Ram Janmabhoomi, लखनऊः 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह में रामलला विराजमान होंगे। यह अवसर अनेक संघर्षों और असंख्य बलिदानों के बाद आया है। राम जन्मभूमि के लिए संघर्ष करने वाले रामभक्तों में हिंदू कुल गौरव के लिए प्रसिद्ध कल्याण सिंह का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वे न केवल राम मंदिर आंदोलन के संकल्प से उसकी सफलता के साक्षी थे, बल्कि राम मंदिर आंदोलन के नायक भी थे।
कल्याण सिंह ने राम जन्मभूमि स्थल पर खड़े कलंक के ढांचे को हटाने का काम किया। कल्याण सिंह न होते तो शायद अयोध्या में श्री रामलला के मंदिर का सपना सिर्फ सपना ही रह जाता। 6 दिसंबर 1992 को जब कार सेवकों द्वारा विवादित ढांचा गिराया गया, तब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र भदौरिया बताते हैं कि जब ढांचा गिराया जा रहा था तो उनके कैबिनेट सहयोगियों ने उनसे पूछा कि अब क्या होगा, तब कल्याण सिंह ने कहा था कि देखिए, मेरे पास दो ही विकल्प हैं, या तो मैं अपनी सरकार बचाऊं या अपने कारसेवकों को। जब इतना बड़ा आंदोलन अपने अंजाम तक पहुंचने वाला है तो यह कलंक मिट जाए, ताकि अनगिनत लोगों का बलिदान व्यर्थ न जाए।
जब कल्याण सिंह ने कहा…मैं गोली नहीं चलाऊंगा, मैं गोली नहीं चलाऊंगा
जब कल्याण सिंह 5 कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास पर अपने कैबिनेट सहयोगी लालजी टंडन के साथ बैठकर टीवी देख रहे थे, तभी उत्तर प्रदेश के डीजीपी एसएम त्रिपाठी दौड़कर आए और मुख्यमंत्री से मिले और कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी। कल्याण सिंह ने गोली चलाने की इजाजत नहीं दी। जब कारसेवक ढांचा गिरा रहे थे, इसी बीच दोपहर करीब 1 बजे तत्कालीन केंद्र सरकार के गृह मंत्री शंकरराव चव्हाण ने कल्याण सिंह को फोन किया और कहा कि कारसेवक गुंबद पर चढ़ गए हैं, इस पर कल्याण सिंह ने कहा कि कारसेवकों ने गुंबद को तोड़ना भी शुरू कर दिया है। लेकिन मैं कारसेवकों पर गोली नहीं चलाऊंगा। मैं गोली नहीं चलाऊंगा, मैं गोली नहीं चलाऊंगा।
‘जो ढांचा ढहा वह कलंक का ढांचा था’
उधर, विवादित ढांचा गिरते ही कल्याण सिंह ने तुरंत मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अधिकांश लोग साम्यवादी देश के पत्रकारों और बहुसंख्यक हिंदुओं को अपमानित करने का प्रयास कर रहे थे। सारे नेता चुप थे। कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा था। कल्याण सिंह की चुप्पी ही जवाब थी। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और पत्रकारों के सभी सवालों का खुले दिल से जवाब दिया। कल्याण सिंह ने कहा, ‘जो ढांचा ढहा वह कलंक का ढांचा था।’ जो भारत के गौरव को नष्ट करने के लिए बनाई गई थी। मुझे उसके विनाश पर गर्व है। इन तीन पंक्तियों के माध्यम से ऐसा लगा मानो उन्होंने संपूर्ण हिंदू समाज को जीवनदान दे दिया हो।
एक नहीं सैकड़ों शक्तियों पर हमला कर सकता हूं
जब कल्याण सिंह ने कहा कि यह सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और इसका मकसद पूरा हो गया। मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं है। उन्होंने कहा, क्या राम मंदिर के लिए कोई सैकड़ों शक्तियों पर हमला कर सकता है? उन्होंने बाबरी विध्वंस की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि अगर आपको कोर्ट में केस करना है तो मेरे खिलाफ करो। यदि आप कोई जांच आयोग गठित करना चाहते हैं तो मेरे खिलाफ गठित करें।
यदि आप किसी को दण्ड देना चाहते हैं तो मुझे दीजिये। ऐसी निर्भीकता शायद ही किसी नेता में देखने को मिलती है। सत्ता के प्रति अरुचि और राजगद्दी के त्याग का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है? सत्ता और गद्दी के लिए क्या-क्या हथकंडे नहीं अपनाए जाते। जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने 76 युद्ध लड़े और लाखों लोगों का बलिदान दिया। जब कल्याण सिंह ने गद्दी छोड़ी तो हिंदुओं की गुलामी का प्रतीक बाबरी ढांचा इतिहास के कूड़ेदान में था।
मानो कल्याण सिंह का जन्म ही राम मंदिर के लिए हुआ हो
वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र भदौरिया ने बताया कि अगर कल्याण सिंह के मन में सत्ता के प्रति रत्ती भर भी मोह होता तो वह कलंक का प्रतीक बाबरी ढांचा आज भी हमारी मर्दानगी को कोस रहा होता और जो रामलला का भव्य मंदिर बन रहा है। कुछ ऐसा जो हमने अपने जीवनकाल में नहीं देखा होगा। जैसा कि आप देख सकते हैं, हिन्दू समाज और देश संभवतः इससे वंचित रहा होगा। मानो उनका जन्म ही राम मंदिर के कल्याण के लिए हुआ हो। राम मंदिर के पक्ष में आए कोर्ट के फैसले पर उन्होंने कहा कि हमारा सपना पूरा हुआ है।
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गौरतलब है कि कल्याण सिंह का जन्म 05 जनवरी 1932 को अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में हुआ था। 21 अगस्त, 2021 को उनका निधन हो गया। पढ़ाई के दौरान वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आये। संघ के क्षेत्र प्रचारक रहे ओम प्रकाश ने कल्याण सिंह को स्वयंसेवक बनाया था। कल्याण सिंह संघ के तहसील प्रभारी थे।
बाद में वे जनसंघ के संगठन मंत्री रहे। कल्याण सिंह उस पीढ़ी के उन नेताओं में थे जिन्होंने साइकिल चलाकर संगठनात्मक कार्य किया। 1962 में जनसंघ से अलीगढ़ के अतरौलरी से चुनाव लड़े लेकिन हार गये, फिर चुनाव लड़े और जीते। तब से वह लगातार आठ बार विधायक चुने गए। वह एक जमीन से जुड़े राजनेता और कुशल प्रशासक थे।
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