नई दिल्लीः जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में लागू सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम यानी की AFSPA को लेकर देश में एक बार फिर से चर्चा गर्म हो गई है। ऐसा देश के गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान के बाद हुआ है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर से सेना वापस बुलाने और AFSPA को हटाने पर विचार करेगी।
अमित शाह ने एक इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि सरकार की योजना जम्मू-कश्मीर से सैनिकों को वापस बुलाने और कानून व्यवस्था को जम्मू-कश्मीर पुलिस के हवाले करने की है। क्योंकि जम्मू कश्मीर में हालात अब पहले से काफी बेहतर हो गये हैं।
अमित शाह के सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को लेकर जारी बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि आज गृह मंत्री को AFSPA की याद आई है। लेकिन, 2011 में जनरल वीके सिंह ने ऐसा क्यों कहा था कि सेना इसे स्वीकार नहीं करेगी। शाह साहब, उनसे (सिंह से) पूछिए कि उन्होंने AFSPA हटाने की प्रक्रिया क्यों रोक दी? तब उन्होंने बाधा क्यों डाली?
उन्होंने ऐसा क्यों कहा था कि सेना इसे स्वीकार नहीं करेगी? आज आप लोगों को मूर्ख बना रहे हैं कि आप AFSPA हटा देंगे। उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री को पहले श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर जनता की आवाजाही को आसान बनाना चाहिए। AFSPA से पहले कई काम बाकी हैं। यह भी कहा कि AFSPA के बारे में हम बाद में देखेंगे, लेकिन कम से कम राजमार्ग पर लोगों की आवाजाही तो आसान कर दीजिए और इसके लिए हम आपके आभारी रहेंगे। फिलहाल, सेना के जवानों को हमारे वाहनों को रोकने, राजमार्ग पर हमें परेशान करने से रोकें। तब हम मान लेंगे कि आप AFSPA हटा सकते हैं।
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क्या है AFSPA?
सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम यानी की AFSPA एक संसदीय अधिनियम है। ये अधिनियम भारत के सशस्त्र बलों और राज्य और अर्धसैनिक बलों को ‘अशांत क्षेत्रों’ के रूप में वर्गीकृत किए गए इलाकों में विशेष शक्ति देता है। AFSPA को लागू करने का मकसद देश के अशांत क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बनाए रखना है। इस अधिनियम को आतंकवाद, विद्रोह या भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर खतरे की स्थिति में लागू किया जाता है। सेना केवल केंद्र सरकार की अनुमति से ही काम करती है। इस अधिनियम के तहत सुरक्षाबलों को अशांत क्षेत्रों में कई कानूनी छूट भी प्रदान करता है।
अशांत क्षेत्र घोषित करने का अधिकार भी AFSPA कानून के तहत ही आता है। यह अधिकार केंद्र सरकार, राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल के पास होता है। वो किसी इलाके, किसी जिले या पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं। इसके लिए भारत के राजपत्र पर एक अधिसूचना निकालनी होती है। यह अधिसूचना AFSPA कानून की धारा 03 के तहत होती है। इस धारा में कहा गया है कि नागरिक प्रशासन के सहयोग के लिए सशस्त्र बलों की आवश्यकता होने पर किसी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित किया जा सकता है। सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम AFSPA को 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था। इस अधिनियम को पहले भारत के पूर्वोत्तर राज्यों असम और मणिपुर में लागू किया गया था।
1990 में जम्मू-कश्मीर में किया गया था लागू
इन राज्यों में उग्रवाद की समस्या बढ़ रही थी। इसके बाद 1989 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद ने सिर उठाया जिसके बाद यहां भी 1990 में AFSPA को लागू कर दिया गया। समय-समय पर इस कानून को लेकर काफी विरोध भी देखने को मिला है। AFSPA कानून लागू होने की स्थिति में सेना कहीं भी पांच या पांच से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा सकती है। सेना किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है।
यहां तक की चेतावनी देने के बाद भी कोई व्यक्ति मनमानी करता है तो उसको गोली मारने तक का अधिकार सेना के पास होता है। सेना को किसी भी व्यक्ति के घर में बिना किसी वारंट के तलाशी लेने का अधिकार है। लेकिन AFSPA के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को सेना को नजदीकी पुलिस स्टेशन को सौंपना जरूरी होता है। यही नहीं गिरफ्तारी का कारण बताने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट भी देनी होती है।
किन राज्यों में लागू है AFSPA
गौरतलब है कि एक वक्त AFSPA पूर्वोत्तर भारत के असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड में लागू था। साल 2015 में इसे त्रिपुरा से हटा लिया गया था। वहीं, पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में धीरे-धीरे इस कानून में ढील दी जा रही है। कई शहरों से अब आंशिक या पूरे तरीके से AFSPA को हटा लिया गया है। जम्मू-कश्मीर में अभी AFSPA लागू है लेकिन इस पर विचार करने की बात कही गई है। सरकार का दावा है कि पहले के मुकाबले अब जम्मू-कश्मीर के हालात काफी बदल गए हैं।
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