लखनऊः हरी मटर की खेती इस बार काफी मुनाफे वाली साबित हुई है। देर से बारिश का नतीजा है कि खेतों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ रही है। अक्टूबर में दशहरा के करीब तक पानी बरसने का लाभ किसानों को मिल रहा है। माना जा रहा है कि मटर का लाभ मौसम पर निर्भर करता है। देर से बोई गई मटर को सर्दी का पूरा लाभ मिल रहा है। फसलों की तुलना में उच्च जल प्रतिशत की आवश्यकता मटर को होती है, लेकिन इन दिनों छह डिग्री तापमान होने के कारण खेतों ज्यादा नमी की जरूरत नहीं है। जरूरत इस बात की है कि खेतों मंे खर-पतवार न उगने दें।
सब्जी जनित फसलों में हरी मटर हर सीजन में पसंद की जाती है। हालांकि, अब इसकी खेती फागुन तक की जाती है, लेकिन ज्यादा तवज्जो इसे दिसम्बर और जनवरी में ही दिया जाता हैं। इसकी खेती का विस्तार भी लगातार बढ़ रहा है। लखनऊ में जलवायु की स्थिति बहुत अच्छी है। नम और ठंडे क्षेत्रों में हरी मटर काफी अच्छी होती है। हरी मटर की खेती के लिए आदर्श तापमान 10 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होना चाहिए। वर्तमान में यहां का तापमान 06 डिग्री तापमान के करीब है। फसल वृद्धि के लिए 500 मिमी की आदर्श वर्षा की आवश्यकता होती है। हरी मटर की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। क्षेत्रीय आधार पर कई प्रकार मिट्टी किसी भी शहर में मिल जाती है।
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उदाहरण के लिए गोमती नदी के किनारे की मिट्टी शहर के करीब गांवों की मिट्टी से थोड़ा बदली पाई जाती है। अच्छे कार्बनिक पदार्थों के साथ मिट्टी में मटर की अच्छी उपज मिलने का कारण यही है कि यहां की भूिम बेहतर है। सड़ी खाद खेतों में डालने से मिट्टी में सभी प्रकार के पोषक तत्वों की पहुंच बन जाती है। आज जो किसान इसका लाभ ले रहे हैं, उनका कारण यही है कि सही समय में पोषक तत्व मिट्टी में पहुंचा दिए गए थे। लखनऊ शहर में इन दिनों मटर की अच्छी खपत हैं। दुबग्गा मंडी में ऐसी मटर भी आ रही है, जो सीजन की दूसरी फसल है यानी पहले किसानों ने खेतों में हरा चारा तैयार किया और फिर इसमें मटर बो दिया।
बढ़ रही है मटर की मांग –
हरी मटर की खेती का विस्तार लगातार बढ़ने के कई कारण हैं। आधुनिक तरीके से इसके दाने भी निकाल कर फ्रीजर में रख लिया जाता हैं। कुछ लोग इसे केमिकल के सहारे भी हरा बनाए रखते हैं। गर्मी में यह काफी महंगे दामों पर बिकती है। कुछ सालों पहले मटर को बोने में काफी परेशानी आती थी। इसके उगने की प्रक्रिया कठिन थी, लेकिन अब मटर के बीजों को बुवाई से पहले ही भिगो लिया जाता है।
- शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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