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अनुच्छेद 370 हटने के बाद खुली हवा में सांस लेने को पीओके बेताब

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अनुच्छेद 370 और 35ए से मुक्ति के बाद जम्मू-कश्मीर में चारों तरफ से विकास की बयार बहने लगी है। जम्मू-कश्मीर के विकास में बाधक बनने वाले आतंकवादियों और अलगाववादियों का सफाया हो चुका है। युवाओं के हाथ में अब पत्थर और बंदूकों की जगह किताबें, लैपटॉप और रोजगार के अनेकों अवसर हैं। जम्मू-कश्मीर का पुराना गौरव तेजी से लौट रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के साथ-साथ यहां की कला, सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा देने का कार्य प्रमुखता से किया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर में होने वाले अभूतपूर्व विकास को देखकर पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में रहने वाले लोग भी भारत के साथ जुड़ने को बेताब दिखाई दे रहे हैं।

यहां की जनता ने पाकिस्तान सरकार के खिलाफ एक तरह से विद्रोह छेड़ दिया है। भय, भूख, भ्रष्टाचार, महंगाई व उपेक्षा से त्रस्त पीओके में रोजाना मारपीट, तोड़फोड़, हंगामा और प्रदर्शन की घटनाएं अब आम हो गई हैं। यहां रहने वाले बलूच नागरिकों ने बलूच लिबरेशन आर्मी बनाकर पाकिस्तानी सेना से मुकाबला करना शुरू कर दिया है। पीओके के लोग भारत सरकार से सम्पर्क स्थापित कर अपने साथ मिलाने की अपील कर रहे हैं। हाल के दिनों में विदेश मंत्री एस. जयशंकर, गृह मंत्री अमित शाह व रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से आए बयान भी यूं ही बेवजह नही हैं। 2024 के चुनाव में भाजपा पीओके को भारत में शामिल करने के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है।

जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35ए से मिला विशेष राज्य का दर्जा हटाने के लिए संसद ने 05 अगस्त, 2019 को मंजूरी दी थी। तब केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे ‘ऐतिहासिक भूल को ठीक करने वाला ऐतिहासिक कदम’ कहा था। भारत सरकार के ऐतिहासिक फैसले की वजह से एक देश, एक विधान, एक निशान का सपना साकार हुआ है। दरअसल, देश के लिए नासूर बन चुके अनुच्छेद 370 को पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई वाली सरकार में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को लागू किया था। इस प्राविधान में संसद की ओर से जम्मू-कश्मीर में प्रयोग की जाने वाली शक्तियों का दायरा और पूर्ण सीमा स्पष्ट की गई थी। इससे इतर 14 मई 1954 को राष्ट्रपति ने जम्मू-कश्मीर को क्षेत्रीय अखंडता की गारंटी दी और अनुच्छेद 35ए लागू कर उस भाग को लगभग देश से अलग कर दिया था।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए हाथ से निकल रहे भारत के इस भू-भाग का स्थायी समाधान कर दिया। आज इसका ही नतीजा है कि कश्मीर भी देश के दूसरे राज्यों के समान ही विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है। अब इस भू-भाग पर दूसरे राज्यों की तरह भारत के नागरिक जमीन खरीद सकते हैं, व्यापार कर सकते हैं और खेती कर सकते हैं। इसी प्रकार दूसरे राज्यों की तरह भारत सरकार के सभी कानून भी यहां समान रूप से प्रभावी हो गए हैं। वाल्मीकि, दलित और गोरखा जो राज्य में दशकों से रह रहे हैं, उन्हें भी राज्य के अन्य निवासियों की तरह अब समान अधिकार मिल रहे हैं। वर्ष 2020-21 के लिए 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख केन्द्र शासित प्रदेश को क्रमशः 30 हजार 757 करोड़ रुपए और 05 हजार 959 करोड़ रुपए का अनुदान दिया गया है। फ्लैगशिप स्कीम प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत जम्मू-कश्मीर में 5,300 किलोमीटर सड़क बनाई जा रही है।

ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट के जरिए 13,732 करोड़ रुपये के एमओयू (समझौते के ज्ञापन) पर दस्तखत हुए हैं। 07 नवंबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सामाजिक-आर्थिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए लगभग 80,000 करोड़ रुपए की पुनर्निर्माण योजना की घोषणा की थी। पुनर्गठन के बाद जम्मू-कश्मीर को 58,477 करोड़ रुपए की 53 परियोजनाओं, जबकि लद्दाख को 21,441 करोड़ रुपए की 09 परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। गौरतलब है कि 05 अगस्त 2019 को संसद द्वारा अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने को मंजूरी दी गई। नोटिफिकेशन जारी करते ही 31 अक्टूबर, 2019 से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग केन्द्र शासित प्रदेश में पुनर्गठित कर दिया गया। इसके साथ ही केन्द्र सरकार के 170 कानून जो पहले लागू नहीं थे, अब वे इस क्षेत्र में लागू हो गए हैं। यहां के स्थानीय निवासियों और दूसरे राज्यों के नागरिकों के बीच अधिकार अब समान हैं।

राज्य के 334 कानूनों में से 164 कानूनों को निरस्त किया गया, 167 कानूनों को भारतीय संविधान के अनुरूप अनुकूलित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास रहने वालों के लिए सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में 03 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। अनुच्छेद 370 से आजादी के एक साल बाद यहां गांवों के साथ जनपद और जिला पंचायत के चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुए। 2019 में पहली बार आयोजित ब्लॉक डेवलेपमेंट काउंसिल चुनाव में 98.3 फीसदी मतदान हुआ। हाल ही में जिला स्तर के चुनाव में भी रिकॉर्ड भागीदारी हुई। इसके अलावा आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत जम्मू-कश्मीर में 4.4 लाख लोगों को लाभ मिला है। इस योजना के तहत जम्मू और कश्मीर के अस्पतालों में 1.77 लाख उपचार अधिकृत किए गए हैं, जिसके लिए 146 करोड़ रुपए प्राधिकृत किए गए हैं। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में एम्स की स्थापना को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत जम्मू में एम्स का निर्माण कार्य चल रहा है। कश्मीर में भी एम्स बनाने की प्रक्रिया जारी है। सात नए मेडिकल कॉलेज और पांच नए नर्सिंग कॉलेजों को भी मंजूरी दी गई है।

धरातल पर उतर रहीं विकास योजनाएं, बदल रही घाटी की तस्वीर

पीएम किसान योजना के तहत जम्मू-कश्मीर में अब तक 12.03 लाख लाभार्थी शामिल हुए हैं। पीएम आवास योजना (ग्रामीण) के तहत 1.34 लाख घर स्वीकृत हुए हैं। वाल्मीकि समुदाय, गोरखा लोगों और पश्चिमी पाकिस्तान से उजाड़े और खदेड़े गए शरणार्थियों को पहली बार राज्य में होने वाले चुनाव में मत देने का अधिकार मिला। मूल निवासी कानून लागू किया गया। नई मूल निवासी परिभाषा के अनुसार 15 वर्ष या अधिक समय तक जम्मू-कश्मीर में रहने वाले व्यक्ति भी अधिवासी माने जाएंगे। 1990 में कश्मीर घाटी से भगाए गए कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने का रास्ता साफ हो गया है। कश्मीरी प्रवासियों की वापसी के लिए 6,000 नौकरियों और 6,000 पारगमन आवासों के निर्माण का कार्य प्रगति पर है। जम्मू-कश्मीर से बाहर विवाह करने वाली लड़कियों और उनके बच्चों के अधिकारों का संरक्षण भी सुरक्षित हुआ है। सेब के मार्केट के लिए इंटरवेंशन स्कीम लागू की गई है। इस स्कीम के अंतर्गत डीबीटी द्वारा भुगतान और केन्द्रीय खरीद एजेंसी द्वारा परिवहन से इसकी कीमत स्थिर हुई है।

