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नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिका 6 दिसम्बर तक टली

Supreme Court of India

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 6 दिसंबर तक के लिए टाल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने दो वकीलों को सभी याचिकाओं में उठाए मुख्य मसलों का संग्रह तैयार करने का जिम्मा दिया है।

नागरिकता संशोधन कानून पर 232 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इनमें से 53 असम और त्रिपुरा से जुड़ी हुई हैं। त्रिपुरा और असम से जुड़ी याचिकाएं अलग से सुनी जाएंगी। आज केंद्र सरकार ने त्रिपुरा और असम को लेकर अलग हलफनामा दाखिल कर कहा कि नागरिकता संशोधन कानून से असम समझौता और उत्तर-पूर्व के लोगों के सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है। हलफनामा में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान या बांग्लादेश से 31 दिसंबर, 2014 से पहले आए हुए हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी और बौद्धों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। यह कानून भारत में अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए लाया गया है।

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इससे पहले 17 मार्च, 2020 को केंद्र सरकार ने इस मामले में हलफनामा दाखिल किया था। 133 पेजों के हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून में कोई गड़बड़ी नहीं है। इस कानून में कुछ खास देशों के खास समुदाय के लोगों के लिए ढील दी गई है। संबंधित देशों में धर्म के आधार पर उत्पीड़न किया जा रहा है। पिछले 70 सालों में उन देशों में धर्म के आधार पर किए जा रहे उत्पीड़न को ध्यान में रखते हुए संसद ने ये संशोधन किया है। इस कानून से किसी भी भारतीय नागरिक का कानूनी, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष अधिकार प्रभावित नहीं होता है। केंद्र ने कहा था कि नागरिकता देने का मामला संसदीय विधायी कार्य है। यह विदेश नीति पर निर्भर करता है। इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। इस कानून से संविधान की धारा 14 का कोई उल्लंघन नहीं होता।

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