स्वीकृति की बाट जोह रहे राष्ट्रीयकृत मार्गों के प्रस्ताव, 316 मार्गों का प्रस्ताव शासन में है लंबित

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लखनऊः प्रदेश में योगी 2.0 की सरकार जहां सभी गांवों को रोडवेज बस सेवा से जोड़ने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है, तो वहीं शासन स्तर पर राष्ट्रीयकृत मार्गों का प्रस्ताव सालों से लंबित है। आलम यह है कि बीते 34 वर्षों से राष्ट्रीयकृत मार्गों का प्रस्ताव स्वीकृति की बाट जोह रहा है। राष्ट्रीयकृत मार्गों के प्रस्ताव को मंजूरी न मिलने से प्रदेश में डग्गामारी बढ़ रही है और सरकार को भी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में प्रदेश सरकार के यात्रियों को सुरक्षित, सुगम व मितव्ययी परिवहन की सुविधा के संकल्प पर भी पानी फिर रहा है। इसके बावजूद परिवहन निगम के राष्ट्रीयकृत मार्गों के प्रस्ताव को शासन स्तर पर मंजूरी नहीं मिल पा रही है।

गौर करने वाली बात यह है कि देश में आबादी के हिसाब से सबसे बड़े प्रदेश में राष्ट्रीयकृत मार्गों का प्रतिशत 10 से भी कम है। ऐसे में इतने बड़े प्रदेश में लोगों को सार्वजनिक परिवहन की सुविधा किस कदर मयस्सर हो पा रही है, यह खुद समझा जा सकता है। प्रदेश में परिवहन निगम के राष्ट्रीयकृत मार्गों की संख्या बढ़े, तो निगम की आय के साथ सरकार को भी राजस्व का फायदा मिले। प्रदेश में जहां एक्सप्रेसवे, राष्ट्रीय राजमार्गों समेत अन्य सड़कों की संख्या बढ़ती जा रही है, तो वहीं परिवहन निगम के राष्ट्रीयकृत मार्गों की संख्या जस की तस बनी हुई है।

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परिवहन निगम प्रमुख रूप से राष्ट्रीयकृत मार्गों पर ही बसों का संचालन करता है। हालांकि, यात्रियों की मांग पर कुछ ऐसे मार्गों पर भी अनुज्ञा पत्र हासिल कर बसों का संचालन किया जा रहा है, जो राष्ट्रीयकृत नहीं हैं। प्रदेश में निर्माण विभाग द्वारा बनाई गई पक्की सड़कों की कुल लंबाई 1,83,774 किमी है। इन मार्गों में से 26,729 किमी मार्ग ही राष्ट्रीयकृत हैं और प्रदेश में कुल राष्ट्रीयकृत मार्गों का प्रतिशत 9.65 ही है। ऐसे में नवनिर्मित एक्सप्रेसवे समेत अन्य मार्गों पर डग्गामार वाहनों का एकाधिकार बना हुआ है।

316 मार्गों का प्रस्ताव है लंबित –

प्रदेश के 316 राष्ट्रीयकृत मार्गों का प्रस्ताव शासन में सालों से लंबित है। प्रदेश में अब तक कुल 460 मार्ग राष्ट्रीयकृत हैं, जिनकी कुल लंबाई 26,729 किमी है। इन राष्ट्रीयकृत मार्गों में से करीब 9,000 किमी के मार्ग ओवरलैपिंग के हैं। ऐसे में राष्ट्रीयकृत मार्गों की कुल लंबाई 17,729 किमी है। यह कुल पक्की सड़कों का सिर्फ 9.65 प्रतिशत ही है, वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश व हरियाणा देश के कुछ ऐसे प्रांत हैं जहां पर लगभग शत-प्रतिशत मार्ग राष्ट्रीयकृत हैं।

