लखनऊः कोरोना की दूसरी लहर को लेकर भले ही सरकारों के माथे पर चिंता की लकीरें दिख रही हों, पर लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभालने वाले जिम्मेदार ही इसके प्रति बेपरवाह नजर आ रहे हैं। स्वास्थ्य केंद्रों पर ही कोरोना गाइडलाइन का पालन नहीं हो रहा है और कोविड हेल्प डेस्क बस नाम के लिए चल रहे हैं।
यह हाल है नगरीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ऐशबाग का। यहां पर जिम्मेदार जमकर कोरोना गाइडलाइन की धज्जियां उड़ा रहे हैं। केंद्र पर कोविड हेल्प डेस्क तो बनाया गया है, लेकिन अधिकतर समय यह सूना ही पड़ा रहता है। जो लोग टीकाकरण या अन्य जानकारियों के लिए आते भी हैं, उन्हें इधर-उधर भटकना पड़ता है। यही नहीं केंद्र पर मास्क और सेनेटाइजर के प्रयोग को लेकर कोई विशेष सतर्कता नहीं दिखी। इसके अलावा हजारों लोगों के स्वास्थ्य देखभाल की जिम्मेदारी संभालने वाला यह केंद्र खुद बीमार पड़ा हुआ है, लेकिन इसका इलाज करने वाला कोई नहीं है। इस केंद्र पर केवल चार डॉक्टरों की ही तैनाती है, जबकि मेडिकल स्टाफ की संख्या महज दो हैं। विशेषज्ञ चिकित्सकों की महीनों से तैनाती न होने की वजह से यहां आने वाले मरीजों को बिना इलाज के ही लौटना पड़ता है। 30 बेड वाले इस स्वास्थ्य केंद्र पर हर दिन करीब 150-200 मरीज ओपीडी में आते हैं, लेकिन यहां व्याप्त अव्यवस्थाओं के चलते अधिकतर को निराश होकर ही लौटना पड़ता है। हालांकि जिम्मेदार तैनात चिकित्सकों के भरोसे ही बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने का दावा तो करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत तो कुछ और ही है।
राम भरोसे सफाई व्यवस्था
स्वास्थ्य केंद्रों पर लोगों का इलाज होता है और उन्हें बेहतर साफ-सफाई रखने की सीख भी दी जाती है, लेकिन यहां पर साफ-सफाई व्यवस्था राम भरोसे ही चल रही है। अस्पताल में जहां-तहां पसरी गंदगी देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने दिनों के अंतराल पर सफाई होती है। जगह-जगह दीवारें व सीढ़ियों के कोने पान की पीक से लाल हो गए हैं तो कमरों के अंदर अलमारी, मेज और बिखरी फाइलें जिम्मेदारों की लापरवाही की गवाही दे रही थीं। यही नहीं अस्पताल परिसर के बाहर खड़ी बेतरतीब गाड़ियों के चलते लोगों को अस्पताल तक जाना भी मुश्किल हो रहा था। कई गाड़ियां तो ठीक गेट के सामने ही पार्क की गई थीं।
दावा कुछ और जमीनी हकीकत कुछ और
यहां की चिकित्सा अधीक्षिक मंजू चैरसिया का दावा है कि हमारे यहां किसी प्रकार की दवाओं की कमी नहींं है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। दवा वितरण केंद्र पर दवा ले रहे कई मरीजों ने बताया कि डॉक्टरों द्वारा लिखी जाने वाली कुछ दवाएं तो यहां मिल जाती हैं, बाकी बाहर से ही लेनी पड़ती हैं।
गंदे शौचालय में निवृत्त होना मजबूरी
अस्पताल में नीचे की मंजिल पर बना एकमात्र शौचालय सफाई न होने के चलते गंदगी और बदबूदार नजर आया। यहां से उठ रही दुर्गंध लोगों को नाक पर रूमाल रखने को मजबूर कर देती है। लगाए गए वॉश बेसिन में पानी ही नहीं आ रहा था तो हैंडवॉश आदि भी नदारद दिखे। गंदगी के बावजूद यहां भर्ती मरीजों व उनके तीमारदारों को मजबूरन यहां निवृत्त होना पड़ता है।
पेयजल व्यवस्था दिखी बेहतर
अस्पताल प्रशासन पीने के पानी की व्यवस्था पर प्रशंसा का पात्र है। अस्पताल में पीने के पानी के लिए नीचे वाटर कूलर तो ऊपरी मंजिल पर आरओ की व्यवस्था है। तीमारदारों और मरीजों को यहां पर आरओ का पानी मिलता है।
यह भी पढ़ेंः-‘रीडिंग स्टोर’ कर विभाग को चूना लगा रहीं बिलिंग एजेंसियां
इनकी सुनिए
डॉक्टरों की कमी हमारे लिए बड़ी समस्या है, जिसको लेकर उच्च अधिकारियों को सूचित करा दिया गया है। जितने चिकित्सकों की तैनाती है, उसमें मरीजों को बेहतर सेवा देने का प्रयास किया जा रहा है। रही बात साफ-सफाई की तो स्टाफ की कमी के चलते थोड़ी परेशानी है, जिसे जल्द ही दूर कर लिया जाएगा।
डॉ. मंजू चैरसिया
चिकित्साधिकारी, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, ऐशबाग