Ajmer Sharif Dargah : अजमेर में गरीब नवाज हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) दरगाह पर 813वां उर्स (813th Urs) शुरू हो गया है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi Narendra Modi) आज शाम केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी को चादर सौंपेंगे।
Ajmer Sharif Dargah : पीएम मोदी 11वीं बार भेजेंगे चादर
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू अपनी ओर से चादर लेकर अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह जाएंगे। यह 11वीं बार होगा जब पीएम मोदी की ओर से अजमेर चादर भेजी जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली में दरगाह से जुड़े विभिन्न पक्षों को चादर सौंपेंगे और इसके लिए दिल्ली से एक प्रतिनिधिमंडल अजमेर जाएगा। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने इस आयोजन की तैयारियां शुरू कर दी हैं। दरगाह कमेटी, दरगाह दीवान, अंजुमन सैयद जादगान जैसी संस्थाओं से भी नाम मांगे गए हैं।
ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813वां उर्स शुरू
राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813वां उर्स बुधवार को चांद दिखने के साथ ही शुरू हो गया। सूफी फाउंडेशन के अध्यक्ष और अजमेर दरगाह के गद्दीनशीन हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने इस मौके पर लोगों को मुबारकबाद दी। हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने आईएएनएस से कहा, “चांद दिखने के साथ ही गरीब नवाज का सालाना उर्स बुधवार से शुरू हो गया है।”
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उन्होंने सभी को उर्स की मुबारकबाद देते हुए कहा, “पिछले 10 सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दरगाह पर चादर भेजते आ रहे हैं। यह परंपरा 1947 में देश की आजादी के समय से चली आ रही है कि जो भी देश का प्रधानमंत्री होता है, वह हर साल दरगाह पर चादर के साथ देश के नाम एक संदेश भेजता है, जिसमें अमन-चैन और भाईचारे की दुआ मांगी जाती है।” 28 दिसंबर 2024 को अजमेर दरगाह पर झंडे की रस्म अदा की गई।
Ajmer Sharif Dargah : 1928 में शुरू हुई थी झंडे रस्म
भीलवाड़ा का गौरी परिवार ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर झंडे की रस्म पूरी करता है। गौरी परिवार के अनुसार यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। फखरुद्दीन गौरी के पीर-मुर्शिद अब्दुल सत्तार बादशाह ने 1928 में झंडे की रस्म शुरू की थी। इसके बाद 1944 में यह जिम्मेदारी उनके दादा लाल मोहम्मद गौरी को सौंप दी गई। उनकी मौत के बाद 1991 में उनके बेटे मोइनुद्दीन गौरी ने यह रस्म अदा की। फखरुद्दीन गौरी 2007 से यह रस्म अदा करते आ रहे हैं।