लाइलाज कैंसर में वरदान साबित होता है पैलेटिव केयर

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लखनऊः कैंसर मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, समय पर इलाज से इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। देरी से पता चलने पर यह गंभीर हो जाती है, ऐसे में इलाज भी कठिन हो जाता है। जब इलाज के लिए कुछ नहीं बचता है, तो मरीज की दिक्कतों को कम करने में पैलेटिव केयर की भूमिका बढ़ जाती है। इससे मरीज के जीवन को आसान बनाने में मदद मिलती है।

यह जानकारी केजीएमयू रेडियोथेरेपी विभाग के डॉ. राजेंद्र कुमार ने दी। वह पैलेटिव केयर डे पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। रेडियोथेरेपी विभाग के डॉ. राजेंद्र कुमार ने कहा कि कैंसर मरीजों की भूख में कमी आ जाती है। दर्द की वजह से मरीज चलने-फिरने में लाचार हो जाते हैं। मानसिक रूप से भी मरीज टूटने लगता है। ऐसे में पैलेटिव केयर से मरीजों को राहत दी सकती है। मरीज की काउंसलिंग की जाती है। केजीएमयू व एनजीओ की टीम मरीजों की मदद में लगाई जाती है। यह टीमें मरीजों के खान-पान से लेकर साफ-सफाई में मदद करती है। मरीज की काउंसिलिंग कर ऊर्जा का संचार किया जाता है। डॉ. राजेंद्र कुमार ने कहा कि मरीज के परिवारीजनों की भी काउंसिलिंग कराई जाती है। इसमें तीमारदारों को मरीज की देखभाल करने के तौर-तरीके सिखाए जाते हैं।

एम्स भोपाल के पूर्व निदेशक डॉ. संदीप कुमार ने कहा कि कैंसर के शुरूआती अवस्था में इलाज आसान होता है। जब बीमारी लाइलाज हो जाती है, तो ऐसे मरीजों को पैलेटिव केयर की जरूरत पड़ती है। पैलेटिव केयर अस्पताल व घर में दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि पैलेटिव केयर में मरीज के खाने की नली, यूरिन, स्टूल बैग के साथ मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखा जाता है। इससे मरीज की दिक्कतें काफी हद तक कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि मुंह के कैंसर से पीड़ित मरीजों के ऑपरेशन के बाद चेहरा कुछ विकृत दिखने लगता है। इससे भी मरीज मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं। इससे उबारने के लिए काउंसिलिंग की जरूरत होती है।

केजीएमयू रेडियोथेरेपी विभाग के डॉ. सुधीर सिंह ने कहा कि कैंसर का इलाज अधूरा छोड़ना घातक होता है। बीमारी का रूप तेजी से बिगड़ने लगता है। लिहाजा कैंसर मरीज डॉक्टर की सलाह पर पूरा इलाज कराएं। जब बीमारी बेकाबू हो जाती तो पैलेटिव केयर मरीज को राहत पहुंचाने में काफी कारगर साबित हो रही है। मरीजों को मनपसंद काम करने की सलाह दी जाती है। जैसे उन्हें गीत-संगीत, भगवान की पूजा आदि के लिए भी प्रेरित किया जाता है। इससे भी मरीज को काफी आंतरिक ताकत मिलती है। कार्यक्रम में डॉ. निशांत वर्मा, डॉ. सरिता सिंह, डॉ. आनंद मिश्र, डॉ. विजय कुमार, डॉ. समीर गुप्ता, डॉ. भूपेंद्र सिंह, डॉ. देवेंद्र सिंह, डॉ. अनुराग अग्रवाल, एनस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डॉ. जीपी सिंह, जनरल सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एए सोनकर, डॉ. अंजू अग्रवाल मौजूद रहे।

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जानिए क्या होता है पैलेटिव देखभाल

पैलेटिव देखभाल, जीवन को सीमित करने वाले रोग के साथ जीवन-यापन कर रहे मरीजों और उनके परिवार वालों के लिए एक उच्च गुणवत्ता वाली सहायता होती है। रोग की गंभीरता बढ़ने के साथ मरीजों के जीवन की गुणवत्ता बनी रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए पैलेटिव देखभाल मरीज के दर्द और लक्षणों को कम करने की कोशिश व मरीजोंं को जितना संभव हो सके उतना अच्छी तरह से जीने में सहायता करती है। इसमें मरीजों की समस्याओं का निदान शारीरिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक या सामाजिक तौर से किया जाता है। पैलैटिव देखभाल एक परिवार-केन्द्रित देखभाल होती है, जिसमें रोगी के परिवार वालों को भावनात्मक सहायता प्रदान की जा सकती है। पैलेटिव देखभाल का उद्देश्य न तो मृत्यु को निकट लाना और न ही उसे स्थगित करना होता है, बल्कि इसका ध्यान जितना हो सके उतना अच्छी तरह से और जितना संभव हो, उतना लंबा जीवन जीने के बारे में केन्द्रित रहता है।

पैलेटिव देखभाल में ये होता है शामिल

• दर्द तथा अन्य लक्षणों से राहत, उदाहरण के लिए उल्टी, सांस लेने में कठिनाई

• दवाइयों का प्रबंधन

• भोजन तथा पोषण संबंधी सलाह और सहायता

• बेहतर गतिशीलता और नींद में सहायता के लिए देखभाल और जानकारी

• भविष्य में चिकित्सकीय इलाज के निर्णयों और देखभाल के लक्ष्यों के बारे में योजना बनाना

• घर में देखभाल के लिए आवश्यक सहायकों जैसे कि उपकरण आदि संसाधन

• संवेदनात्मक मुद्दों पर बातचीत करने के लिए परिवारों को एक साथ जुटने में सहायता

• घर पर सहायता और वित्तीय सहायता जैसी अन्य सेवाओं से संपर्क करवाना

• लोगो को उनके सांस्कृतिक कर्तव्य पूरे करने में सहायता

• भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक चिंताओं से संबंधित सहायता

• रोगी को, रोगी के परिवार और देखभालकर्ताओं को काउंसिलिंग और गहरे दुःख में सहायता

• रेस्पाइट देखभाल सेवाओं के लिए रेफरल्स

• रोगी की मृत्यु हो जाने के बाद रोगी के परिवार और देखभालकर्ताओं को शोक से उबरने के लिए देखभाल