं है। उनका सामना करने में अपनी प्रगति समझता है। जबकि आक्रामकता और क्रोध दोनों ही व्यक्ति के व्यवहार के संवेगात्मक तत्व हैं। ये तनाव के महत्वपूर्ण कारक हैं। इसलिए कोशिश यह होनी चाहिए कि तनाव को आने ही न दिया जाय। इसके लिए मेडिटेशन एक प्रभावकारी उपाय है। मेडिटेशन किसी चीज या विचार पर ध्यान केंद्रित करने की एक प्रक्रिया है। इसके दो प्रकार काफी प्रसिद्ध हैं। एक है ट्रान्सेंडैंटल और माइंडफुलनेस। ट्रांसेडेंटल में किसी मंत्र को दिन में दो बार आराम से बीस मिनट तक शांत होकर दोहराया जाता है। जबकि माइंडफुलनेस प्रक्रिया व्यक्ति को वर्तमान में जीने को कहती है। इसका तात्पर्य यह है कि भूतकाल या भविष्य की चिंता छोड़कर अपने वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।