अब तक के सबसे बड़े भर्ती अभियान के प्रथम चरण में 10,000 रिक्तियों की पहचान हुई है, उनमें से 8,575 के लिए सेवा चयन बोर्ड द्वारा विज्ञापन दिया गया है और भर्ती प्रक्रिया तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। भर्ती अभियान के दूसरे चरण के रूप में 12,379 पद की पहचान की गई है। जम्मू-कश्मीर सरकार इन रिक्तियों को भर्ती एजेंसियों को संदर्भित करने की प्रक्रिया में है। हिमायत योजना में 90,792 उम्मीदवारों के प्रशिक्षण को मंजूरी मिली। कश्मीरी केसर पारंपरिक रूप से प्रसिद्ध कश्मीरी व्यंजनों से जुड़ा है, उसके औषधीय गुणों को कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा माना जाता है। कश्मीरी केसर को जीआई टैग का दर्जा मिल चुका है। अब कश्मीरी केसर की महक देश-विदेश तक पहुंच रही है। पुलवामा के उक्खू गांव को पेंसिल वाले गांव का टैग देने की तैयारी है। देश का 90 प्रतिशत पेंसिल स्लेट यहीं से तैयार होकर देश भर में जाता है। इस गांव में 400 से ज्यादा लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं। बीते साल इस गांव में पेंसिल से 107 करोड़ रुपए का राजस्व मिला है।

ऐसे में उक्खू को पेंसिल वाले गांव का टैग मिलने से लोगों को सब्सिडी मिलेगी और वे उद्योग जगत में अपना योगदान दे सकेंगे। लकड़ी की कारीगरी के साथ-साथ क्रिकेट बैट के लिए भी दुनियाभर में मशहूर कश्मीर को नया बाजार के अवसर उपलब्ध हुए हैं। ऐसे में केन्द्र सरकार की यह पहल हस्तशिल्प को प्रोत्साहन के साथ वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत की मुहिम को मजबूती देगी। राज्य में नए स्वीकृत 50 कॉलेजों में 48 कॉलेजों को चालू कर दिया गया है, जिसमें 6,700 छात्रों ने प्रवेश ले लिया है। सात नए मेडिकल कॉलेज और पांच नए नर्सिंग कॉलेजों को मंजूरी दी गई। गुलमर्ग में पहली बार खेले गए भारतीय शीतकालीन खेलों का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। प्रधानमंत्री द्वारा पोषित विकास कार्यक्रम ने गति पकड़ी, जिससे 2018 में खर्च की अपेक्षा 2021 में खर्च दोगुना हो गया। वर्षों से लंबित श्रीनगर का रामबाग फ्लाईओवर खोला गया। आईआईटी जम्मू को अपना कैंपस मिला और एम्स जम्मू का भी काम शुरू हो चुका है। अटल टनल का इंतजार खत्म हुआ और प्रधानमंत्री ने देश को इसे समर्पित कर दिया है। जम्मू की सेमी रिंग रोड और 8.45 किमी नई बनिहाल सुरंग बनाई गई।

चिनाब नदी पर विश्व का सबसे ऊंचा 467 मीटर का पुल अगले साल तक बनकर तैयार हो जाएगा। जम्मू-कश्मीर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन की स्थापना की गयी है। 7110.78 करोड़ रुपए की लागत वाली 2,375 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। 1555.16 करोड़ रुपए की लागत से 1,100 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। पनबिजली परियोजनाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी आई है। 1,000 मेगावाट के पाकालदल और 624 मेगावाट की किरू परियोजना के कांट्रैक्ट दे दिए गए हैं। 223 पॉवर ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है। झेलम बाढ़ शमन परियोजना से झेलम की क्षमता में 10,000 क्यूसेक की वृद्धि हुई है। जम्मू-कश्मीर में मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए 10,599 करोड़ रुपए की योजना बनाई जा रही है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद अलगाववादियों का जनाधार खत्म होता जा रहा है। वर्ष 2018 में 58, वर्ष 2019 में 70 और वर्ष 2020 में 06 हुर्रियत नेता हिरासत में लिए गए। 18 हुर्रियत नेताओ से सरकारी खर्चे पर मिलने वाली सुरक्षा वापस ली गई। अलगावादियों के 82 बैंक खातों में लेन-देन पर रोक लगा दी गई है। आतंक की घटनाओ में उल्लेखनीय कमी आई है और घाटी में शांति और सुरक्षा का नया वातावरण बना है। भारत सरकार ने आतंकवादियों से निपटने के लिए अब सेना को खुली छूट दे दी है।

