Paris Olympics: सोने के बिना हल्की रही भारत की झोली

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Paris olympics_- भारत के लिहाज से खट्टी-मीठी यादों वाला कहा जाएगा। इस बार दहाई के अंक तक पदक हासिल करने की उम्मीद लगाई जा रही थी। कहा गया कि पिछले टोक्यो ओलंपिक में सात पदक से ज्यादा हम पेरिस में जीतेंगे। यह दावा जोर-शोर से किया गया था, मगर अनुमान और भविष्यवाणी हमेशा सही साबित नहीं होते हैं। सबसे बड़ी निराशा तो यह कि हमारे किसी खिलाड़ी अथवा एथलीट ने स्वर्ण पदक नहीं जीता। यह किसी दुर्भाग्य से कम नहीं है।

अमेरिका-चीन ही नहीं पाकिस्तान से पीछे रहा भारत

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बिना स्वर्ण पदक के प्रदर्शन फीका सा लग रहा है। सोना नहीं जीतने के कारण पदक तालिका में भारत काफी नीचे यानी 71वें स्थान पर रहा। एक भी स्वर्ण पदक मिल जाता तो हम थोड़ा ऊपर दिख जाते। भाला फेंक में नीरज चोपड़ा से स्वर्ण की पूरी उम्मीद थी लेकिन वह भी रजत पदक ही ला सके।

इस प्रतियांगिता का स्वर्ण पदक पाकिस्तान के अरशद नदीम के नाम रहा। इस वजह से पाकिस्तान एक स्वर्ण पदक लेकर पदक तालिका में भारत से ऊपर हो गया। 40 स्वर्ण सहित 126 पदकों के साथ अमेरिका पहले नंबर पर रहा। ओलंपिक में उसका वर्चस्व बना रहा। दूसरे नबंर पर चीन का कब्जा रहा जिसने 40 स्वर्ण के साथ कुल 91 पदक जीते। आप सोचिए भारत इनके मुकाबले कहां खड़ा है।

Hockey team से थी भारत को उम्मीद

केन्द्र सरकार ने ओलंपिक की तैयारी के लिए 470 करोड़ रुपये खर्च किए। केन्द्र सरकार ने खिलाड़ियों पर पैसा बहाने में कोई कोताही नहीं की। इसके बावजूद जो नतीजा आया है, वह बहुत निराशाजनक है। सरकार और खेल संघों को मिल बैठ कर इस पर विचार करना चाहिए कि कमी कहां रह गई ?

140 करोड़ की जनसंख्या वाला देश विश्व स्तर पर कब तक इतने नीचे रहेगा ? खेलों में कामयाबी के लिए मानसिक रूप से मजबूत होना परम आवश्यक है। इस मामले में हमारे एथलीट पिछड़ जाते हैं। भारत को कुल छह पदक मिले, जिनमें से एक रजत और पांच कांस्य पदक शामिल हैं। इसमें हॉकी टीम को मिला कांस्य पदक भी है।

हालांकि, पेरिस में भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण के लिए पूरा जोर लगाया, पर सेमीफाइनल मुकाबले में जर्मनी से पराजित होने के बाद यह आस भी टूट गई। अंतिम क्षणों में जर्मनी ने जो हमले किए, उसका परिणाम यह रहा कि भारत को हार मिली।

मास्को ओलंपिक-1980 में स्वर्ण पदक जीतने के बाद भारत अभी तक इससे वंचित है। संतोष इसी बात का है कि लगातार दो ओलंपिक टोक्यो और पेरिस में हमारी टीम ने तीसरे स्थान पर रह कर कांस्य पदक हासिल कर लिया। खाली हाथ लौटने से बेहतर है कि कुछ मिल गया। बैडमिंटन में युवा लक्ष्य सेन ने शानदार खेल दिखाया लेकिन पदक हाथ नहीं आया। सेमीफाइनल तक पहुंच कर भी लक्ष्य खाली हाथ रह गए।

