असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जनसंख्या नियंत्रण के परिप्रेक्ष्य में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ सकारात्मक बातचीत की है। मुस्लिम समाज से अपील के बाद 150 से अधिक बुद्धिजीवियों ने परिवार नियोजन अपनाने पर सहमति जताई है। दरअसल असम में मुस्लिमों की आबादी राज्य के कुछ हिस्सों में विस्फोटक होती जा रही है, जो विकास और लोककल्याकारी योजनाओं के लिए संकट साबित होने लगी है। समय रहते यदि इस पर नियंत्रण नहीं लगाया गया तो समाज को ही इसके घातक परिणाम भुगतने होंगे। इस बैठक में लेखक, कलाकार, इतिहासकार और शिक्षाविद् शामिल थे। इन्होंने माना कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इस समस्या का सामना कर रहे हैं। इन लोगों ने इस हकीकत पर सहमति जताई कि असम को अगर देश के पांच शीर्ष राज्यों में शुमार होना है तो आबादी के इस विस्फोट पर काबू पाना जरूरी है।
दरअसल कई विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अन्य मतदाताओं की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक हो गई है। जनसंख्यात्मक घनत्व में आई इस विसंगति से भविष्य में अनेक सीटें ऐसी हो जाएंगी, जिन पर इकतरफा जीत मुस्लिम मतदाताओं पर निर्भर हो जाएगी। इसलिए असम सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि भविष्य में सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए दो बच्चों की नीति का पालन अनिवार्य होगा। हालांकि इसे थोपने की बजाय चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।
इसमें दो राय नहीं कि भारत में आबादी की बढ़ती दर बेलगाम है। 2011 के जनगणना के हासिलों से पता चलता है कि बढ़ती आबादी तमाम विषमताओं का भी पर्याय बन रही है। आबादी का बढ़ता महत्व दक्षिण भारत की बजाय उत्तर भारत में ज्यादा है, क्योंकि इन इलाकों में मुस्लिम आबादी परिवार नियोजन नहीं अपना रही है। लैंगिक अनुपात भी लगातार बिगड़ रहा है। देश में 62 करोड़ 37 लाख पुरुष और 58 करोड़ 65 लाख महिलाएं हैं। 1 हजार पुरुषों पर 930 महिलाएं है। शिशु लिंगानुपात की दृष्टि से प्रति हजार बालकों की तुलना में महज 912 बालिकाएं हैं। हालांकि 15वीं जनगणना के सुखद परिणाम आए हैं। जनगणना वृद्धि दर में 3.96 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। ऐसे में यदि धर्म, जाति और क्षेत्र निरपेक्ष सोच विकसित होती है तो आबादी पर नियंत्रण ज्यादा असरकारी ढंग से हो सकता है।
इस परिप्रेक्ष्य में यहां असम के डॉ. इलियास अली के जागरूकता अभियान का जिक्र करना जरूरी है। डॉ. अली गांव-गांव जाकर मुसलमानों में अलख जगा रहे हैं कि इस्लाम एक ऐसा अनूठा धर्म है, जिसमें आबादी पर काबू पाने के तौर-तरीकों का ब्यौरा दर्ज है। इसे ‘अजाल’ कहा जाता है। इसी बिना पर मुस्लिम देश ईरान में परिवार नियोजन अपनाया जा रहा है। यही नहीं वहां परिवार नियोजन की जरूरत के प्रचार-प्रसार की जबावदारी धार्मिक नेताओं को सौंपी गई है। ये नेता ईरानी दंपत्तियों के बीच कुरान की आयतों की सही व्याख्या कर लोगों को आबादी पर काबू पाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
डॉ.इलियास अली चिकित्सा महाविद्यालय गुवाहटी में प्राध्यापक हैं। वे प्रवृत्ति से धार्मिक हैं। डॉ.अली के विचारों से प्रभावित होकर ही असम सरकार ने उन्हें खासतौर से मुस्लिम बहुल इलाकों में परिवार नियोजन अपनाने के सिलसिले में जागरूकता जगाने की कमान सौंपी है। डॉ. अली जागृति के इस अभियान की शुरूआत केरल के साक्षरता अभियान से करते हैं। जहां सभी धर्मावलंबियों ने समान भाव से साक्षरता के प्रति जिज्ञासा जताई और साक्षरता कक्षाओं में हिस्सा लेकर साक्षर हुए। नतीजतन केरल का मुस्लिम समाज भी जनसंख्या नियंत्रण में बराबर की भागीदारी कर रहा है।
इस दिशा में सार्थक पहल करते हुए केरल राज्य ने एक ऐसा कानून का मसौदा तैयार किया है,जो किसी नागरिक को धर्म या जाति के आधार पर बच्चे पैदा करते जाने की छूट नहीं देता। इस नजरिए से केरल सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘वुमेन कोड बिल 2011’ को जनसंख्या नियंत्रण की दृष्टि से एक असरकारी कानून माना जा रहा है। इस कानून का प्रारूप न्यायाधीश वीआर कृष्णन अय्यर की अघ्यक्ष्ता वाली 12 सद्सीय समिति ने तैयार किया है। मसौदे में प्रावधान है कि किसी नागरिक को धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा के आधार पर परिवार नियोजन से बचने से छूट नहीं मिलेगी। साथ ही गर्भ निरोधक संबंधी उपायों की जानकारी और गर्भपात की निशुल्क चिकित्सकीए या सुविधा भी राज्य सरकार हासिल कराएगी। हालांकि दो मर्तबा विधानसभा पटल पर रखे जाने के बावजूद यह कानून अभी तक पारित नहीं हो पाया है।
