वर्षा जल संचयन के लिए लानी होगी क्रांति

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Rain water harvesting : दुनिया भर में पानी की कमी एक गंभीर चिंता का विषय है। दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन को हाल ही में दुनिया का पहला जलविहीन शहर घोषित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने कुछ समय पहले चेतावनी दी थी कि 2025 तक दुनिया के करीब 1.20 अरब लोगों को स्वच्छ पेयजल मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। अब यह संकट हमारे सामने है। भारत में भी कई राज्यों में जलसंकट की स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की जनता पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है।

दक्षिण भारत के कई राज्यों में पानी की भीषण कमी है, यहां इंसान को पीने और नहाने के लिए तो पानी मिल जा रहा है, लेकिन खेती-किसानी के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिलने से किसानों की स्थिति बदहाल है। जिस तरह खाद्यान्न के संकट से उबरने के लिए देश में हरित क्रांति की गयी और भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पाद देश बन गया। दूध की समस्या से निपटने के लिए श्वेत क्रांति की गयी और भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर पहुंच गया। उसी प्रकार जल संकट से उबरने के लिए हमें पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ जल संचयन के क्षेत्र में भी क्रांति लानी होगी, तभी हम स्वयं को और अपनी आने वाली पीढ़ियों को जल संकट से बचाने में सफल हो सकेंगे।

भारत में 1966-67 की हरित क्रांति में मुख्य योगदान उन्नत किस्म के बीजों का रहा है। इसी क्रांति के बाद भारत में दुग्ध क्रांति, पीली क्रांति, गोल क्रांति, नीली क्रांति आदि की शुरुआत हुई और भारत दूध, सरसों, आलू और मत्स्य उत्पादन में आत्म निर्भर हो गया। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। भारत दूध और दालों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि चावल, गेहूं, गन्ना, मूंगफली, सब्जियां, फल और मछली उत्पादन के मामले में नंबर दो पर है। भारत में वैश्विक वर्षा का लगभग 04 प्रतिशत हिस्सा आता है और प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष जल उपलब्धता के मामले में यह दुनिया में 133वें स्थान पर है। केंद्रीय जल आयोग द्वारा किए गए “अंतरिक्ष इनपुट का उपयोग करते हुए भारत में जल उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन, 2019” शीर्षक अध्ययन के आधार पर, वर्ष 2021 और 2031 के लिए औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता क्रमशः 1,486 घन मीटर और 1,367 घन मीटर आंकी गई है।

अकेले भारत में ही व्यवहार्य भू-जल भण्डारण का आंकलन 214 बिलियन घन मीटर (बीसीएम) के रूप में किया गया है, जिसमें से 160 बीसीएम की पुनः प्राप्ति हो सकती है। इस समस्या का एक समाधान जल संचयन है। पशुओं के पीने के पानी की उपलब्धता, फसलों की सिंचाई के विकल्प के रूप में जल संचयन प्रणाली को विश्वव्यापी तौर पर अपनाया जा रहा है। भारत में पानी का प्रतिशत पृथ्वी के कुल पानी की तुलना में बहुत कम है। भारत की कुल भूमि का विस्तार लगभग 3.29 मिलियन वर्ग किलोमीटर है और इसमें जल का भूमिगत क्षेत्र लगभग 3,14,400 वर्ग किलोमीटर है। भारत में कुल अनुमानित भू-जल की कमी 122-199 बिलियन मीटर क्यूबिक की सीमा में है। इसमें निकाले गए भू-जल का 89 प्रतिशत सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किया जाता है, जिसकी वजह से पूरी दुनिया में हम सर्वाधिक उच्चतम श्रेणी के पानी के उपयोगकर्ता माने जाते हैं। भारत की कुल भूमि के लगभग 9.6 प्रतिशत भाग पर जल है, जिसमें नदियां, झीलें, तालाब, दलदल और ग्लेशियर शामिल हैं। देश में जल की सबसे ज़्यादा कमी राजस्थान, गुजरात और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में है। यहां कम वर्षा और शुष्क परिस्थितियों के कारण जल की कमी विशेष रूप से गंभीर है।

