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राजस्थान में ब्यूरोक्रेसी पर खड़े हो रहे सवाल, एक तिहाई तक घटीं विधानसभा की बैठकें

जयपुरः प्रदेश की गहलोत सरकार के मंत्री हो या फिर विधायक, पिछले कुछ समय से लगातार प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के हावी होने पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कुछ सालों पहले तक मंत्री और विधायक ब्यूरोक्रेसी पर हावी रहते थे, लेकिन अब लगातार यह बात सुनने को मिलती है कि चाहे विधायक हो या फिर किसी विभाग का मंत्री, ब्यूरोक्रेसी उस पर हावी है। विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी भी लगातार यह सवाल खड़े कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है विधानसभा की बैठकें कम होना। क्योंकि विधायक विधानसभा की बैठकें कम होने के चलते नियम कायदे नहीं सीख पाता है और उसे ज्यादा जानकारी भी नहीं हो पाती है। इसी के चलते कानून बनाने का काम भी विधानसभा में सही तरीके से नहीं हो पाता है। जानकारों का कहना है कि जब विधानसभा में चर्चा नहीं होती है तो कानून ब्यूरोक्रेसी के अनुसार ही तैयार भी होते हैं और पास भी हो जाते हैं।

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राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने विधायिका की गिरती परंपरा और कम होती बैठकों पर सवाल उठाकर नई चर्चा छेड़ दी है। जोशी की इस चिंता का कारण है विधानसभा में लगातार कम होती बैठकें। स्पीकर जोशी लगातार कार्यपालिका के डिक्टेटर होने की बात छेड़ यह कहते हुए दिखाई देते हैं कि एग्जीक्यूटिव (कार्यपालिका) नहीं चाहती कि विधानसभा के सत्र आयोजित हों। यही कारण है कि अब सरकारें भले ही कोई भी बनती हो, लेकिन विधानसभा में बहस करने से बच रही हैं। यह बात पूरे देश की विधानसभाओं के लिए तो लागू होती है, लेकिन जोशी राजस्थान विधानसभा के स्पीकर हैं। ऐसे में उनकी सबसे ज्यादा चिंता राजस्थान को लेकर है।

राजस्थान में पहली विधानसभा में 1952 से 1957 तक राजस्थान में 287 विधानसभा की बैठकें हुई थी। वहीं दूसरी विधानसभा में 1957 से 1961 तक अब तक की सर्वाधिक 306 बैठकें आयोजित हुई, लेकिन उसके बाद से लगातार विधानसभा में होने वाली बैठकों का सिलसिला कम होता जा रहा है। 15वीं विधानसभा में 2018 से वर्तमान तक 2019 में 32 बैठकें, 2020 में 29 बैठकें, 2021 में 26 बैठकें तथा 2022 में अब तक 25 बैठकों समेत कुल 112 बैठकें हो पाई है। 14वीं विधानसभा में 2013 से 2018 तक मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में कुल 139 बैठकें, 13वीं विधानसभा में 2008 से 2013 तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में कुल 119 बैठकें, 12वीं विधानसभा में 2003 से 2008 तक मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में कुल 140 बैठकें, 11वीं विधानसभा में 1998 से 2003 तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में कुल 143 बैठकें।

10वीं विधानसभा में कुल 141 बैठकें, नौंवीं विधानसभा में कुल 95 बैठकें, आठवीं विधानसभा में 1985 से 90 तक कुल 180 बैठकें, सातवीं विधानसभा में 1980 से 1984 तक कुल 168 बैठकें, छठीं विधानसभा में 1977 से 1979 तक कुल 115 बैठकें, पांचवीं विधानसभा में 1972 से 1977 तक कुल 201 बैठकें, चौथी विधानसभा में 1967 से 1971 तक कुल 241 बैठकें, तीसरी विधानसभा में 1962 से 1967 तक कुल 268 बैठकें, दूसरी विधानसभा में 1957 से 1961 तक कुल 306 बैठकें तथा पहली विधानसभा में 1952 से 1957 तक कुल 287 बैठकों का आयोजन ही हो पाया। साल 2013 से 2018 के कार्यकाल में पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के समय विधानसभा में अब तक की सबसे कम पांच साल में 119 बैठकें हुई। इस बार अब तक 112 बैठकें हो चुकी हैं और अभी एक साल बाकी है। वर्तमान गहलोत कार्यकाल में भी विधानसभा की बैठकें बुलाने में कोई खास प्रदर्शन नहीं हो सका है।

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