काल भैरव अष्टमी पर जरूर करें इस चमत्कारी स्त्रोत का पाठ, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

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नई दिल्लीः काल भैरव अष्टमी का पर्व इस बार 16 नवम्बर को मनाया जाएगा। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन काल भैरव जयंती मनाई जाती है। भैरव भगवान को शिव का एक रौद्र रूप माना गया है। बाबा भैरव को शिवजी का अंश माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव के पांचवें अवतार भगवान भैरव हैं। सनातन धर्म में भगवान भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित हैं। सनातन परंपरा में भगवान भैरव की साधना जीवन से जुड़ी सभी परेशानियों से उबारने और शत्रु-बाधा आदि से मुक्त कर देती है।

काल भैरव अष्टमी का शुभ मुहूर्त
यूं तो भगवान भैरव की पूजा कभी भी की जा सकती है, किन्तु भैरव अष्टमी पर की गई पूजा का विशेष महत्व होता है। इस बार अष्टमी तिथि 16 नवंबर को प्रातः 05 बजकर 49 मिनट से प्रारंभ होकर 17 नवंबर को सायंकाल 07 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। भगवान काल भैरव की पूजा रात्रि के समय शुभ मानी गई है, लेकिन दिन में कभी किसी भी शुभ मुहूर्त में कर सकते हैं।

काल भैरव अष्टमी की पूजा का महत्व
शास्त्रों के अनुसार भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के रुद्र रूप से हुई थी। शिव के दो रूप उत्पन्न हुए प्रथम को बटुक भैरव और दूसरे को काल भैरव कहते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि बटुक भैरव भगवान का बाल रूप हैं और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। जबकि काल भैरव की उत्पत्ति एक श्राप के चलते हुई, उनको शंकर का रौद्र अवतार माना जाता है। शिव के इस रूप की आराधना से भय एवं शत्रुओं से मुक्ति और संकट से छुटकारा मिलता है। काल भैरव भगवान शिव का अत्यंत विकराल प्रचंड स्वरूप है। शिव के अंश भैरव को दुष्टों को दण्ड देने वाला माना जाता है, इसलिए इनका एक नाम दंडपाणी भी है। मान्यता है कि शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए उनको काल भैरव कहा जाता है। भैरव अष्टमी को लेकर तीर्थनगरी में तैयारियां शुरू हो चुकी है। कनखल स्थित काल भैरव मंदिर व हरिद्वार स्थित आनंद भैरव मंदिर तथा श्रवणनाथ मठ स्थित काल भैरव मंदिर में तैयारियां शुरू हो चुकी हैं।

काल भैरव स्तोत्रम्
नमो भैरवदेवाय नित्ययानंदमूर्तये ।
विधिशास्त्रान्तमार्गाय वेदशास्त्रार्थदर्शिने ।।
दिगंबराय कालाय नमः खट्वांगधारिणे ।
विभूतिविलसद्भालनेत्रायार्धेंदुमालने ।।
कुमारप्रभवे तुभ्यं बटुकायमहात्मने ।
नमोेचिंत्यप्रभावाय त्रिशूलायुधधारिणे ।।
नमः खड्गमहाधारहृत त्रैलोक्य भीतये ।
पूरितविश्वविश्वाय विश्वपालाय ते नमः ।।
भूतावासाय भूताय भूतानां पतये नम ।
अष्टमूर्ते नमस्तुभ्यं कालकालाय ते नमः ।।

कं कालायातिघोराय क्षेत्रपालाय कामिने ।
कलाकाष्टादिरूपाय कालाय क्षेत्रवासिने ।।
नमः क्षेत्रजिते तुभ्यं विराजे ज्ञानशालने ।
विद्यानां गुरवे तुभ्यं विधिनां पतये नमः ।।
नमः प्रपंचदोर्दंड दैत्यदर्प विनाशने ।
निजभक्त जनोद्दाम हर्ष प्रवर दायिने ।।
नमो जंभारिमुख्याय नामैश्वर्याष्टदायिने ।
अनंत दुःख संसार पारावारान्तदर्शिने ।।

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नमो जंभाय मोहाय द्वेषायोच्याटकारिणे ।
वशंकराय राजन्यमौलन्यस्त निजांध्रये ।।
नमो भक्तापदां हंत्रे स्मृतिमात्रार्थ दर्शिने ।
आनंदमूर्तये तुभ्यं श्मशाननिलयाय् ते ।।
वेतालभूतकूष्मांड ग्रह सेवा विलासिने ।
दिगंबराय महते पिशाचाकृतिशालने ।।
नमोब्रह्मादिभर्वंद्य पदरेणुवरायुषे ।
ब्रह्मादिग्रासदक्षाय निःफलाय नमो नमः ।।
नमः काशीनिवासाय नमो दण्डकवासिने ।
नमोेनंत प्रबोधाय भैरवाय नमोनमः ।।

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