देश में जल संसाधनों की स्थिति

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एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 71 प्रतिशत जल संसाधन की मात्रा देश के 36 प्रतिशत क्षेत्रफल में सिमटी है और बाकी 64 प्रतिशत क्षेत्रफल के पास देश के 29 प्रतिशत जल संसाधन ही उपलब्ध हैं। पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा तालाब और जलाशय हैं, जबकि आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा टैंक हैं। तमिलनाडु में सबसे ज्यादा झीलें हैं और महाराष्ट्र जल संरक्षण योजनाओं वाला अग्रणी राज्य है। पिछले कुछ वर्षों में जल गुणवत्ता के आंकलन से पता चला है कि वर्ष 2015 में निगरानी की गई नदियों में से 70 प्रतिशत (390 में से 275) प्रदूषित पाई गईं, जबकि वर्ष 2022 में निगरानी की गई नदियों में से केवल 46 प्रतिशत (603 में से 279) प्रदूषित पाई गईं। इसका आशय है कि 2015 से 2022 के बीच नदियों की सफाई के लिए चलाए जा रहे अभियानों का असर दिखा और प्रदूषण में 24 फीसदी की कमी आई है, जो अत्यंत सराहनीय कदम माना जा सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल की कमी से कृषि उत्पादकता में कमी आती है, अपर्याप्त स्वच्छता के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं तथा जल संसाधनों को लेकर संघर्ष होता है। इसलिए जल संरक्षण के साथ-साथ नदियों और जलाशयों की स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

जल संकट की कमी के कारण और प्रभाव

जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण पानी की मांग लगातार बढ़ रही है, इसलिए मीठे पानी के स्रोतों की आपूर्ति सीमित बनी हुई है। इससे जल की कमी की स्थिति पैदा हो गई है, जहाँ उपलब्ध जल संसाधन आबादी की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। भारत, जो कृषि पर बहुत ज़्यादा निर्भर देश है, में इस संकट के दूरगामी परिणाम हैं। दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन को दुनिया का पहला जलविहीन शहर घोषित किया गया है। कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी थी कि 2025 तक दुनिया के करीब 1.20 अरब लोगों को स्वच्छ पेयजल मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। अब यह संकट हमारे सामने मुंह बाए खड़ा है। भारत में तेजी से बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जल निकायों का प्रदूषण बढ़ गया है, जिससे वे पीने लायक नहीं रह गए हैं।

इसके अलावा, अकुशल कृषि पद्धतियों और अत्यधिक भूजल दोहन ने महत्वपूर्ण जल स्रोतों को खत्म कर दिया है। यही नहीं इसकी वजह से जलवायु परिवर्तन स्थिति भी खराब हो चुकी है। परिणामस्वरूप अनियमित वर्षा का संकट उत्पन्न हो रहा है, नदियों और जलाशयों के पुनर्भरण पर असर पड़ रहा है। खराब जल प्रबंधन और उचित बुनियादी ढांचे की कमी भी संकट को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में जल की कमी के कई कारण हैं। तेजी से बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण जल निकायों का प्रदूषण बढ़ गया है, जिससे वे पीने लायक नहीं रह गए हैं। इसके अलावा, अकुशल कृषि पद्धतियों और अत्यधिक भूजल दोहन ने महत्वपूर्ण जल स्रोतों को खत्म कर दिया है। जलवायु परिवर्तन स्थिति को और भी खराब कर देता है, जिससे अनियमित वर्षा पैटर्न होता है और नदियों और जलभृतों के पुनर्भरण पर असर पड़ता है।

