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UP: गोरखपुर के पनियाला को मिला GI टैग, जामुन जैसा दिखने वाला ये फल औषधि गुणों से है भरपूर

Paniyala Fruit Paniyala fruit of Gorakhpur- लखनऊः गोरखपुर के पनियाला फल के दिन बहुरने वाले हैं। लोगों को स्वस्थ रखने वाला पनियाला फल औषधीय गुणों से भरपूर है, जिसमें पत्तियां, छाल, जड़ और फल में एंटी-बैक्टीरियल गुण शामिल हैं। गोरखपुर के इस मशहूर फल को अब जीआई टैग मिल गया है। जीआई टैगिंग अब पनियाला के लिए संजीवनी साबित होगी। इससे इस लुप्तप्राय फल की मांग बढ़ेगी। सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग किये जाने से भविष्य में यह भी टेराकोटा की तरह गोरखपुर का ब्रांड होगा।

पांच दशक पहले यह गोरखपुर का खास फल था

जानकर बताते हैं कि पनियाला का रंग बैंगनी है। यह फल स्वाद में कुछ खट्टा और थोड़ा कसाला होता है। चार-पांच दशक पहले यह गोरखपुर का खास फल हुआ करता था। नाम के अनुरूप इसका स्वाद याद आते ही देखते ही मुंह में पानी आ जाता था। अब यह विलुप्ति के कगार पर है। लेकिन योगी सरकार ने विलुप्त होते पनियाला को और खास बनाने की गंभीर पहल की है। प्रसिद्ध बागवानी विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ। रजनीकांत ने बताया कि उत्तर प्रदेश के 10 विशेष उत्पादों के लिए जीआई पंजीकरण प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसमें गोरखपुर का पनियाला भी है। ये भी पढ़ें..Aaj Ka Rashifal 22 August 2023: आज का राशिफल मंगलवार 22 अगस्त 2023, जानें कैसा रहेगा आपका दिन

गोरखपुर के टेराकोटा को भी मिल चुका है जीआई टैग

इन सभी उत्पादों के आवेदन नाबार्ड के वित्तीय सहयोग से गोरखपुर के एक एफपीओ और ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के तकनीकी मार्गदर्शन में जीआई पंजीकरण के लिए चेन्नई भेजे जा रहे हैं। जीआई मिलने पर यह गोरखपुर का दूसरा उत्पाद होगा। इससे पहले 2019 में गोरखपुर टेराकोटा को जीआई टैग मिल चुका है, इससे न सिर्फ गोरखपुर के किसानों को बल्कि देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराईच, गोंडा और श्रावस्ती के बागवानों को भी फायदा होगा। क्योंकि ये सभी जिले एक ही कृषि जलवायु क्षेत्र में आते हैं। Paniyala Fruit इन जिलों के कृषि उत्पादों की गुणवत्ता भी एक जैसी होगी। चार-पांच दशक पहले तक गोरखपुर में पनियाला (Paniyala fruit) के पेड़ बहुतायत में मिलते थे। लेकिन अब यह लगभग विलुप्त हो चुका है। यूपी राज्य जैव विविधता बोर्ड की ई-मैगजीन के मुताबिक यह पूरी तरह से ज्ञात नहीं है कि यह पेड़ कहां है, लेकिन पूरी संभावना है कि यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का है।

औषधि गुणों से है भरपूर ये फल

2011 में हुए एक शोध के अनुसार, इसकी पत्तियों, छाल, जड़ों और फलों में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं। इस वजह से ये पेट की कई बीमारियों में फायदेमंद होते हैं। स्थानीय स्तर पर इसका उपयोग पेट के कई रोगों, दांतों और मसूड़ों में दर्द, उनसे खून आना, कफ, निमोनिया और गले में खराश आदि में किया जाता है। इसके फल लीवर के रोगों में भी उपयोगी पाए गए हैं। फलों को जैम, जेली तथा जूस के रूप में बनाकर लम्बे समय तक रखा जा सकता है। लकड़ी जलाऊ लकड़ी और कृषि प्रयोजनों के लिए उपयोगी है।

दो गुनी होगी कमाई

स्थानीय लोगों का कहना है कि पनियाला पारंपरिक खेती से ज्यादा मुनाफा देता है। कुछ साल पहले यूपी राज्य जैव विविधता बोर्ड के केआर दुबे करमहिया गांव सभा के करम्हा गांव में पारस निषाद के घर गए थे। पारस के पास नौ पनियाला के पेड़ थे। अक्टूबर में आने वाले फलों की कीमत उस समय 60-90 रुपये प्रति किलो थी। उस वक्त उन्हें प्रति पेड़ करीब 3,300 रुपये की कमाई होती थी। अब ये कीमतें दोगुनी या उससे भी ज्यादा होंगी। खास बात यह है कि पेड़ों की ऊंचाई करीब नौ मीटर है। इसलिए इसका रखरखाव भी आसान है. ऐसी दुर्लभ चीजों में दिलचस्पी रखने वाले गोरखपुर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. आलोक गुप्ता के मुताबिक, पनियाला गोरखपुर का खास फल है। यह शारदीय नवरात्रि के आसपास बाजार में आता है। सीधे खाने पर इसका स्वाद मीठा और कसैला होता है. हथेली या उंगलियों के बीच धीरे-धीरे घुलने के बाद यह बहुत मीठा होता है।

जीआई टैग से निर्यात को मिलता है बढ़ावा

गौरतलब है कि जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। जीआई टैग से कृषि उत्पादों के अनाधिकृत उपयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है। इससे किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ जाता है। जीआई टैग को अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक ट्रेडमार्क के रूप में माना जाता है। इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आय भी बढ़ती है और विशिष्ट कृषि उत्पादों की पहचान कर उन्हें भारत के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में निर्यात और प्रचारित करना आसान होता है। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)