नई दिल्लीः पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच देश में सबसे शक्तिशाली माने जाने वाले सैन्य प्रतिष्ठान ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी सरकार को चेतावनी दी है कि ‘उन्हें अपनी राजनीति में न घसीटें, क्योंकि सेना का घरेलू राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है’। यह प्रतिक्रिया इमरान खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के मद्देनजर सूचना और प्रसारण मंत्री चौधरी फवाद हुसैन द्वारा सेना को मदद की गुहार लगाए जाने के बाद आई है। उन्होंने सैन्य प्रतिष्ठान से राजनीतिक मामलों में तटस्थ न रहने की अपील करते हुए उनकी सरकार का पक्ष लेने की बात कही थी। उन्होंने पाकिस्तानी विपक्षी दलों के संयुक्त विरोध के खिलाफ इमरान खान का समर्थन करने की गुजारिश की थी।
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डॉन ने फवाद के हवाले से कहा, “संवैधानिक योजना के तहत सेना हमेशा मौजूदा सरकार के साथ खड़ी होती है। सेना को संविधान का पालन करना होता है।” सैन्य प्रतिष्ठान ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अब इमरान खान का समर्थन नहीं कर रहा है और वह फिलहाल ‘तटस्थ’ है। चयनकर्ता (सैन्य प्रतिष्ठान) ने नए कप्तान की तलाश शुरू कर दी है। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, सैन्य प्रतिष्ठान इमरान खान के खुले दावे से नाराज हैं कि संयुक्त विपक्ष के साथ उनकी ‘बदसूरत’ लड़ाई में सेना का समर्थन है, जिसने गुरुवार रात एक नकारात्मक मोड़ ले लिया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इमरान खान के आदेश के बाद पुलिस ने जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान (जेयूआईएफ) के विपक्षी सांसदों को संसद के उस लॉज से जबरन गिरफ्तार करने की कोशिश की, जहां वे ठहरे हुए हैं।
इस कदम को रोकने के लिए, जेयूआईएफ के सुप्रीमो मौलाना फजलुर रहमान ने अपने निजी मिलिशिया अंसार-उल-इस्लाम के ‘स्वयंसेवकों’ को तैनात किया था, जो रैलियों के दौरान पार्टी नेताओं की सुरक्षा करता है, खासकर चुनावी मौसम के दौरान। जबकि सरकार ने दावा किया है कि प्रतिबंधित संगठन के ये ‘स्वयंसेवक’ सशस्त्र थे, वहीं रहमान ने कहा कि ‘इमरान खान नेशनल असेंबली के विपक्ष के सदस्यों को सत्र के दौरान उनकी संख्या कम करने के लिए गिरफ्तार करके अपहरण करना चाहते हैं, जब अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा।’ पुलिस और जेयूआईएफ के स्वयंसेवकों के बीच इस्लामाबाद में संसद लॉज के अंदर और बाहर एक तीखी लड़ाई के बाद, पुलिस समर्थकों के साथ 19 सांसदों को ‘गिरफ्तार’ करने में कामयाब रही।
कुछ तस्वीरों और वीडियो क्लिप को साझा करते हुए, दिग्गज पाकिस्तानी पत्रकार ने ट्विटर पर लिखा, “एक शब्द है: शर्मनाक। क्या संसद के निर्वाचित सदस्य के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है? इस तरह की रणनीति हमेशा उलटी पड़ती है। पीएम इमरान खान आपने बदलाव का वादा किया था, लेकिन आपकी सरकार हमारे अशांत इतिहास के बदसूरत ²श्यों को दोहरा रही है।” एकजुट विपक्ष ने देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है। रहमान ने अपने समर्थकों से कहा है कि या तो इस्लामाबाद पहुंचें या अपने शहरों में सड़कें जाम करें और इस अक्षम सरकार को लेकर अपना विरोध दर्ज कराए।
रहमान के हवाले से पाकिस्तानी मीडिया ने कहा, “हम मांग करते हैं कि हमारे एमएनए (सांसद) और अन्य को रिहा किया जाए और सरकार और पुलिस माफी मांगे। हमने युद्ध (राजनीतिक लड़ाई) की घोषणा कर दी है और इस आतंकवाद के लिए उन्हें माफ नहीं करेंगे।” पीपीपी के पूर्व चेयरमैन और पीपीपी के सह-अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी ने कहा, “कठपुतली प्रधानमंत्री इमरान खान संसद सदस्यों के बीच भय और आतंक पैदा करके उन्हें परेशान कर रहे हैं। वह पागल हो गए हैं और संसद के सदस्यों को परेशान कर रहे हैं।” इस बीच एक अनुभवी पाकिस्तानी पत्रकार नजम सेठी लिखते हैं, “इमरान खान की रणनीति हिंसक तरीकों से अपने निष्कासन का विरोध करना और सेना को फिर से हस्तक्षेपवादी राजनीति में घसीटना है। दूसरे शब्दों में कहें तो, यदि उन्हें शासन करने की अनुमति नहीं है, तो उनका पसंदीदा विकल्प देश में राजनीतिक अराजकता फैलाना है।”
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