1988 के बाद कोई प्रस्ताव नहीं हुआ स्वीकृत –

प्रदेश में राष्ट्रीयकृत मार्गों का कोई भी प्रस्ताव वर्ष 1988 के बाद स्वीकृत नहीं हुआ है। हालांकि, इस अवधि के बाद कई मार्गों को मोडिफाई अवश्य किया गया है, मगर नए प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली है। अंतिम बार वर्ष 1986 में राष्ट्रीयकृत मार्ग के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया और इस प्रस्ताव पर वर्ष 1993 में मुहर लगी। उस दौरान सहारनपुर-शहबढ़ के आस-पास के करीब 39 मार्गों को राष्ट्रीयकृत मार्ग घोषित किया गया था। इसके बाद से राष्ट्रीयकृत मार्गों के प्रस्ताव स्वीकृति के लिए शासन को भेजे अवश्य गए, लेकिन इन पर निर्णय नहीं हो सका।

पहले एसटीयू में निहित था यह अधिकार –

मोटर व्हीकल एक्ट 139 के तहत राष्ट्रीयकृत मार्गों के प्रस्ताव पर स्वीकृति का अधिकार पहले एसटीयू (स्टेट ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग) को था। आगे चलकर जब एमवी एक्ट 1939 खत्म होकर मोटर व्हीकल एक्ट 1988 बना, तो उक्त एक्ट में इस बाबत नया प्रावधान जोड़ा गया। एमवी एक्ट 1988 के तहत ये अधिकार एसटीयू की जगह प्रदेश सरकार में निहित हो गया यानी राष्ट्रीयकृत मार्गों के प्रस्ताव पर एसटीयू की जगह अब प्रदेश सरकार निर्णय लेगी। प्रदेश सरकार ने आगे चलकर एमवी एक्ट की धारा 103 में उपधारा 1ए जोड़कर अमेंडमेंट किया। इसके तहत परिवहन निगम किसी भी बस को अपने नियंत्रण में लेकर परमिट के माध्यम से किसी भी व्यवस्था के तहत संचालन कर सकती है।

ये प्रस्ताव हैं लंबित –

16 अप्रैल 2015 को 33 मार्गों को राष्ट्रीयकृत मार्ग बनाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया। इसके तहत प्रदेश के अंदर बनने वाले एक्सप्रेसवे, फोरलेन मार्ग को स्वतः राष्ट्रीयकृत मार्ग माने जाने के प्रस्ताव पर शासन स्तर से अधिसूचना जारी करने का अनुरोध किया गया, वहीं 22 जून 2016 को 173 मार्गों के राष्ट्रीयकरण के प्रस्ताव पर अधिसूचना जारी करने के लिए शासन से अनुरोध किया गया। इसके अलावा 19 सितंबर 2016 को आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के राष्ट्रीयकरण संबंधी प्रस्ताव पर अधिसूचना जारी करने का अनुरोध किया गया। 06 अप्रैल 2018 को नोएडा-लखनऊ एक्सप्रेसवे वाया कुबेरपुर-आगरा के राष्ट्रीयकरण का निर्णय लेते हुए प्रस्ताव शासन को प्रेषित किया गया।

निगम की बढ़ेगी आय, सरकार को मिलेगा राजस्व –

प्रदेश के 460 राष्ट्रीयकृत मार्गों पर संचालित बसों से परिवहन निगम रोजाना करीब 14 से 15 करोड़ रुपए कमाता है। ऐसे में 316 मार्गों के राष्ट्रीयकृत मार्ग बनाए जाने पर निगम को अच्छी-खासी आय अर्जित होगी, वहीं परिवहन निगम प्रदेश सरकार को हर माह करीब 18 करोड़ रुपए टैक्स के रूप में अदा करता है। इस प्रकार निगम का सालाना कुल टैक्स करीब 02 अरब 16 करोड़ रुपए सरकार के खाते में जमा हो रहा है। नए राष्ट्रीयकृत मार्ग बनाए जाने के बाद और अधिक टैक्स प्रदेश सरकार के खाते में जमा होंगे।

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