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फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष और इमरान-एर्दोगन के मंसूबे

येरूशलम स्थित अक्शा मस्जिद से शुरू हुआ फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष एक बड़े युद्ध की शक्ल अख्तियार कर सकता है। इस संघर्ष में अबतक करीब 70 लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें से ज्यादा मौतें फिलिस्तीनियों की हुई है। हालांकि फिलिस्तीन का प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन हमास ने भी इजरायल पर सैकड़ों रॉकेट दागे हैं, जिसमें 8 से 10 लोग मारे गए और कई तेल के टैंकरों में आग लग गई है।

विवाद या संघर्ष का प्रमुख कारण येरूशलम स्थित अल-अक्शा मस्जिद पर फिलिस्तीनियों का दावा है, जिसे मुस्लिम हराम अल-शरीफ कहते हैं। मुसलमान मानते हैं कि उनके पैगंबर ने एक ही रात में मक्का से लेकर अक्शा तक का सफर तय किया था। इसलिए मुसलमानों के लिए यह एक मुकद्दस जगह है। हर साल हजारों मुस्लिम इबादत के लिए यहां आते हैं। इजरायल भी इस जगह पर अपने दावे को मजबूती से बरकरार रखना चाहता है, क्योंकि यहूदियों के लिए यह जगह टेंपल माउंट है। यहूदी यह मानते हैं कि इस जगह उनके दो प्राचीन मंदिर हैं। जिनमें पहले को किंग सुलेमान ने बनवाया था और जिसे बेबीलोन्स ने तबाह कर दिया था। फिर उसी जगह यहूदियों का दूसरा मंदिर बनावाया गया जिसे रोमन साम्राज्य ने नष्ट कर दिया था। बाइबिल के अनुसार, यरूशलम में 957 ईसा पूव राजा सुलैमान के शासनकाल में मंदिर बनाया गया था। इस मंदिर को 586-587 ईसा पूर्व में बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर ने नष्ट कर दिया गया और यहूदियों को वहां से खदेड़ कर बाबुल भेज दिया। यहूदियों के लिए यह मंदिर धार्मिक विश्वासों का सबसे बड़ा प्रतीक है। इस समय यहां इजरायल का कब्जा है।

ताजा विवाद इस कारण हुआ कि फिलिस्तीनी रमजान के महीने में अल अक्शा मस्जिद में घुसना चाहते थे, वहां इबादत करना चाहते थे। जिससे इजरायली सेना से उनका संघर्ष हुआ और देखते देखते यह खूनी जंग में बदल गई। अब यह संघर्ष फिलिस्तीन-इजरायल के बीच का मामला ना रहकर मुस्लिम-यहूदी संघर्ष में बदल रहा है। इसे एक तारीखी जंग बनाने की कोशिश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान कर रहे हैं। इमरान खान ने ट्वीटर के जरिए यह ऐलान कर दिया है कि वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में फिलिस्तीनियों के साथ हर तरह से खड़े हैं। यहां तक कि इजरायल के साथ युद्ध के लिए भी। इमरान ने ट्वीटर पर लिखा- मैं पाकिस्तान का पीएम हूं और हम गाजा के साथ खड़े हैं, हम फिलिस्तीन के साथ खड़े हैं।

इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के एक नेता मुराद दास ने ट्वीट किया- यह देखकर हैरानी होती है कि इजरायल हमेशा से ही हथियारों का प्रयोग करता है, लेकिन फिलिस्तीन दशकों से पत्थर का इस्तेमाल कर रहा है। फिलिस्तीनियों के समर्थन का पैसा कहां जाता है? वे अपनी रक्षा के लिए बंदूक क्यों नहीं खरीद सकते। 2021 में भी पत्थरों का उपयोग कर रहे हैं? एक और पाकिस्तानी नेता शेख यासिर ने ट्वीट किया कि इजरायल के खिलाफ केवल बयान दिया जा रहा है। उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार इमरान और एर्दोगन ने मिलकर काम करने की कसम खाई है। पाकिस्तान में इस बात की भी चर्चा हो रही है कि क्या इस्लामाबाद को अपने मिसाइल शाहीन-2 से इजरायल पर हमला नहीं कर देना चाहिए। शाहीद-2 की रेंज 3500 किलोमीटर है, जबकि पाकिस्तान और इजरायल के बीच दूरी 3200 किलोमीटर है।

इजरायल को सबक सिखाने के इस मुहिम को तुर्की के राष्ट्रपति तईप एर्दोगन ने आगे बढ़ाया और इमरान खान के साथ फौरन टेलीफोन पर बात की। दोनों ने तय किया कि इजरायल के हमलों को मानवता और अंतर्राष्ट्रीयता का उल्लंघन मानते हुए व्यापक रणनीति बनाई जाए। जो विकल्प तैयार किए गए उनमें संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को उठाना, इजरायल के खिलाफ मुस्लिम देशों के साथ मिलकर एक अंतर्राष्ट्रीय सैन्य ताकत स्थापित करना और इजरायल को एक कड़ा सबक सीखाना, जिसमें उसपर हमले भी शामिल हो। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को फिलिस्तीनियों के प्रति मानवता का भाव रखते हुए इजरायल को एक कड़ा व मजबूत सबक देना चाहिए। एर्दोगन ने पुतिन को फोन किया और इस बात पर उन्हें राजी करने की कोशिश की कि सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई जाए और इजरायल को स्पष्ट संदेशों के साथ तुरंत फिलिस्तीनियों को अधिकार देने पर मजबूर किया जाए। एर्दोगन ने पुतिन को सुझाव भी दिया कि फिलिस्तीनियों को इजरायली हमले से बचाने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा बल भेजने पर भी विचार किया जाए।

इमरान खान ने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) और विश्व मुस्लिम लीग के सभी सदस्य देशों की एक मीटिंग बुलाने और इजरायल के खिलाफ सभी 56 मुस्लिम देशों का एक साझा मंच गठन करने की कवायदें भी शुरू कर दी हैं। यही नहीं इस मोर्चे में इजरायल के खिलाफ रूस और चीन को भी शामिल करने की कोशिशें शुरू की जा रही हैं। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से बात की तो इमरान खान ने चीन को इसके लिए तैयार करने की हामी भरी है। ईरान और इंडोनेशिया को भी इस मोर्चे में आगे आने के लिए तैयार किया गया है।

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तुर्की और पाकिस्तान के इस आक्रामक अभियान को ब्रेक संयुक्त अरब अमीरात ने लगा दिया है। येरूशलम के संघर्ष को इस्लाम और यहूदी के बीच जंग की शक्ल देने के बजाय यूएई कूटनीतिक तरीके से इसे टालने में लगा हुआ है। अमेरिका के निर्वतमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहल पर यूएई और इजरायल के बीच दोस्ती का संबंध स्थापित हुआ है। इसलिए यूएई और अन्य अरब राष्ट्र फिलिस्तीनियों के लिए समर्थन के बावजूद इमरान-एर्दोगन के अभियान का हिस्सा नहीं बनेंगे। यूएई ने यरुशलम में हिंसा की निंदा की है और इजरायल से तनाव कम करने की जिम्मेदारी लेने का भी आग्रह किया है। लेकिन इजरायल को सबक सीखाने वाली कार्रवाई से दूर रहते हुए टू स्टेट के पुराने फॉर्मूले को लागू करने पर जोर दिया है, जिसमें पूर्वी यरूशलेम के साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य बनाने का विकल्प शामिल है।

बिक्रम उपाध्याय