लखनऊः तापमान में गिरावट एवं आपेक्षिक आर्द्धता में वृद्धि के कारण आलू की फसल में अगेती तथा पछेती झुलसा एवं राई-सरसों में माहू के प्रकोप की सम्भावना बढ़ गई है। इसके लिए एक ओर किसान परेशान हैं, वहीं कृषि विभाग उनकी परेशानी दूर करने के लिए एहतियातन कदम उठाने के लिए मीडिया के जरिए फसलें बचाने के प्रयास कर रहा है।
माना जा रहा है कि फसलों की नियमित निगरानी फिलहाल इस ठंडक में नहीं की सकती है। ऐसे में किसानों को फसल में लगने वाले रोगों एवं कीटों से सचेत करना ही विकल्प माना जा रहा है। किसानों की बड़ी चिंता यह है कि ठंडक के कारण यदि फसल प्रभावित हुई या फिर कीटों का हमला हुआ, तो वह कृषि रक्षा रसायनों की जरूरत कहां से पूरा करेंगे। बड़े किसानों का कहना है कि मौसम सही होने पर भी आलू पर संकट रहेगा। बदलीयुक्त मौसम, 10 डिग्री से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान एवं 80 प्रतिशत से अधिक अपेक्षिक आर्द्रता की दशा में आलू में अगेती व पछेती झुलसा रोग की सम्भावना बढ़ जाती है। 20 डिग्री सेल्सियम तापमान के लिए अभी इंतजार करना ही होगा। ऐसे में किसानों की चिंता वाजिब है।
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किसान वैज्ञानिक सत्येंद्र सिंह कहते हैं कि आलू में कीट और उनसे उत्पन्न रोग के नियंत्रण के लिए कृषक हताश न हों। फसल को देखते रहें और शंका सही दिखने पर मैन्कोजेब 75 प्रतिशत, डब्लूपी 2 किग्रा अथवा कॉपर आॅक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत, डब्लूपी की 2.5 किग्रा की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 500-750 लीटर पानी में घोलकर सुरक्षात्मक छिडकाव करने से उनकी तमाम परेशानी दूर हो जाएगी। इसी तरह से राई-सरसों की खेती करने वाले किसानों के सामने भी चिंता वाजिब है। इसके लिए कृषि विभाग अपने किए गए जागरूकता प्रयासों में माहू कीट से फसलों को बचाने के लिए एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ईसी की 2.5 लीटर मात्रा को 400-500 लीटर पानी में घोलकर बनाकर छिड़काव विकल्प बता रहा है।
कीट की सघनता के अनुसार 10-15 ऐलो स्टिकी ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग भी किया जा सकता है। रासायनिक नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी ऑक्सीडेमेटान-मिथाइल 25 प्रतिशत ईसी अथवा क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी की 1.0 लीटर मात्रा को 600-750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव उचित रहेगा। इसके अतिरिक्त कम तापमान के कारण फसलों में पाले की सम्भावना भी बनी हुई है। किसान वैज्ञानिकों की सलाह है कि किसान खेत में नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करें। प्रदेश के उद्यान विभाग में भी ऐसे तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, जिनसे फसलों की सुरक्षा की जा सके।
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