मोक्ष की कामना: मां की कोख में मारी गईं 15,000 बच्चियों का काशी में हुआ पिंडदान

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वाराणसीः इन दिनों पितरों के तर्पण का माह पितृपक्ष चल रहा है। रविवार को वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर सामाजिक संस्था आगमन ने दशाश्वमेधघाट पर अजन्मी बेटियों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध (shradh ) किया जिनकी हत्या भ्रूण के रूप में उनकी मां की कोख में ही कर दी गई थी। इनका वैदिक परंपरा के अनुसार श्राद्ध कर्म और जल तर्पण किया गया।

बता दें कि सामाजिक संस्था के संस्थापक डॉ. संतोष ओझा ने लगातार 10वें साल ने 15 हजार पिंडदान अजन्मी बेटियों के नाम किए। जबकि श्राद्ध के पहले शांति पाठ किया। इसके बाद अलग- अलग 15 हजार अनाम, ज्ञात और अज्ञात बेटियों के पिंड को स्थापित कर विधिपूर्वक आह्वान कर पूजन अर्चन कर उनके मोक्ष की कामना की। फिर गंगा में पिंड विसर्जन के बाद सभी को जल अर्पित कर तृप्त होने की कामना की।

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दस वर्षों में 82 हजार अजन्मी बेटियों का किया श्राद्ध

वैदिक परंपरा के अनुसार श्राद्ध और जल तर्पण करने के बाद डॉ. संतोष ओझा ने कहा कि पिछले दस वर्षों में वे 82 हजार अजन्मी बेटियों का श्राद्ध कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि संस्था उन अजन्मी बेटियों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करती है। जिनकी उनकी मां के गर्भ में ही उन लोगों ने हत्या कर दी जिन्हें हम सभी माता-पिता या रिश्तेदार कहते हैं। डॉ. संतोष ने कहा कि गर्भपात सिर्फ ऑपरेशन नहीं बल्कि हत्या है। ऐसे में कोख में मारी गई उन बेटियों को भी मोक्ष मिले और समाज से ये कुरीति दूर हो इसके लिए हम लोग ये आयोजन करते हैं।

एक दशक से चला रहा कन्या भ्रूण हत्या रोकने का अभियान

डॉ. संतोष ओझा ने बताया कि वर्ष 2001 में वे आगमन टीम के साथ मिलकर एड्स महामारी पर जन जागरूकता अभियान चलाते थे। उसी समय एक दिन हमारी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जिसने बेटे की चाह में भ्रूणहत्या कर ली थी। उसने अपनी पत्नी के गर्भ में ही बच्ची की हत्या कर दी। उनके लिए यह एक सामान्य घटना थी लेकिन इस घटना ने ही हमें बेटियों के जन्म से जुड़े मुद्दों पर जनजागरूकता पैदा करने के लिए प्रेरित किया। आगमन संस्था एक दशक से अधिक समय से कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए जन जागरूकता अभियान चला रही है।

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