अल्पसंख्यक मामलों राजग सरकार की पूर्व केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने भी मुस्लिम समुदाय के लोगों को परिवार नियोजन अपनाने की नसीहत दी थी। उन्होंने कहा था कि बढ़ती आबादी देश की प्रमुख समस्याओं में से एक है। इसलिए मुस्लिमों का भी कर्तव्य बनता है कि वे खुले दिमाग से परिवार नियोजन अपनाएं। इस पर अमल करने से इसी समुदाय का भला होगा। क्योंकि ऐसा करने से ज्यादातर मुस्लिम परिवार,अल्पसंख्यकों के हितों के लिए चलाई जा रही लोक कल्याणकारी परियोजनाओं से जुड़ जाएंगे। इसे न अपनाने से गरीबी बढ़ती हैं और परिवार में अशिक्षा बनी रहती है। नजमा ने मदरासों में पढ़ाई जा रही तालीम में भी पारदर्शिता अपनाने पर जोर दिया था।
शायद ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी केंद्रीय मंत्री ने सीधे मुस्लिम समुदाय को परिवार नियोजन अपनाने की सलाह बिना किसी संकोच के दी थी। अन्यथा पूर्व की केंद्र सरकारें अल्पसंख्यक तृष्टिकरण का ही छद्म राजनीतिक खेल खोलती रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण निभाग ने तो राज्यों को भेजे एक पत्र में हवाला दिया था कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में मुस्लिम पुलिसकर्मियों, स्वास्थ्यकर्मियों और शिक्षकों की तैनाती को तरजीह दी जाए। कुछ इसी तर्ज का फरमान इसी सरकार में अल्पसंख्यक आयोग के अघ्यक्ष रहे अब्दुल्ल रहमान अंतुले ने दिया था। उनका कहना था कि अब देश के 90 जिलों में मुसलमानों के लिए सुविधाएं और सरकारी नौकरियां हासिल कराई जाएंगी। मुस्लिम बहुल आबादी से जुड़े 330 नगरों और कस्बों में भी मुसलमानों को अतिरिक्त नागरिक सुविधाएं और आर्थिक अवसर मुहैया कराए जाएंगे।
इन थोथी घोषणाओं से कांग्रेस को लाभ कितना हुआ यह तो पता नहीं, लेकिन हिंदुओं का ध्रुवीकरण जरूर हुआ। कांग्रेस के तृष्टिकरण के ये छलावे बोट बैंक की राजनीति करने से उसी के लिए नाकाम साबित हुए। दरअसल लोकतांत्रिक संवैधानिक व्यवस्था में इसी तरह की कवायदें ही बेमानी हैं। शासन-प्रशासन के स्तर पर संविधान सम्मत समान्य सिद्धांत की मूल भावना को खारिज नहीं किया जा सकता है। कोई भी सरकारी कर्मचारी केंद्र या राज्य सरकार का प्रतिनिधि होता है। किसी जाति या धर्म का नहीं। हिंदू आरक्षक, मुस्लिम शिक्षक, सिख स्वास्थ्यकर्ता अथवा ईसाई रेलकर्मी जैसा कोई भी पद किसी विभाग में नहीं होता है। इस तरह के अनर्गल बयान देश की राष्ट्रीय एकता अखंडता और धर्म-निरपेक्ष स्वभाव को ठेस पहुंचाते हैं।
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इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में धार्मिक आधार भी जनसंख्या को बढ़ाने का एक प्रमुख घटक रहा है। बांग्लादेश से लगे सीमाई क्षेत्र के मुस्लिम बहुल इलाकों में आबादी का घनत्व तेजी से बढ़ रहा है। इसमें बांग्लादेशी घुसपैठी भी शामिल हैं। इनकी तादाद 4 से 5 करोड़ बताई जाती है। यह घुसपैठ 21 वीं सदी के पहले दशक में सबसे ज्यादा हुई। एक दशक में बढ़ी आबादी 18 करोड़ में से 4 करोड़ घुसपैठियों की संख्या घटा दी जाए तो यह आंकड़ा 14 करोड़ होगा। मसलन 45 प्रतिशत आबादी कम करके आंकी जाती तो वास्ताविक जनसंख्या वृद्धि दर 13.59 होती। अभी इस वृद्धि का प्रतिशत 17.64 है। मतदाताओं की संख्या का विधानसभा वार विश्लेषण करने पर ज्ञात हुआ है कि बीते 10 वर्षों में बरपेटा, धुबरी, गोलपरा और होजई क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में 30 से लेकर 55 प्रतिशत तक की चिंताजनक वृद्धि हुई है। खासकर बरपेटा जिले के दो विधानसभा क्षेत्र जनिया और बागबर में तो 2011 से 2021 के दौरान 50 प्रतिशत से अधिक बृद्धि दर्ज की गई है, जो कि प्रजनन की औसत दर से संभव नहीं है। साफ है, यह वृद्धि पूर्वी बंगाल और बांग्लादेशी घुसपैठियों से हुई है। यदि घुसपैठ पर अंकुश नहीं लगा तो आगे भी यह हमारी जनसंख्या वृद्धि दर और आर्थिक प्रगति के अनुपात को बिगाड़ता रहेगा।
प्रमोद भार्गव