खराब जल प्रबंधन और उचित बुनियादी ढांचे की कमी भी पानी के संकट को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इससे खाद्यान्न उपलब्धता, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ेगा। पानी की कमी के कारण देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि पर बहुत बुरा असर पड़ेगा, इसकी वजह से फसल की पैदावार कम होगी और खाने वाली वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हो जाएगी। जब व्यक्ति को पीने और महाने के लिए स्वच्छ पानी नहीं मिलेगा, तो वह तमाम तरह की जलजनित बीमारियों से पीड़ित होगा। ऐसे में इलाज पर भी काफी धन खर्च करना पड़ेगा। जानवरों को खाने के लिए चारा और पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा, तो हमें पीने के लिए दूध और खेतों में डालने के लिए खाद का संकट भी उत्पन्न हो जाएगा।

सरकार की तरफ से किए जा रहे प्रयास

Rain water harvesting को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, अटल भूजल योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, अटल कायाकल्प और शहरी विकास मिशन जैसी विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के अंतर्गत गांवों में जल संरक्षण को लेकर व्यापक स्तर पर कार्य करवा रही है। केंद्र सरकार की हर घर नल योजना के साथ जोड़कर उत्तर प्रदेश सरकार ने जल सखी योजना की शुरुआत की है। इस योजना में ग्राम पंचायत स्तर पर पानी बिलों के वितरण और संग्रहण का कार्य महिलाओं को सौंपा जाएगा। योजना का कुशलता से प्रबंधन ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूह द्वारा किया जाएगा।

केंद्र सरकार राष्ट्रीय जल मिशन योजना के अंतर्गत जल संरक्षण को बढ़ाने, जल की बर्बादी को न्यूनतम करने तथा एकीकृत जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन के माध्यम से राज्यों के बीच और राज्यों के भीतर इसका अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने पर काम कर रही है। राष्ट्रीय जल मिशन के तहत “सही फसल“ नामक एक अभियान भी शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य किसानों को कम पानी की खपत वाली कृषि फसलों को अपनाने के लिए प्रेरित करना तथा मांग पक्ष प्रबंधन के एक भाग के रूप में कृषि में पानी का अधिक कुशलतापूर्वक उपयोग करना है। अटल भू-जल योजना को 01 अप्रैल 2020 से देश के सात राज्यों- गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लागू किया गया है।

अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) योजना के तहत मिशन जल आपूर्ति, सीवरेज और सेप्टेज प्रबंधन, तूफानी जल निकासी, हरित स्थान और पार्क तथा गैर-मोटर चालित शहरी परिवहन के क्षेत्रों में मिशन शहरों में बुनियादी शहरी बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। जल जीवन मिशन-हर घर जल को केंद्र सरकार राज्यों के सहयोग से चला रही है, जिसमें पानी की कमी वाले जिलों को चिन्हित कर वहां लोगों के घरों में पानी की पाइप लाइन बिछाकर घरों में नल के माध्यम से पानी पहुंचाया जा रहा है। इस योजना का मकसद प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर पानी उपलब्ध कराना है।

2019 में जल जीवन मिशन की घोषणा के समय, 3.23 करोड़ (17 प्रतिशत) ग्रामीण घरों में नल के पानी के कनेक्शन थे। पिछले साढ़े तीन वर्षों में लगभग 7.87 करोड़ ग्रामीण घरों को नल के पानी के कनेक्शन प्रदान किए गए हैं। फरवरी 2023 तक, देश के 19.36 करोड़ ग्रामीण घरों में से लगभग 11.10 करोड़ (57 प्रतिशत) घरों में नल के पानी की आपूर्ति की जा चुकी है। इसके अलावा 2021 में शुरू किए गए जल शक्ति अभियान के तहत जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन, पारंपरिक और अन्य जल निकायों/टैंकों का जीर्णोद्धार, बोरवेल का पुनः उपयोग और पुनर्भरण, वाटरशेड विकास और गहन वनीकरण को शामिल किया गया है। यही नहीं, 15 वें वित्त आयोग ने 2021-22 से 2025-26 के लिए अपनी रिपोर्ट में जल और स्वच्छता संबंधी गतिविधियों के लिए निर्धारित अनुदान का 60 प्रतिशत निर्धारित किया है।

