श्रीराम जन्मभूमि पर प्रतिष्ठित होंगे रामलला, करोड़ों भक्तों का स्वप्न होगा साकार

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अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर निर्मित हो रहे भव्य मन्दिर में जन-जन के आराध्य प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी, 2024 की तिथि निर्धारित हो गई है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुख्य यजमान होगें, जिनके हाथों यह कार्यक्रम सम्पंन होगा। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की निर्माण समिति के साथ ही हिंदू संगठनों यथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद कार्यक्रम को दीपावली पर आयोजित होने वाले दीपोत्सव कार्यक्रम से भी भव्य और दिव्य बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं।

प्रमुख धर्माचार्यों, साधु-संतों सहित लगभग 7,000 लोगों को कार्यक्रम में आमंत्रित किए जाने की तैयारी है। रामलला के गर्भगृह में स्थापित होने के साथ ही देश-विदेश के उन करोड़ों लोगों का सपना मूर्तरुप ले लेगा, जिन्होंने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था लेकिन इन सबसे परे हिन्दू धर्म की मान्यताओं पर आधारित एक ऐसा महत्वपूर्ण अदृश्य तथ्य है, जिसका जिक्र आज प्रासंगिक हो चला है, वह है श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन में शहीद हुए कारसेवकों की हुतात्माओं की तृप्ति का।

33 वर्ष पहले 30 अक्टूबर और 02 नवम्बर 1990 को अयोध्या की गलियों में निहत्थे कारसेवकों पर तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार के अधिकारियों ने अंधाधुंध गोलियां बरसा कर देश के कोने-कोने से आए सौ से अधिक कारसेवकों को मौत की नींद सुला दिया था और उससे कहीं ज्यादा संख्या में कारसेवक घायल हुए थे। कहा जाता है कि उन शहीद कारसेवकों की अतृप्त आत्माएं आज भी श्रीराम जन्मभूमि के आस-पास की गलियों (शहीद स्थल) में अपने मोक्ष के इंतजार में भटक रही हैं। 22 जनवरी को अपरान्ह 12 बजकर बीस मिनट पर जैसे ही रामलला अपने गर्भगृह में विराजमान होंगे, वैसे ही इन आत्माओं को शान्ति और मोक्ष मिल जाएगी, क्योंकि जिस लक्ष्य के लिए इन्होनें बलिदान दिया था, वह मनोरथ पूर्ण हो जाएगा।

कुछ माह पहले जब अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण के प्रथम तल का कार्य दिसम्बर, 2023 में पूर्ण होने और जनवरी में प्राण प्रतिष्ठा की खबरें आनी शुरु हुईं, तभी से देश-विदेश में करोड़ों राम भक्त रामलला के दर्शन को उतावले हो रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि यह मन्दिर राम भक्तों के संघर्षों और उनके बलिदान की नींव पर बन रहा है। 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा श्रीराम जन्मभूमि पर बने मन्दिर को तोड़ कर बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया गया था। इसके बाद से ही हिन्दू समाज अपने आराध्य के जन्मस्थल पर मन्दिर निर्माण के लिए लगातार संघर्ष करता रहा है।

समय-समय पर मिल रही सफलता से समाज आंदोलन के लिए प्रेरित होता रहा। विहिप और अन्य प्रमुख हिन्दू संगठनों के साथ भाजपा द्वारा 1984 में मन्दिर आन्दोलन प्रारम्भ किया गया। राम भक्तों की एकजुटता के दबाव में 01 फरवरी 1986 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार को श्रीराम जन्मभूमि पर लगे ताले को खोलना पड़ा, जिससे आम भक्तों को श्रीराम लला के दर्शन मिलने लगे। इस घटना के बाद हिन्दू समाज के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा जाने लगा। उसी इतिहास में कुछ पन्ने 30 अक्टूबर और 02 नवम्बर, 1990 को राम जन्मभूमि के समीप की गलियों में हुए राम भक्तों के नरसंहार के भी है।

