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Ram Mandir Prana Pratishtha: रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से पहले अनुष्ठान में प्रायश्चित-यज्ञशाला पूजा का क्या है महत्व ?

Ram Mandir Prana Pratishtha: अयोध्या में वह शुभ घड़ी अब नजदीक आ गई है। जब 22 जनवरी 2024 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। पीएम मोदी द्वारा अभिषेक के बाद 70 एकड़ में फैला यह मंदिर भक्तों के लिए खोल दिया जाएगा। इसके लिए पूजा और अनुष्ठान का सिलसिला आज मंगलवार यानी 16 जनवरी से शुरू हो हो गया है, जो 22 जनवरी तक चलेगा।

श्री राम जन्मभूमि अयोध्या में आज से श्री राम लला के प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान शुरू हो गया है। इसकी शुरुआत वैदिक परंपराओं के अनुसार की गई है। आज प्रायश्चित पूजन एवं कर्म कुटी (यज्ञशाला) पूजन से हुआ। लेकिन हर किसी के मन में यह जिज्ञासा है कि मूर्ति प्रतिष्ठित करने की वैदिक परंपरा आमतौर पर प्रायश्चित और कर्म कुटी की पूजा यानी यज्ञ वेदिका की पूजा से ही क्यों शुरू होती है?

आचार्य सरोजकांत मिश्र बताते हैं कि यह पूजा जीवन के किसी भी क्षण जाने-अनजाने में हुई हर गलती या पाप का प्रायश्चित है। मनसा, वाणी और कर्मणा होनी चाहिए। इसे निर्धारित विधि का पालन करते हुए मंत्र शक्ति से पूरा किया जाता है। एक तरह से यह प्रक्रिया शरीर, मन और वाणी की शुद्धि है।

वैदिक साहित्य में प्रायश्चित का महत्व

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दरअसल वैदिक साहित्य में प्रायश्चित का बड़ा महत्व है। सामान्य अर्थ में यह पछतावे के साथ गलती की स्वीकारोक्ति है। प्राण प्रतिष्ठा से पहले यजमान यह कार्य करता है। वैदिक परंपरा के अनुसार, वह शारीरिक, मानसिक, आंतरिक और बाह्य तरीकों से पश्चाताप करता है। बाह्य प्रायश्चित के लिए 10 अनुष्ठान स्नान का प्रावधान है। इसे पंच द्रव्य, औषधि एवं भस्म सामग्री के समावेश से पूरा किया जाता है। स्वर्ण, अर्थ (धन), दान और गोदान भी प्रायश्चित पूजा की श्रेणी में आते हैं।

कर्मकुटी (यज्ञशाला) पूजा की क्या पड़ती है आवश्यकता ?

बता दें कि किसी भी मूर्ति को स्थापित करने से पहले कर्मकुटी (यज्ञशाला) की पूजा करने के सवाल का जवाब देते हुए आचार्य सरोजकांत मिश्र कहते हैं कि कर्मकुटी का अर्थ है यज्ञशाला की पूजा करना। यज्ञशाला प्रारम्भ करने से पूर्व हवन कुण्ड या वेदिका पूजन की वैदिक व्यवस्था है।

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क्या है अधिवास ?

कहा जाता है कि मूर्तियां तराशने के लिए छेनी हथौड़ी का प्रयोग किया जाता है। शिल्पकार के औजारों से बनी मूर्ति को चोटें आती हैं। इन सबको ठीक करने की भी व्यवस्था की गई है। मूर्ति को एक रात पानी में रखना जलाधिवास है और उसे अनाज में दबा कर रखना धन्याधिवास है। दोषों और पत्थर की गुणवत्ता का पता लगाने के लिए मूर्ति को अनुष्ठानिक स्नान कराया जाता है। व्यवस्था में मूर्ति को पंचामृत, सुगंधित फूलों और पत्तियों के रस, गाय के सींगों पर पानी डालना और गन्ने के रस से स्नान कराना शामिल है।

पूजन विधि 16 जनवरी से 21 जनवरी तक चलेगी

16 जनवरी को प्रायश्चित्त और कर्मकूटि पूजन

17 जनवरी को मूर्ति का परिसर प्रवेश

18 जनवरी को गर्भ गृह में राम लला की मूर्ति विराजित होगी। साथ ही जल यात्रा, जलाधिवास, गंधाधिवास और तीर्थ पूजन होगा।

19 जनवरी को घृताधिवास, औषधाधिवास, केसराधिवास, धान्याधिवास पूजन ।

20 जनवरी को फलाधिवास, पुष्पाधिवास, शर्कराधिवास पूजन।

21 जनवरी को मध्याधिवास, शय्याधिवास पूजन।

22 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर प्राण प्रतिष्ठा शुरू होगी।

बता दें कि राम मंदिर में 121 आचार्य होंगे जो समारोह की सभी अनुष्ठान प्रक्रियाओं का समन्वय, समर्थन और मार्गदर्शन करेंगे। श्री गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ सभी प्रक्रियाओं की निगरानी, समन्वय और मार्गदर्शन करेंगे। काशी के श्री लक्ष्मीकांत दीक्षित मुख्य आचार्य होंगे। 18 जनवरी को रामलला की गहरे रंग की मूर्ति गर्भगृह में स्थापित की जाएगी। इस मूर्ति को कर्नाटक के अरुण योगीराज ने बनाया है।

कौन हैं मूर्तिकार अरुण योगीराज?

मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकारों के परिवार से आने वाले अरुण योगीराज वर्तमान में देश में सबसे अधिक मांग वाले मूर्तिकार हैं। अरुण के पिता योगीराज भी एक कुशल मूर्तिकार हैं। अरुण योगीराज के दादा बसवन्ना शिल्पी को मैसूर के राजा का संरक्षण प्राप्त था। अरुण योगीराज भी बचपन से ही नक्काशी के काम से जुड़े रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक अरुण एमबीए पूरा करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक एक निजी कंपनी में काम किया। लेकिन मूर्तिकला पेशे में उनकी जन्मजात कुशलता के कारण उनका काम करने में मन नहीं लगा। इसके बाद 2008 से उन्होंने नक्काशी के क्षेत्र में अपना करियर जारी रखा।

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