जिसमें से 50 प्रतिशत जल घटक है, जिसका उपयोग ग्रामीण स्थानीय निकायों/पंचायती राज संस्थानों द्वारा किया जाएगा। ग्रामीण भारत में पानी की कमी की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 2022 में मिशन अमृत सरोवर की शुरुआत की थी। इस मिशन का लक्ष्य 15 अगस्त 2023 तक, भारत की आजादी के 75वें वर्ष को चिह्नित करने के लिए, प्रत्येक जिले में 75 तालाबों या जल निकायों का निर्माण या जीर्णोद्धार करना था। यह एक सफल कार्यक्रम साबित हुआ। 17 मई 2024 को मिशन के डैशबोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1,09,000 जगहों की पहचान निर्माण या जीर्णोद्धार के लिए की गई है और 66 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। यह शुरुआती लक्ष्य 50,000 अमृत सरोवरों से कहीं अधिक है। अब तक चिन्हित 34 प्रतिशत स्थानों पर तालाबों के निर्माण या जीर्णोद्धार के काम को पूरा करने के लिए नई सरकार को अमृत सरोवर मिशन को पूरा करने की समय सीमा को एक साल और बढ़ा देना चाहिए।

पौधरोपण की स्थिति में सुधार की जरूरत

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भारत में राज्य वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार देश का कुल वन क्षेत्र 7,13,789 स्क्वायर किलोमीटर में फैला है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.72 प्रतिशत है। देश के कुल 12.20 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र में सघन वनावरण फैला हुआ है। वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में कुल वन और वृक्षों का आवरण 80.9 मिलियन हेक्टेयर था, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62 प्रतिशत था। वहीं भारत राज्य वन रिपोर्ट 2024 के उपलब्ध आंकड़ों पर गौर करें तो उसके अनुसार भारत में कुल वन क्षेत्र 16.65 प्रतिशत है, जो 59,772.40 वर्ग किमी. में फैला हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय वनरोपण एवं पारिस्थितिकी विकास बोर्ड के अध्यक्ष ने देश में हर साल लगाये जाने वाले पौधों की संख्या और हकीकत को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि लगभग आधा वृक्षारोपण क्षेत्र काल्पनिक हैं और विभिन्न कारणों से बड़ी संख्या में पेड़ जीवित नहीं रह सके। इसके बावजूद यदि 9-10 मिलियन हेक्टेयर वृक्षारोपण से 02 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र बढ़ गया है, तो यह अभी भी एक उपलब्धि है।

सरकारी योजनाएं नहीं चढ़ पा रहीं परवान

पानी के संकट को दूर करने के लिए सरकार की तरफ से चलायी जा रही अनेकों योजनाएं उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पा रही हैं। सरकार गांवों में अमृत सरोवरों, तालाबों के सौन्दर्यीकरण, पौधरोपण, शौचालय निर्माण, अपशिष्ट प्रबंधन, नाली एवं नाला निर्माण पर सालाना करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन कहीं मानकों की अनदेखी के कारण तो कहीं जागरूकता के अभाव और उचित प्रबंधन न होने की वजह से लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है। तालाब बने तो हैं, लेकिन उनमें बरसात का पानी जमा नहीं होता। इसका सबसे बड़ा कारण जल प्रबंधन की सही व्यवस्था नहीं होना है। गर्मी के मौसम में गांवों में भी जल स्तर नीचे चला जाता है, जिसकी वजह से लोगों को परेशानी होती है।

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सरकार गांवों में हर घऱ को पांच-पांच पौधे और ट्री गार्ड देने का काम कर रही है, इसके बाद भी लोग पौधों को लगाने में रुचि नहीं ले रहे हैं। जो पौधे लगाये जाते हैं, वे उचित देखभाल न होने की वजह से सूख जाते हैं। इसलिए सरकार को जल संरक्षण, जल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य को पूरा करने में अधिक से अधिक लोगों को जोड़ना होगा। इसके लिए कागजी आंकड़े तैयार करने की जगह हकीकत में क्रांतिकारी स्तर पर काम करने की जरूरत है, तभी हम आने वाले समय में जल संकट की समस्या से निजात पा सकते हैं।

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