हॉकी टीम ने जीता दिल, मनु ने रचा इतिहास

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इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय टीम ने बहुत अच्छी हॉकी खेली। ओलंपिक में 52 साल के बाद ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को हराया। क्वार्टर फाइनल में 42 मिनट तक 10 खिलाड़ियों के साथ खेलते हुए भारत ने ब्रिटेन को हराया। रेफरी ने रेड कार्ड दिखा कर अमित रोहिदास को बाहर कर दिया था। इस प्रदर्शन को देख कर सभी को स्वर्ण पदक की उम्मीद बन गई थी। हालांकि, कप्तान हरमनप्रीत सिंह की टीम कांस्य पदक ही हासिल कर सकी।

हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल माना जाता है। एक दौर था, जब हॉकी में हमारी बादशाहत थी लेकिन 1980 के बाद भारत का खेल गिरता चला गया। हॉकी में मास्को ओलंपिक-1980 के बाद हम स्वर्ण पदक के लिए तरस रहे हैं। पिछले टोक्यो ओलंपिक में जब कांस्य पदक मिला तो लगा कि भारतीय हॉकी में जान आ गई है। अब पेरिस में यह विश्वास हो गया है कि हमारी टीम पुराना गौरवशाली इतिहास दोहरा सकती है।

37 वर्षीय गोलकीपर पीआर श्रीजेश की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। इस खिलाड़ी ने न जाने कितने गोल बचा कर भारत की जीत में योगदान दिया। यह उनका आखिरी टूर्नामेंट था। चार ओलंपिक खेल चुके श्रीजेश ने अब संन्यास ले लिया है। कसक यह रह गई कि स्वर्ण पदक से उनकी विदाई नहीं हो सकी। गोल पोस्ट में वह भारत के लिए दीवार साबित हुए। लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने के बाद देशवासियों को भविष्य के लिए उम्मीद जगी है। हॉकी से हमारा भावनात्मक रिश्ता है। लिहाजा, इस खेल में पदक जीतने का अलग ही महत्व है।

Marksmanship में भारत को तीन पदक

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निशानेबाजी में मनु भाकर ने दो पदक जीत कर इतिहास रच दिया। हालांकि, तीसरे पदक से वह चूक गई, वरना भारत के खाते में एक और पदक जुड़ जाता। मनु भाकर 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में चैथे स्थान पर रही। इस कारण एक और पदक हाथ से फिसल गया। पूरा देश आज हरियाणा की इस लड़की पर नाज कर रहा है।

भाकर ने शूटिंग में व्यक्तिगत रूप से तो कांस्य पदक जीता ही, सरबजोत के साथ 10 मीटर एयर पिस्टल की मिक्स्ड स्पर्धा में भी यही सफलता दोहरा दी। इस स्पर्धा में एक और कांस्य पदक महाराष्ट्र के स्वप्निल कुसाले ने 50 मीटर राइफल में दिलाया। इस तरह निशानेबाजी में भारत को तीन पदक मिले।

हमारे शूटरों ने ओलंपिक में 12 साल बाद पदक जीत कर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। इससे पहले लंदन ओलंपिक-2012 में विजय कुमार ने रजत और गगन नारंग ने कांस्य पदक जीता था। इस स्पर्धा में एकमात्र स्वर्ण पदक अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक 2008 में हासिल किया था। महिला पहलवान विनेश फोगाट के साथ हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने इस ओलंपिक में भारत को बड़ा सदमा दे दिया। पूरा देश इस घटना से हैरान-परेशान है।

वह फाइनल मुकाबले से पहले केवल 100 ग्राम अधिक वजन होने के कारण अयोग्य ठहरा दी गई, वरना एक पदक तो मिलना तय ही था। विनेश ने बड़ी बहादुरी से फाइनल तक का सफर पूरा किया था। पहली बार देश की कोई महिला पहलवान फाइनल में पहुंची थी, मगर भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। विनेश का दावा था कि उन्हें रजत पदक दिया जाना चाहिए, मगर खेल पंचाट ने अपना निर्णय सुना दिया कि विनेश को कोई पदक नहीं दिया जाएगा।