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में उन जगहों की पहचान की जा रही है, जो टूरिज्म डेस्टिनेशन बन सकते हैं। हिमालय की 137 पर्वत चोटियां विदेशी पर्यटकों के लिए खोली गई हैं, जिनमें 15 चोटियां जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की हैं। 40 वर्ष से रूकी हुई शाहपुर-कंडी बांध परियोजना पर कार्य शुरू किया गया है। रातले पनबिजली परियोजना का कार्य पुनः शुरू किया गया है। केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में सभी व्यक्तिगत लाभार्थी योजनाओं तथा सभी फ्लैगशिप योजनाओं पर द्रुत गति से कार्य प्रारंभ किया। लगभग 80,000 करोड़ रुपए वाले प्रधानमंत्री विकास पैकेज 2015 के तहत विकास की 20 परियोजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं तथा बाकी क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। बीते दो वर्षों में पर्यटकों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है और यह सिलसिला लगातार बढ़ रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2022 में 1.88 करोड़ पर्यटकों ने इस केंद्र शासित प्रदेश का रुख किया था।

जाहिर है कि बड़ी संख्या में आने वाले पर्यटकों की वजह से टूरिज्म इंडस्ट्री के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर होने वाले सभी व्यापारों में बड़ा इजाफा दर्ज हुआ है। केन्द्र सरकार ने लद्दाख में बौद्ध अध्ययन केन्द्र के साथ केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की है। इंजीनियरिंग विभागों और उद्योगों, पर्यटन, वित्त और तकनीकी शिक्षा विभागों में प्रशासनिक सुधार-अतिव्यापी कार्यों का विलय या युक्तिसंगत करना शामिल है। भारत को जी20 देशों की अध्यक्षता करने का अवसर मिला, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक के लिए जम्मू-कश्मीर को ही डेस्टिनेशन चुना था। यहां जी20 की बैठक में शामिल होने वाले देशों के प्रमुखों व प्रतिनिधियों ने कश्मीर में निवेश की इच्छा जाहिर की है।

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के मुताबिक अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहला विदेशी निवेश 500 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट से कश्मीर में दस हजार नौकरियां मिल सकेंगी। यह निवेश यूएई के एमआर ग्रुप ने किया है। सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर के औद्योगिक विकास के लिए 28,400 करोड़ रुपए की नई केंद्रीय क्षेत्रीय योजना को मंजूरी दी गई है। विभिन्न स्पेशल पैकेज योजनाओं के तहत 1123.84 करोड़ रुपये दिए गए हैं। जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए मोदी सरकार विभिन्न प्रकार के उत्पादों और सेवाओं के घरेलू विनिर्माण को प्रमुखता से बढ़ावा देगी। जम्मू-कश्मीर की आयात पर निर्भरता को कम करने और निर्यात क्षमता को बढ़ाने में मदद की है। नई योजना को एमएसएमई की बड़ी इकाइयों व छोटी इकाइयों दोनों के लिए आकर्षक बनाया गया है। जम्मू-कश्मीर के औद्योगिक विकास के लिए नई केन्द्रीय योजना के तहत 2037 तक 28,400 करोड़ की राशि खर्च होगी। इसके तहत उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाएगा और औद्योगिकीकरण का नया अध्याय प्रारंभ होगा।

पीएम मोदी के शांति संदेश को ठुकराना पाक को पड़ा भारी

2014 में सत्तासीन होने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद का रास्ता छोड़कर प्रगति और शांति के रास्ते पर चलने की बात कही थी। पीएम मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में तत्कालीन पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ को निमंत्रण देकर व उनके जन्मदिन पर पाकिस्तान पहुंच कर सभी को चौंका दिया था। हालांकि, पाकिस्तान ने अपना रवैया नहीं छोड़ा और आतंकवाद को अपनी राष्ट्रीय नीति बनाए रखा। जिसका परिणाम है कि आज विश्व पटल पर भारत आर्थिक एवं सैन्य महाशक्ति के रूप में तेजी से उभर रहा है, वहीं पाकिस्तान कंगाली की कगार पर पहुंच चुका है। पाकिस्तान के आमोखास और वहां का मीडिया जगत भी भारत के विकास और बढ़ती साख की चर्चा कर रहे हैं व अपनी सरकार को कोस रहे हैं। एक ओर जहां कभी पत्थरबाजी के लिए सुर्खियों में रहने वाले जम्मू-कश्मीर में अब खुशहाली और अमन-चैन का माहौल है, वहीं इसके उलट पीओके में लोगों का जीना दुश्वार होता जा रहा है।