कारसेवकों ने तोड़ा था मुलायम का दंभ

Kalyan Singh

श्रीराम जन्मभूमि के लिए हिन्दू समाज की एकता से उत्साहित विहिप और प्रमुख धर्माचार्यों ने 30 अक्टूबर 1990 को श्रीराम जन्मभूमि पर कारसेवा की घोषणा कर दी। उसी समय तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवानी ने भी राम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण के लिए जनसमर्थन जुटाने हेतु 25 सितम्बर 1990 को सोमनाथ से रथयात्रा शुरू की, जिसे विभिन्न राज्यों से होते हुए 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर 23 अक्टूबर को उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। दूसरी ओर विहिप द्वारा तय कार्यक्रम के अनुरूप पूरे देश से राम भक्त कारसेवा के लिए अयोध्या की ओर बढ़ चले।

मुस्लिमों के मसीहा माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश से लगी अन्य राज्यों की सीमाओं को सील कराते हुए आने वाले सभी रास्तों को बंद करा दिया। अयोध्या में प्रवेश रोकने के लिए पुलिस, पीएसी और सशस्त्र बल के जवानों की दीवार बना दी गई लेकिन जब इतने से भी रामभक्तों का पहुंचना जारी रहा तो अयोध्या की ओर आने वाले सभी मार्गों पर चेकिंग प्वाइंट बना दिए गए और एक-एक व्यक्ति को बस, ट्रेन और छोटी गाड़ियों से उतार कर उनके बारे में जानकारी ली जाने लगी, उसमें जो भी कारसेवक मिला, उसे अस्थाई जेल में डाल दिया गया लेकिन वहां खाने और सोने की कोई व्यवस्था नही थी।

आज की युवा पीढ़ी को शायद यह अतिशयोक्ति लगे लेकिन सच यह है कि लाखों कारसेवक सारी सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देते हुए 250-300 किमी की दूरी जंगल, पगडंडियों के रास्ते चल कर अयोध्या पहुंचने में सफल हो गए। कारसेवा का नेतृत्व विहिप के महासचिव अशोक सिंहल और श्रीश चन्द्र दीक्षित जैसे लोगों को करना था इसलिए सरकार ने पूरी ताकत लगा दी कि यह लोग अयोध्या न पहुंच पाएं लेकिन यह लोग भी गुपचुप तरीके से तीन दिन पहले ही अयोध्या पहुंच गए। यद्यपि मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पूरे दंभ से कहते रहे कि अयोध्या में ऐसी व्यवस्था है कि “परिंदा पर नहीं मार सकता है’’ और “कारसेवको को दूरबीन से भी बाबरी मस्जिद नहीं दिखाई पड़ेगी।’’

कारसेवा के लिए निर्धारित तिथि 30 अक्टूबर को अशोक सिंहल, आचार्य वामदेव महराज और महंत नृत्य गोपालदास की अगुवाई में कारसेवकों का एक जत्था राम जन्मभूमि की ओर बढ़ चला। कारसेवक राम जन्मभूमि पर मन्दिर तो बनाना चाहते थे लेकिन बाबरी मस्जिद का क्या करना है, यह किसी को नहीं पता था। जन्मभूमि से पहले हनुमान गढ़ी चौराहे के पास जब जत्था आगे बढ़ा, तो पहले पुलिस ने राम भक्तों पर लाठी चार्ज किया फिर आंसू गैस के गोले दागे लेकिन निहत्थे कारसेवक पूरे जोश में आगे बढ़ते रहे। इसी बीच एक पुलिस वाले की लाठी अशोक सिंहल के सिर पर लगी और खून का फौव्वारा निकलने लगा।