विनेश ने कुश्ती से संन्यास का किया ऐलान

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देश के जाने-माने अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भी उनकी तरफ से केस लड़ा। इससे उम्मीद बनी थी कि विनेश फोगाट को कम से कम रजत पदक मिल जाएगा। लगातार तीन ओलंपिक में भाग लेने के बावजूद विनेश कोई पदक नहीं जीत सकी। चार साल बाद लांस एंजिलिस में क्या होगा, कौन जानता है ? हाथ में आया पदक इस तरह फिसल जाए तो अफसोस होगा ही।

पूरा देश इस घटना से क्षोभ में है, मगर नियम-कायदे के आगे कोई कुछ नहीं कर सकता। प्रारब्ध में जो लिखा है, वही होगा। यह अच्छी बात है कि पेरिस से स्वदेश आने पर विनेश का एक विजेता के तौर पर स्वागत हुआ। इस बीच विनेश ने भावुकता में आकर कुश्ती से संन्यास का ऐलान भी कर दिया है। अब देखना है कि इस निर्णय पर वह अडिग रहती हैं या फिर वह अखाड़े में उतरती हैं।

कुश्ती में अमन सेहरावत ने रखी लाज

कुश्ती में एकमात्र पुरुष पहलवान अमन सेहरावत ने पहली बार किसी ओलंपिक में भाग लिया और उन्होंने कांस्य पदक जीत कर देश की लाज रख ली। 21 साल के अमन ओलंपिक में पदक जीतने वाले सबसे युवा खिलाड़ी रहे। अन्य महिला पहलवानों को कोई पदक नहीं मिला। आखिरी दिन रितिका हुड्डा ने थोड़ी आस जगाई, लेकिन क्वार्टर फाइनल में दमखम दिखाने के बाद वह शीर्ष वरीयता प्राप्त किर्गिस्तान की पहलवान से हार गई।

निशा दहिया 68 किलोग्राम वर्ग में चोट के कारण जीता हुआ क्वार्टर फाइनल मैच अंतिम 33 सेकंड में 10-8 से हार गईं। हार के बाद निशा की आंखों से आंसू निकल आए। इसे हम दुर्भाग्य ही कहेंगे कि हमारी पहलवान कोई पदक नहीं ला सकीं।

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भारत के कई खिलाड़ी पदक से इसलिए भी चूक गए क्योंकि वे चौथे स्थान पर रहे। छह खिलाड़ियों ने मामूली अंकों के साथ तीसरे पर न आकर चौथा स्थान हासिल किया। यदि ये तीसरे नंबर पर आ जाते, तो कम से कम कांस्य पदक तो मिल ही जाता। अर्जुन बाबूता 10 मीटर एयर राइफल में अंतिम समय में निशाने से भटक गए और पदक गंवा बैठे।

इसी तरह माहेश्वरी चौहान और अनंतजीत सिंह नरूका की जोड़ी स्कीट मिश्रित टीम में कांस्य के मुकाबले में चीन से एक अंक से हार गई। शटलर लक्ष्य सेन को सेमीफाइनल में पहला गेम जीतने के बावजूद मलेशिया के ली जी जिया से हार झेलनी पड़ी। टोक्यो की रजत विजेता मीरा बाई चानू केवल दो किलोग्राम से तीसरे स्थान पर आने से रह गईं।

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तीरंदाजी की मिश्रित टीम स्पर्धा में अंकिता भकत एवं धीरज कांसे के मुकाबले में अमेरिका से हार गए। भारतीय एथलीट अविनाश साबले ने पुरुष 3,000 मीटर के स्टीपलचेज स्पर्धा में फाइनल के लिए क्वालिफाई कर लिया था।

उनसे भी पदक की उम्मीद बन गई थी, मगर बाद में उन्होंने भी निराश किया। एशियाई खेलों में साबले ने स्वर्ण पदक जीता था। अब हमारा लक्ष्य अगला ओलंपिक होना चाहिए। 2028 में लास एंजिल्स में पदकों की संख्या बढ़े, इस पर अभी से काम आरंभ हो जाना चाहिए।

आदर्श प्रकाश सिंह

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