लखनऊः इस वर्ष आम के पेड़ों पर अच्छे बौर आए थे। इससे किसानों में बहुत खुशी थी, लेकिन इस बीच बारिश, ओले और आंधी ने आम की फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है। इसका असर अभी आने वाले दिनों में भी दिखेगा। आम के बौर पर फंफूद रोग सहित कई रोगों का असर दिखने लगे हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इसके लिए किसानों को दवा का छिड़काव करना चाहिए। उद्यान विभाग के उप निदेशक कौशल कुमार का कहना है कि इस समय खर्रा व फफूंद जनित रोगों का खतरा ज्यादा है। कुछ जगहों पर इसका असर भी दिखने लगा है। किसानों को इसके लिए दवाओं का छिड़काव करना चाहिए, जहां पर ओले पड़े हैं। वहां तो बौर ही झड़ गये हैं, लेकिन जहां बौर बचे हैं, उनकी रक्षा के उपाय करने चाहिए।
उन्होंने कहा कि खर्रा, दहिया रोग के लिए घुलनशील गंधक दो ग्राम प्रति लीटर व हेग्जा कोना जोल एक प्रतिशत प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है। यदि आम के बौर पुरी तरह लदे हों तो रासायनिक दवा का छिड़काव न करें। इससे परागण प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है। उद्यान अधिकारी डा. शैलेंद्र दुबे का कहना है कि आम के बौर के बढ़ने के समय फफूंदी के संक्रमण से फूल और फल झड़ने लगते हैं। इसका लक्षण दिखने पर मेन्कोजेब, कार्बेंडाजिम के घोल का छिड़काव करना चाहिए। उनका कहना है कि खर्रा रोग के लक्षण बौरों, पुष्पक्रम के डंठल, नई पत्तियों और फल आने के बाद फलों पर सफेद पाउडर के रूप में दिखायी देते हैं।
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उन्होंने कहा कि आम के गुजिया कीट की रोकथाम के लिए भी उपाय करने चाहिए। इन कीटों की वजह से पत्तियों और बौर चिपचिपा पदार्थ बढ़ता है, जिससे फफूंद की बढ़ने लगते हैं। अगर ये कीट पत्तियों और बौर पर दिखायी दें तो इनके प्रबंधन के लिए कार्बोसल्फान 25 ईसी का दो मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना उपयुक्त होता है। वहीं केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के आम पर शोध करने वाले विनीत सिंह का कहना है कि तापमान परिवर्तनशीलता ने आम में फूलों के पैटर्न को प्रभावित किया है। इसलिए फूलों के निकलने के समय, फूलों में लिंग अनुपात, फूल के अन्दर दैहिक क्रिया और जैव रासायनिक प्रक्रिया पर जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रभाव को समझाना अतिआवश्यक है ताकि एक समान फल उत्पादन एवं अच्छी उपज प्राप्त हो सके।
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