श्रीराम जन्मभूमि पर प्रतिष्ठित होंगे रामलला, करोड़ों भक्तों का स्वप्न होगा साकार

अशोक जी के घायल होने का समाचार जब साधु-संतों और अन्य कारसेवकों को पता चला तो वह उग्र होकर बाबरी मस्जिद की ओर चल दिए। उत्साही कारसेवकों और संतों ने बाबरी मस्जिद के तीनों दरवाजों को धक्का देकर खोल दिया और अन्दर घुस गए। उत्साह इतना कि देखते-देखते कुछ लोग बाबरी मस्जिद के गुबंद पर चढ़ गए और वहां भगवा ध्वज फहरा कर “जय श्रीराम’’ के नारे लगाने लगे। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का दंभ झूठा साबित होने लगा। ऐसे में मुलायम सिंह सरकार के कतिपय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी वाहवाही के लिए निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां चलवाने लगे। वहां मौजूद साधु-संतों, कारसेवकों के साथ साथ पत्रकारों के लिए भी यह अकल्पनीय था। इस नरसंहार में कितने निर्दोष कारसेवक मारे गए, इसका कयास ही लगाया गया क्योंकि पुलिस ने घटनास्थल से सब को खदेड़ दिया था।

कुछ लाशों को पुलिस वालों ने अपनी गाड़ियों में लाद कर दूर कहीं ठिकाने लगे दिए। पुलिस अधिकारी मरने वालों का आंकड़ा बताने से बचते रहे। माना जाता है कि कम से कम दर्जनों गोली के शिकार हुए जबकि घायलों की संख्या सैकड़ों में पहुंच गई। उस समय मीडिया आज जैसा शक्तिशाली और आधुनिक संसाधनों से लैस नहीं था, जिसके कारण लोग सिर्फ इस नरसंहार को पढ़ कर और चंद फोटो देख कर स्थिति की भयावहता की कल्पना करते रहे। इस नरसंहार में मारे गए लोगों में कुछ ऐसे स्थानीय लोग भी थे, जो एकादशी की पंचकोशी परिक्रमा के लिए आए थे। इन्हीं में से एक राम मन्दिर के पास मिठाई की दुकान चलाने वाले बासुदेव गुप्ता थे, जो परिक्रमा करने गए लेकिन परिक्रमा पर रोक के चलते लौटते समय पुलिस की गोली उनके पेट को फाड़ती बाहर निकल गई थी।

30 अक्टूबर को कारसेवकों की नृशंस हत्या और यातनाओं के बाद भी उनके साथी कारसेवकों के मन से डर और पीड़ा गायब थी। अधिकांश कारसेवकों के मन में बाबरी मस्जिद के गुबंद पर भगवा फहराए जाने का विजय पर्व जैसा उल्लास और मुलायम सिंह के गुरुर को चूर-चूर करने का संतोष था। कारसेवकों की टोलियां घूम-घूम कर नारे लगा रहीं थी “रामनाम की ओढ़ के चादर हम अयोध्या आए हैं, मर जाएंगे मिट जाएंगे मन्दिर यहीं बनाएंगे’’। इस नरसंहार में मारे गए कारसेवकों में से जिनका शव मिला, उनका अंतिम संस्कार 01 नवम्बर 1990 को अयोध्या में ही सरयू नदी के तट पर किया गया।

02 नवंबर 1990 को उत्साही रामभक्तों ने एक बार फिर कारसेवा के लिए हुंकार भरी। एकत्रित कारसेवकों ने सुबह रामलीला मैदान में पूजा पाठ किया और फिर बाबरी मस्जिद की ओर बढ़े चले। भजन-कीर्तन करते चल रहे राम भक्तों में से तमाम लोगों ने वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों के पैर छूने की रणनीति अपनाई। इस अप्रत्याशित घटना से वहां तैनात अधिकांश पुलिस बल के लोग पीछे हट कर उन्हें रास्ता देने लगे, जिससें जुलूस लगातार आगे बढ़ता गया। बौखलाए अधिकारियों के आदेश पर अचानक हालात बदल गए।

