लखनऊः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सरकारी आवास पर बैठक कर प्राधिकरणों की कार्यप्रणाली और नियमावलियों पर चर्चा की और संबंधित अधिकारियों को जरूरी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि शहरों के विकास को नियोजित रूप देना आवश्यक है। एलडीए के परिक्षेत्र को विस्तारित करने के भी निर्देश दिए।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सतत-समन्वित प्रयासों से राजधानी लखनऊ आज मेट्रोपोलिटन सिटी के रूप में अत्याधुनिक नगरीय सुविधाओं से लैस हो रहा है। विभिन्न नगरों से लोग यहां आकर अपना स्थायी निवास बनाना चाहते हैं। वर्तमान में 45 लाख से अधिक आबादी एलडीए की सीमा के भीतर निवास करती है। साल-दर-साल लखनऊ का विस्तार हो रहा है, किंतु यह विकास अनियोजित है। इसे व्यवस्थित स्वरूप दिए जाने की आवश्यकता है। ऐसे में लखनऊ विकास प्राधिकरण के परिक्षेत्र को विस्तार दिया जाए। मेट्रोपोलिटन बोर्ड की तर्ज पर इस संबंध में वृहद कार्ययोजना तैयार कर यथाशीघ्र प्रस्तुत किया जाए। उन्होंने विकास प्राधिकरणों की संपत्ति के नामांतरण की प्रक्रिया काे सरलीकरण करना जरूरी बताया। नामांतरण प्रभार सम्बंधित परिसंपत्ति के लिए देय एक प्रतिशत को कम किए जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि आवास विभाग अंतर्गत विकास प्राधिकरणों में विधिक उत्तराधिकार, वसीयत की स्थिति में म्युटेशन फीस अधिकतम 5,000 तक होनी चाहिए। फ्री होल्ड अथवा गिफ्ट संपत्ति के मूल्य के आधार पर अधिकतम 10,000 का शुल्क लिया जाना चाहिए। लीज संपत्ति की स्थिति में एक प्रतिशत म्युटेशन फीस ली जा सकती है।
संपत्ति नामांतरण की प्रक्रिया जनहित गारंटी अधिनियम के अंतर्गत है। इसका ध्यान रखते हुए आम नागरिक के आवेदनों का समयबद्ध निस्तारण किया जाना सुनिश्चित कराएं। लखनऊ ग्रीन कॉरिडोर की विशिष्ट योजना को अगले दो महीने में प्रारंभ करा दिया जाए। यह योजना लखनऊ को एक आकर्षक स्वरूप देने वाली होगी।
लखनऊ में गोमती नदी के दोनों तटों पर तथा नैमिषारण्य अतिथि भवन के आसपास कुछ झुग्गी बस्तियां हैं। इनका चिन्हीकरण यहां के निवासियों का व्यवस्थापक कराया जाए। नियमानुसार इन्हें पीएम आवास, शौचालय आदि शासकीय योजनाओं से जोड़ा जाना चाहिए। यह कार्य जल्द से जल्द करा लिया जाए। बटलर झील को अमृत सरोवर के रूप में विकसित किया जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विकास प्राधिकरण, नगरीय निकाय, स्थानीय प्रशासन और पुलिस यह सुनिश्चित करें कि कहीं भी किसी भी परिस्थिति में अवैध बस्तियां बसने न पाए। हर विकास प्राधिकरण, नगरीय निकाय में टाउन प्लानर की तैनाती की जाए। आईआईटी अथवा राज्य सरकार तकनीकी शैक्षणिक संस्थानों का सहयोग लिया जाना चाहिए। परियोजनाओं का निर्धारण करते समय आगामी 50 वर्षों की स्थिति को ध्यान में रखें। हर कॉलोनी में सभी जरूरी सुविधाएं हों। अवैध कॉलोनियों को विकसित न होने दें।
उन्होंने कहा कि प्राधिकरण सीमान्तर्गत सभी आवासीय, निजी एवं शासकीय भवनों में रेन वॉटर हारवेस्टिंग को प्रोत्साहित किया जाए। इस संबंध में एक सुस्पष्ट नियमावली तैयार कर प्रस्तुत करें।
विकास प्राधिकरणों द्वारा निवासियों से जल शुल्क लिए जाने में एकरूपता का अभाव है। अधिकांश विकास प्राधिकरणों द्वारा जल शुल्क नहीं लिया जा रहा है। कुछ विकास प्राधिकरणों जैसे लखनऊ व वाराणसी द्वारा अपने स्तर पर निर्धारित शुल्क पर जल शुल्क लिया जा रहा है। ऐसे में स्पष्ट जल शुल्क नियमावली की आवश्यकता है। इसे यथाशीघ्र तैयार किया जाए।
जहां कोई भूमि, भूखण्ड प्राधिकरण द्वारा विकसित योजना के बाहर हो अथवा जहां प्राधिकरण जलापूर्ति करने में असमर्थ हो, वहां जल शुल्क कतई न लिया जाए। जल शुल्क, अम्बार शुल्क की दरों को प्राधिकरण द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष की प्रथम अप्रैल को आयकर विभाग के कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स के आधार पर पुनरीक्षित किया जाना चाहिए।
विकास प्राधिकरण की भूमि अथवा सार्वजनिक मार्ग अथवा सार्वजनिक स्थान पर निर्माण सामग्री रखने वाले व्यक्तियों अथवा निकाय पर लगने वाले अंबार शुल्क के पुनरीक्षण पर विचार किया जाना चाहिए। इस सम्बंध में अच्छी और उपयोगी अंबार शुल्क नियमावली तैयार किया जाए।