पीओके निवासियों के जीवनस्तर में दिन-प्रतिदिन गिरावट दर्ज की जा रही है। मूलभूत सुविधाओं जैसे- सड़क, पानी और बिजली, चिकित्सा, शिक्षा का भारी अभाव है। दैनिक उपयोगी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। पीओके के लोगों को पेट की भूख मिटाने और अपने जीवन को चलाने के लिए परिस्थितियों से भारी जद्दोजहद करना पड़ रहा है। यहां से ही बिजली का उत्पादन करके पीओकेवासियों को कई गुनी कीमत पर बिजली दी जा रही है, जिसको लेकर लोगों में भारी आक्रोश है। पीओके के नाम पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा मिले पैकेज को पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों व अपने देश के अन्य राज्यों के विकास के लिए खर्च कर रहा है, इसको लेकर भी लोग काफी आक्रोशित हैं। पिछले दिनों बढ़े हुए टैक्स के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों की सुरक्षाबलों के साथ झड़प भी देखने को मिली।

इस दौरान एक पुलिसकर्मी और तीन नागरिकों की मौत हो गई, जबकि कई अन्य घायल हो गए थे। पाकिस्तान ने पीओके की स्थिति को देखते हुए वहां भारी मात्रा में सशस्त्र सुरक्षाबलों की तैनाती की है। पाकिस्तानी फौज पीओके की जनता की आवाज कुचलने का कुत्सित प्रयास भी लंबे अर्से से कर रही है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान सरकार के दोमुंहे रवैये और गलत नीतियों के खिलाफ पीओके के लोगों में आक्रोश काफी समय से पनप रहा है। इतना ही नहीं पीओके में प्रदर्शनकारियों ने भारत का झंडा फहराते हुए मदद की गुहार भी लगाई है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि आतंकवाद को पोषित करने की वजह से पाकिस्तान आज पूरी दुनिया में बेनकाब हो चुका है। यहां की सरकार कंगाल हो चुकी है, इससे उबरने के लिए पाकिस्तान की सरकार ने हाल ही में अपने कई सरकारी संस्थानों को बेचने का ऐलान भी किया था। इतना ही नहीं पाकिस्तान की सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 24वें बेलआउट पैकेज की मांग भी की थी। दरअसल, आजादी के पहले जम्मू-कश्मीर उन कुछ रियासतों में से एक थी, जो भारत और पाकिस्तान के बीच स्थित एक स्वतंत्र रियासत थी। 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश राज के अंत के बाद, ब्रिटिश और भारतीय अधिकारियों की काफी कोशिशों के बावजूद, तत्कालीन राजा हरि सिंह किसी फैसले पर नहीं पहुंच सके थे।

हालांकि, कुछ दिनों बाद महाराजा भारत में विलय की तैयारी कर रहे थे लेकिन इसी दौरान पाकिस्तान ने नापाक इरादे जताते हुए जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया, जिसके बाद महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय का फैसला किया और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत हस्ताक्षर कर जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में कर दिया। इस विलय के साथ ही संपूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत गणराज्य का अभिन्न अंग हो गया। जम्मू-कश्मीर के इस विलय के बाद भारतीय सेना पूरी जाबांजी के साथ घाटी में घुसी और पाकिस्तानी सेना को खदेड़ना शुरू किया और अधिकतर इलाकों को पाक सेना से मुक्त करा लिया। युद्ध के दौरान ही जब भारतीय सेना पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ रही थी, उसी समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाया। संयुक्त राष्ट्र में मुद्दा उठाए जाने के कारण इस प्रकरण में यथास्थिति पर सहमित बना दी गई। संयुक्त राष्ट्र में इस विषय को उठाया जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था, परंतु तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू की पाकिस्तान परस्त नीतियों के कारण जम्मू-कश्मीर का एक बहुत बड़ा हिस्सा हमारा होते हुए भी पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। जिसका दंश आज तक हम झेल रहे हैं। यह परम सौभाग्य का विषय है कि आज हमारे देश की सरकार मजबूत इच्छाशक्ति के साथ स्पष्ट रूप से अपने पड़ोसियों व विश्व समुदाय के सामने हर विषय पर खुलकर अपनी बात दमदारी से रख रही है। आज हमारी सरकार की कथनी और करनी में कोई अंतर नही है। यही कारण है कि विश्व समुदाय के सामने भारत की साख जहां दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, वहीं आतंकवाद और कट्टरता को प्रश्रय देने वाले राष्ट्रों का पतन होता दिख रहा है।

मथुरेश श्रीवास्तव

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