एक बार फिर भीड़ को रोकने और तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे गए और लाठीचार्ज शुरू हो गया, लेकिन 30 अक्टूबर की तरह उस दिन भी कारसेवकों की कुछ टुकड़ियां बाबरी परिसर में पहुंच गईं और मस्जिद को आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया। पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों ने 72 घंटे में दूसरी बार फायरिंग करके कारसेवकों को हनुमानगढ़ी के आस-पास की गलियों में खदेड़ दिया। उस दिन ऐसा करना पुलिस की रणनीति का हिस्सा था क्योंकि तंग गली के दोनों छोर तथा गली मे बने भवनों की छतों पर केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल तैनात थे और जैसे ही कारसेवक गली में गए, उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई। लोग जान बचाने के लिए भागने लगे, तो कुछ लोग जमीन पर लेट गए। छतों पर तैनात केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवान गोलियां चला रहे थे।

माना जाता है कि इस नरसंहार में सौ से अधिक लोग मारे गए और बहुतायत संख्या में लोग घायल हुए थे। जिन लोगों ने जान बचाने के लिये आस-पास के घरों में शरण ली थी, उन्हें भी बाहर खींच कर मार डाला गया। कहा जाता है कि सरयू तट पर लाशों का अंबार लग गया था। पश्चिम बंगाल से कारसेवा करने आए दो सगे भाइयों राम कुमार कोठारी और शरद कोठारी को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के लोगों ने एक घर से निकाल कर मार दिया। यह वही कोठारी बंधु थे, जिन्होंने 30 अक्टूबर को बाबरी गुंबद पर चढ़ कर भगवा फहराया था। रमेश कुमार पाण्डेय प्रति दिन रामलला के दर्शन करते थे, उस दिन भीड़ देखा तो लौटने लगे, तभी उन्हें पीछे से उनको गोली मार दी गई। अलवर (राजस्थान) के राम अवतार सिंघल जयपुर के जत्थे के साथ आए थे।

परिवार को 02 नवम्बर को पता चला कि राम अवतार पुलिस की गोली से शहीद हो गए, उनकी लाश भी परिजनों को नहीं मिली। बड़ी छानबीन के बाद एक वीडियो से परिजनों को पता चला कि हैंडपंप पर पानी पीते हुए राम अवतार को पुलिस ने गोली मारी थी लेकिन उसके बाद लाश कहां गई, यह पता नहीं चल सका। 30 अक्टूबर की तरह इस नरसंहार के बाद भी तमाम कारसेवकों की लाशों को पुलिस वालों ने अपनी गाड़ियों में लाद कर अज्ञात स्थानों पर चुपके से अन्तिम संस्कार कर दिया, ताकि मरने वालों की संख्या कम दिखाई जा सके। प्रत्यक्षदर्शियों और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश लोगों को सिर और सीने में गोली लगी थी। कई कारसेवकों के सिर या सीने में 5 से 7 गोलियां मारी गई थीं।

कल्याण सिंह ने कुर्बान कर दी थी सीएम की कुर्सी

श्रीराम जन्मभूमि पर प्रतिष्ठित होंगे रामलला, करोड़ों भक्तों का स्वप्न होगा साकार

इस घटना के कुछ माह बाद ही बाद अप्रैल 1991 में मुलायम सिंह की सरकार को अल्पमत के कारण त्यागपत्र देना पड़ा। 1991 के मध्यावधि विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार स्थापित हुई। 06 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में पुनः कारसेवा के लिए जुटे विहिप, शिवसेना और अन्य हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं, कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को कुछ ही घंटों में जमीदोंज कर दिया। बाबरी ढांचा गिराए जाने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उसी शाम त्यागपत्र दे दिया। 07 जनवरी 1993 को केन्द्र सरकार ने अध्यादेश जारी करके सम्पूर्ण मन्दिर परिसर को अधिगृहीत कर लिया।

केन्द्र में तत्समय स्थापित सरकारों के सेक्युलर रवैये से नाराज हिन्दू संगठनों ने राम जन्मभूमि के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पूर्व से चल रहे वाद में प्रभावी पैरवी शुरू की लेकिन 30 सितम्बर 2010 को उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में विवादित भूमि को तीन अलग-अलग पक्षकारो को दिए जाने का निर्णय दिया। न्यायालय का निर्णय रामलला के अनुरुप न होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय में अपील दाखिल कर रामलला की सम्पूर्ण भूमि पर दावा किया गया। आखिरकार 09 नवम्बर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला राम मन्दिर के पक्ष में देते हुए सम्पूर्ण विवादित भूमि 2.77 एकड़ को जन्मभूमि माना और उस पर रामलला का अधिकार बताया और मस्जिद के लिए विवादित स्थल से दूर 05 एकड़ भूमि दिए जाने का आदेश सरकार को दिया।

इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद श्रीराम जन्मभूमि पर जन भावनाओं के अनुरुप भव्य मन्दिर के निर्माण हेतु 05 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री के हाथों से श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण का भूमि पूजन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था और अब राम जन्मभूमि पर निर्मित होने वाले मन्दिर के प्रथम तल का निर्माण कार्य अपने आखिरी चरण में होने के कारण प्रभु श्रीराम को विधि-विधान से वहां स्थापित किए जाने की तैयारी शुरु हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 22 जनवरी 2024 को अपरान्ह 12.20 बजे श्री रामलला की पूरे विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा करेंगे।

इस अवसर पर देश और विदेश से आने वाले 4,000 प्रमुख धर्माचार्यों, साधु-संतों के अतिरिक्त लगभग 2,500 विशिष्ट गणमान्य अतिथि, जिसमें शहीद कारसेवकों के परिजन भी शामिल हैं, कार्यक्रम स्थल पर उपस्थित रहेंगे। गर्भगृह में रामलला की स्थापना के साथ ही करोड़ों रामभक्तों का वह स्वप्न तो साकार रूप लेगा ही जिसमें उन्होनें अपने आराध्य के लिए टाट के मन्दिर की जगह एक भव्य और दिव्य मन्दिर की कल्पना करते रहे, लेकिन इसी के साथ उन शहीद कारसेवकों की भटक रही हुतात्माओं को शान्ति और मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। शहीद राम अचल की पत्नी ने कुछ समय पहले कहा था कि जिस दिन भगवान राम अपने मन्दिर में स्थापित हो जाएंगे, उसी दिन हमारे पति की आत्मा को शान्ति मिल जाएगी।

हिन्दू समाज का विजयपर्व है रामलला की प्राण प्रतिष्ठा

श्रीराम जन्मभूमि पर प्रतिष्ठित होंगे रामलला, करोड़ों भक्तों का स्वप्न होगा साकार

अयोध्या में नवनिर्मित रामलला मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम तय होते ही तैयारियां तेज हो गई हैं। मन्दिर के बचे हुये कार्यों को पूरा करने के लिए दिसम्बर, 2023 का लक्ष्य दिया गया है। पूज्य धर्माचार्यों, साधु-संतों, कर्मकांडी ब्राम्हणों और ज्योतिषाचार्यों से सम्पर्क कर विवाद रहित कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार हो रही है, ताकि भूमि पूजन वाले कार्यक्रम की तरह कोई विवाद सामने न आए। कार्यक्रम में देश-विदेश के करोड़ों राम भक्तों की एक साथ भौतिक उपस्थिति सम्भव नही है, इसलिए उनको भावनात्मक रुप से जोड़ने के कार्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विहिप अपने अन्य सहयोगी संगठनों के सहयोग से रामलला के प्राण प्रतिष्ठा दिवस को पूरे देश में विजय और उल्लास के पर्व के रूप में मनाने को कृत संकल्प दिखाई पड़ रहे हैं। जन-जन को कार्यक्रम से जोड़ने के लिए स्थानीय मन्दिरों और घरों में यज्ञ, अनुष्ठान करने और शाम को दीप जलाने की अपील की जा रही है। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की तैयारियों के क्रम में 05 नवम्बर को रामलला के समक्ष अक्षत पूजन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

