गुवाहाटी: कांग्रेस नेता राहुल गांधी रविवार को शिवसागर में चुनावी सभा के दौरान राज्य के ज्वलंत मुद्दों को असरदार तरीके से उठाने में पूरी तरह विफल रहे। राहुल के वक्तव्य को लेकर राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी के इस भाषण से असम की जनता पर कोई असर नहीं पड़ सकता है, क्योंकि राहुल गांधी उन मुद्दों को छू भी नहीं पाए जिन मुद्दों का सीधा-सीधा असर असम के वोटरों पर होने वाला था।
ज्ञात हो कि राहुल गांधी ने रविवार को 15 वर्षों तक असम के मुख्यमंत्री रह चुके तरुण गोगोई को अपना गुरू बताया। उन्हें ऐसा लगा कि शायद जनता तरुण गोगोई के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई है। लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं है। उनके 15 वर्षों के शासनकाल में हर तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा। चाहे वह बेरोजगारी हो या महंगाई या फिर शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य क्षेत्र- सभी में सरकार विफल रही।
वहीं राहुल गांधी ने तथ्यों को गलत तरीके से भी पेश किया। राहुल गांधी ने कहा कि असम समझौता तरुण गोगोई ने करवाया था। जबकि, सच्चाई से इसका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। असम समझौता से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष किसी भी रूप से तरुण गोगोई जुड़े नहीं थे। अपने भाषण में उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून को भी मुद्दा बनाया। जबकि, इस मुद्दे को सामने रखकर कांग्रेस पहले ही असम में पंचायत चुनाव तथा लोकसभा चुनाव हार चुकी है।
वहीं, राहुल गांधी ने चाय मजदूरों के दैनिक मजदूरी के सवाल उठाए। इस मुद्दे को लेकर भी चाय मजदूरों के ऊपर राहुल गांधी की बात का कोई असर नहीं होगा। क्योंकि, पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में चाय मजदूरों की स्थिति और अधिक बदतर थी। कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों की वजह से आनला जैसे चाय मजदूरों के उग्रवादी संगठन खड़े हो गए थे। वहीं, गुवाहाटी में प्रदर्शन करने पहुंचे चाय जनजाति के लोगों को खदेड़-खदेड़ कर पीटा गया था। इस दौरान महिलाओं को नंगा करके भी पीटा गया था, जिसे चाय मजदूर आज तक भूल नहीं सके हैं।
वहीं, कांग्रेस नेता तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन सिंह घटोवार लंबे समय से असम चाय मजदूर संघ के अध्यक्ष पद पर विराजमान रहे हैं, लेकिन चाय मजदूरों की समस्या के प्रति उनकी कभी भी गंभीरता नहीं रही है। अपने भाषण में राहुल गांधी ने गुजरात के व्यापारियों को सामूहिक रूप से गलत कह डाला, जिसकी वजह से उनके ऊपर अवमानना का मामला भी न्यायालय में चलाया जा सकता है।
राहुल गांधी ने सोनोवाल सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलने वाली सरकार बताया। रिमोट कंट्रोल का उच्चारण राहुल गांधी द्वारा किए जाने के साथ ही असम के मतदाताओं के जेहन में सोनिया गांधी के रिमोट से चलने वाले मनमोहन सरकार की छवि उभर गई। ऐसे में स्वाभाविक रूप से रिमोट कंट्रोल वाला राहुल का जुमला जनता को पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के रिमोट की याद दिला डालती है।
वहीं, राहुल गांधी ने जिस प्रकार पहेलियां बुझाने के अंदाज में आज शिवसागर में भाषण दिया, वह वहां सामने बैठे लोगों के सिर के ऊपर से जा रहा था। हम दो, हमारे दो हमारे भी दो और दो जैसी बातें लोगों को समझ में नहीं आई। वहीं यह कितने का नोट है 100 का। यह कितने का नोट है 50 का। यह कितने का नोट है 20 का। यह कितने का नोट है सिक्का। जादूगर की तरह एक के बाद एक नोट निकालते रहे। मंच से काफी दूर बैठी जनता को दिख नहीं रहा था कि राहुल गांधी के हाथ में कितने का नोट है और वह कहना क्या चाहते हैं।
बाद में उन्होंने गणित के शिक्षक की तरह कुल नोट जोड़कर 167 रुपये बताया। फिर एक 200 रुपये का नोट जेब से निकालकर कहा कि इसमें 200 रुपये हम मिला देंगे और प्रत्येक दिन आपके के जेब में देंगे। फिर कहा कि यह दो सौ का नोट कहां से आयेगा, तो गुजरात के व्यापारियों से आएगा। फिर कहा कि जनता के जेब में प्रतिदिन 367 रुपए देंगे। सामने बैठे लोग खुश हो गए कि अब कांग्रेस की ओर से प्रत्येक दिन 367 रुपए मिल जाया करेंगे।
भाषण समाप्त होने के बाद कई लोग आपस में बात करते नजर आए कि रुपया कब से मिलेगा बाद में कांग्रेस के नेताओं ने स्पष्ट किया कि यदि उनकी सरकार बनेगी तो चाय मजदूरों को दैनिक मजदूरी 367 रूपये दिलाई जाएगी। यह समझने के बाद चाय मजदूर गुस्सा हो गए और कहा कि जब कांग्रेस की सरकार थी तब हम लगातार मांग कर रहे थे, हमारे ऊपर गोलियां चलाई जा रही थी। लेकिन, हमें न्यूनतम मजदूरी नहीं दी जा रही थी।
कुल मिलाकर देखा जाए तो राहुल गांधी का असम कार्यक्रम टांय-टांय फिश्श कहा जा सकता है। राहुल गांधी के आगमन के ऊपर जितना कांग्रेस पार्टी का खर्च हुआ उतने में काफी अधिक चुनाव प्रचार की सामग्री आ सकती थी। राजनीतिक गलियारे में आज हर तरफ इसी बात की चर्चा चल रही है।