प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से विकसित भारत का मंसूबा व्यक्त किया। यह उनका तत्कालिक संकल्प मात्र नहीं है। बल्कि उनकी सरकार विगत आठ वर्ष से इसी संकल्प को सिद्ध करने में लगी है। लेकिन परिवारवाद और भ्रष्टाचार भारत को विकसित बनाने में बाधक है। नरेन्द्र मोदी ने इस पर प्रहार किया है। भारत में प्रजातंत्र है। सरकार के अपने संवैधानिक दायित्व होते हैं। मोदी सरकार इस जिम्मेदारी का निर्वाह कर रही है। लेकिन भारत को विकसित बनाने के अभियान में जनता का योगदान भी अपरिहार्य होता है। वह राजनीति में परिवारवाद को हतोत्साहित कर सकती है। ऐसी पार्टियों की पहली चिंता अपने कुनबे को लेकर होती है। उस पार्टी में चाहे जितने वरिष्ठ और ईमानदार नेता हों, लेकिन नेतृत्व तय करने का अंदाज राजतंत्र जैसा होता है। पार्टी सुप्रीमो के पुत्र या पुत्री को ही पूरी पार्टी उत्तराधिकार में मिलती है। विपक्ष की मुख्य पार्टी कांग्रेस का उदाहरण दिलचस्प है। कुछ वर्ष पहले सोनिया गांधी ने अस्वस्थता के कारण पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का निर्णय लिया था। परिवारवाद के कारण उनकी नजर में राहुल गांधी ही इस पद के लिए सर्वाधिक उपयुक्त थे। कांग्रेस को उनके हवाले कर दिया गया। अध्यक्ष का हार उनको पहनाया गया। इसके बाद कांग्रेस को कई चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा। राहुल को लगा कि यह पद उन्हें जबाबदेह बना रहा है। इसलिए उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ दिया। अस्वस्थता के कारण अध्यक्ष पद छोड़ने वाली सोनिया गांधी पर फिर से जिम्मेदारी आ गई। वह अंतरिम अध्यक्ष बन गईं।
वह दिन और आज का दिन। राहुल दोबारा अध्यक्ष पद का जोखिम उठाना नहीं चाहते। सोनिया गांधी की नजर में दूसरा कोई भी इस सिंहासन के लायक नहीं है। उनकी पुत्री प्रियंका भी नहीं। जाहिर है कि राजनीति के परिवारवाद पर मतदाताओं को ही निर्णय करना है। नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से किसी पार्टी का नाम नहीं लिया। लेकिन बिहार और पश्चिम बंगाल का उदाहरण सामने है। पश्चिम बंगाल में परिवारवादी पार्टी का शासन है। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के भतीजे युवराज के रूप में है। ऐसी पार्टियों में सभी बड़े कार्यों पर मुखिया की नजर रहती है। ममता बनर्जी के विश्वासपात्र की बड़े घोटाले में संलिप्तता का मामला उजागर हुआ है। बड़ी मात्रा मे अवैध संपत्ति ईडी को मिली है। लेकिन ममता बनर्जी की सरकार को विधानसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त है। बिहार में नीतीश कुमार ने जिस पार्टी पर घोटालों के आरोप लगाए थे, जिसके संस्थापक की वर्तमान स्थिति सबके सामने है, उसी पार्टी के साथ सरकार बना ली है। तेजस्वी यादव उनके साथ उप मुख्यमंत्री हैं। इतिहास ने अपने को दोहराया है।
नीतीश और तेजस्वी की यह जोड़ी दूसरी बार सरकार में है। पहली बार राजद परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण ही नीतीश उनसे अलग हुए थे। वह भाजपा के साथ आ गए थे। फिर लौट कर वहीं पहुंच गए। उनकी वर्तमान सरकार संख्याबल के हिसाब से पहले के मुकाबले मजबूत है। लेकिन गंभीर आरोपितों का वर्चस्व चिंता करने वाला है। ऐसी स्थिति से मतदाता ही राजनीति को बचा सकते हैं। इसीलिए नरेन्द्र मोदी ने जनता के सहयोग का आह्वान किया है। ऐसा करके वह अपवाद छोड़ कर अन्य सभी पार्टियों के निशाने पर आ गए हैं। क्योंकि भाजपा और वामपंथियों को छोड़ कर सभी पार्टियां परिवारवाद पर आधारित हैं। कम्युनिस्ट पार्टी केरल तक सिमट चुकी है।वहां भी वामपंथ का नया संस्करण आ गया है। मुख्यमंत्री के दामाद का जलवा सरकार और पार्टी में बढ़ रहा है। देश के हर संस्थान में परिवारवाद को पोषित किया गया है। मोदी ने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों में देश के खिलाड़ियों को पहले से अधिक पदक मिले हैं। यह प्रतिभाएं पहले भी भारत में थीं, लेकिन भाई-भतीजावाद के कारण वह नहीं उभर पाईं। भारत को विकसित बनाने के मार्ग में दूसरी सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार है। इसमें भी परिवारवादी पार्टियों पर सर्वाधिक आरोप लगते हैं। नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है। उससे देश को लड़ना ही होगा। सरकार का प्रयास है कि जिन्होंने देश को लूटा है।उनको लूट का धन लौटाना पड़े।
नरेन्द्र मोदी ने विकसित भारत के लिए पांच प्रण का महत्व रेखांकित किया है। हमको भारतीय विरासत पर गर्व करना चाहिए। वैश्विक समस्याओं का समाधान भारतीय चिंतन के माध्यम से सम्भव है। भारत लोकतंत्र की जननी है। इसका भी देश को गर्व होना चाहिए। दासता के किसी भी निशान को हटाना, विरासत पर गर्व, एकता और अपने कर्तव्यों को पूरा करना सभी का दायित्व है। इससे भारत को विकसित बनाया जा सकता है।पंच प्रण पर अपनी शक्ति,संकल्पों और सामर्थ्य को केंद्रित करना आवश्यक है।
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री