अक्षत तैयार करने के लिए चावल में देशी घी और हल्दी का विधि-विधान से मिश्रण किया गया। इस अक्षत को देश के पांच लाख गांवों में वितरित किए जाने की व्यवस्था विहिप द्वारा की गई है। विहिप के 50 प्रांतों से 100 पदाधिकारियों को पहले से ही अयोध्या बुलाया गया था। इन प्रांत प्रतिनिधियों को एक कलश में पूजित अक्षत के साथ निवेदन पत्रक देकर वापस भेज दिया गया है। इस पत्रक में राम भक्तों को राम मंदिर की संरचना व सुविधाओं के बारे में भी जानकारी दी गई है।

22 जनवरी को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के पहले विहिप के जिला और खंड के कार्यकर्ताओं के माध्यम से भगवान राम का प्रसाद अक्षत देश के 62 करोड़ भक्तों तक पहुंचाया जाना है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा के अनुसार अगले साल 1-15 जनवरी तक भारत के पांच लाख गांवों के मंदिरों में पूजित अक्षत पहुंचाकर उन्‍हें रामलला के दर्शन के लिए आमंत्रित किया जाएगा। रामभक्तों से 22 जनवरी को सुबह 11-1 बजे के बीच अपने-अपने स्थानों पर अनुष्ठान करने और शाम को दीपोत्सव मनाने की अपील की गई है। प्रयास है कि जब अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम चल रहा हो, उस समय देश के 05 लाख मन्दिरों में पूजा, यज्ञ या धार्मिक कार्यक्रम चल रहे हों।

राम मंदिर में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि के साथ ही अब उसका मुहूर्त भी तय हो गया है। 22 जनवरी 2024 को अभिजीत मुहूर्त मृगषिरा नक्षत्र में दोपहर 12.20 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने हाथों से भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। अयोध्या में जिस तरह दीपोत्सव मनाया गया था, उसी प्रकार भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के समय अयोध्या में मठ-मंदिरों को भी सजाया जाएगा और रामलला के मंदिर की विशेष फूलों से साज-सज्जा की जाएगी। कार्यक्रम को ऐतिहासिक और अभूतपूर्व बनाने के लिए उसको चार चरणों में बांटा गया है।

पहला चरण 19 नवम्बर से शुरु हो गया है, जो 20 दिसम्बर तक चलेगा। इस अवधि में समारोह की कार्ययोजना की रुपरेखा तैयार की जाएगी, जिससे आयोजन में कोई कमी न होने पाए। इसके लिए कई संचालन समितियां भी बनाई जा रही हैं, जिसमें कारसेवकों को शामिल किया जाएगा। इसी अवधि में विहिप के प्रत्येक प्रांत में जनपद व खंड़ स्तर पर 10-10 लोगों की टोली तैयार कराई जाएगी, जो 250 स्थानों पर बैठक करके समारोह में अधिक से अधिक लोगों की सहभागिता की अपील करेंगे। कार्ययोजना का दूसरा चरण 01 जनवरी से 20 जनवरी तक चलेगा।

इस अवधि में घर-घर सम्पर्क अभियान के तहत 10 करोड़ परिवारों को पूजित अक्षत, रामलला के विग्रह का चि़त्र और एक पत्रक दिया जाएगा और रामलला के उत्सव को मनाने की अपील की जाएगी। तीसरे चरण में केवल प्राण प्रतिष्ठा की तिथि यानी 22 जनवरी है। इस दिन पूरे देश में व्यापक पैमाने पर उत्सव जैसा वातावरण बनाए जाने और मन्दिरों, घरों में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही शाम को दीपोत्सव की तैयारी है।

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आयोजकों के अनुसार चैथा चरण 26 जनवरी से 20 फरवरी तक चलेगा। इस चरण में प्रांतवार राम भक्तों, कारसेवकों और कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक संख्या में राम लला के दर्शन कराने की योजना है। आयोजकों की मंशा देशभर में एक मुहिम चलाने की है, ताकि अधिक संख्या में रामभक्त अयोध्या पहुंच कर भगवान श्रीराम के दर्शन करें। बताया जा रहा है कि अवध प्रांत के कार्यकर्ताओं हेतु 31 जनवरी और 01 फरवरी की तिथि निर्धारित है।

हरि मंगल

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