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वेदों और पुराणों का उद्गम स्थल नैमिषारण्य धाम तीर्थ

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सनातन हिन्दू धर्म में हर किसी की इच्छा होती है कि वह एक बार चार धाम की यात्रा अवश्य करे। यही वजह है कि हर साल बड़ी संख्या में लोग चार धाम की यात्रा पर निकलते हैं। चार धाम यात्रा करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में एक ऐसा पवित्र तीर्थ स्थल है, जहां दर्शन न करने पर चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के समीप सीतापुर जनपद में गोमती नदी के किनारे यह पवित्र धार्मिक स्थल स्थित है, जिसको नैमिषारण्य या नीमसार नाम से जाना जाता है। नैमिष धाम यज्ञ अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है। नैमिषारण्य सनातन धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किमी दूर सीतापुर जिले में गोमती नदी के तट पर स्थित है। विष्णु पुराण के अनुसार यह बेहद पवित्र स्थान है। मार्कण्डेय पुराण में अनेक बार इसका उल्लेख 88,000 ऋषियों की तपोस्थली के रूप में आया है। यह वहीं स्थान हैं, जहां 88 हजार ऋषियों को वेदव्यास के शिष्य सूत ने महाभारत तथा पुराणों की कथाएं सुनाई थीं। यह भी मान्यता है कि जब ब्रम्हाजी धरती पर मानव जीवन की रचना करना चाहते थे, तब उन्होंने यह उत्तरदायित्व इस धरती की प्रथम युगल जोड़ी मनु व सतरूपा को दिया। तदनंतर मनु व सतरूपा ने नैमिषारण्य में ही 23,000 वर्षों तक साधना की थी।

नैमिषारण्य का प्रायः प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड की पुष्पिका में प्राप्त होता है। पुष्पिका में उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान सात दिनों में वाल्मीकि रचित काव्य का गायन किया। श्नेमिश् शब्द का अर्थ सुदर्शन चक्र होता है। कहा जाता है कि जिस स्थान पर सुदर्शन चक्र गिरा था, उसके चारों तरफ जंगल थे और इसे ही नैमिषारण्य कहा जाने लगा। कहा यह भी जाता है कि जिस स्थान पर चक्र पृथ्वी से टकराया, वहां पानी का झरना निकल आया। आदि शंकराचार्य ने सम्पूर्ण भारतवर्ष भ्रमण के समय नैमिषारण्य की भी यात्रा की थी। संत कवि सूरदास ने भी यहां निवास किया था। यही नहीं तामिल के वैष्णव संतों के ग्रंथों में भी नैमिषारण्य का उल्लेख मिलता है। ऋषि शौनक के प्रतिनिधित्व में संतों की धर्म सभा में महाभारत भी यहीं सुनाई गई थी। नैमिषारण्य मंदिर में भगवान विष्णु की स्वयंभू आकृति है। यह कई क्षेत्रों में भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। नैमिषारण्य का एक मुख्य आकर्षण मंदिर का तालाब है। जब आप कल्याणी या मंदिर के तालाब को देखेंगे तो यह आमतौर पर एक वर्ग के आकार का दिखेगा। दिलचस्प बात यह है कि नैमिषारण्य में चंद्र कुंड (कल्याणी) आकार में गोल है।

12 वर्ष तक तपस्या करने से मिलता है सीधे ब्रह्मलोक

सभी तीर्थ स्थानों में सबसे पहला और सबसे पवित्र होने के नाते अगर कोई यहां 12 साल तक तपस्या करता है, तो सीधे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती हैं। यात्रा पर जाने वाले नैमिषारण्य सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर जाने के समान है। यहां पर कई महापुराण लिखे गए थे और पहली बार सत्यनारायण की कथा भी यहीं हुई थी। इस धाम का वर्णन पुराणों में भी मिलता है, इसलिए नैमिषारण्य की यात्रा के बिना चार धाम की यात्रा भी अधूरी मानी जाती है। इस स्थान को नैमिषारण्य, नैमिष या नीमसार के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि एक बार असुर ऋषियों को परेशान कर रहे थे और उनकी साधना में बाधा डाल रहे थे। वे सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्होंने सूर्य की किरणों से एक चक्र बनाया। उन्होंने ऋषियों से चक्कर लगाने के लिए कहा और जहां भी यह रुकता है, वे वहां शांति से रह सकते हैं। चक्र नैमिषारण्य में रुक गया। चक्र को मनोमय चक्र कहा जाता है। चक्रतीर्थ को ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। चक्रतीर्थ में तालाब के आस-पास कई मंदिर हैं जैसे- भूतेश्वर नाथ मंदिर, श्रृंगी ऋषि मंदिर, गोकर्णनाथ मंदिर, चक्र नारायण मंदिर।

नैमिषारण्य में स्थित ललिता देवी का मंदिर शक्ति पीठों में गिना जाता है। इस मंदिर से कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। उनमें से एक के अनुसार, देवी सती ने दक्ष के यज्ञ करने के बाद योगी अग्नि मुद्रा धारण करके आग में छलांग लगा दी। इसके बाद भगवान शिव सती के शरीर को अपने कंधे पर रखते हुए तांडव नृत्य (विनाश का नृत्य) करने लगे। भगवान शिव को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने उनके शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। ऐसा कहा जाता है कि देवी सती का हृदय यहीं गिरा था और यह शक्तिपीठों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित हो गया था। नैमिषारण्य में एक विशाल वट वृक्ष या बरगद के पेड़ के नीचे महर्षि वेद व्यास ने बैठकर उन शास्त्रों को सुनाया, जिन्हें अब हम वेद, पुराण, शास्त्र आदि के रूप में जानते हैं। माना जाता है कि पुराने पेड़ों में से एक 5,000 साल से अधिक पुराना है, जो महाभारत युग या उस समय का है, जब वेद व्यास जी लेखन कार्य करते थे। यह वही वृक्ष है, जो वास्तविक व्यास गद्दी है। पेड़ आधुनिक मंदिरों से घिरा हुआ है, जिनमें से एक गद्दी जैसी सीट है। यहीं वेदव्यास ने महाभारत सहित वेदों और पुराणों की रचना की थी। वेद व्यास को समर्पित एक छोटा मंदिर है, जिसमें उनके प्रतिनिधित्व करने वाले कपड़े के त्रिकोणीय ढेर हैं। कई बोर्ड आपको इस स्थान पर यहां लिखे गए शास्त्रों के बारे में बताते हैं। तारे के आकार का एक प्राचीन यज्ञ कुंड जो अब सिरेमिक टाइलों से ढका हुआ है, देखने योग्य खूबसूरत है। यह देवताओं और योगिनियों के बैठने के स्थानों से घिरा हुआ है।

हनुमान जी की प्रतिमा है दक्षिणमुखी

पाताल लोक में अहिरावण पर अपनी जीत के बाद हनुमान जी पहले यहां प्रकट हुए थे, इसलिए यह जगह उनके भक्तों के लिए उच्च महत्व रखती है। भगवान हनुमान की पत्थर की नक्काशी वाली एक अद्भुत मूर्ति है, जिसमें भगवान राम और लक्ष्मण उनके कंधों पर बैठे हैं। मंदिर को दक्षिणेश्वर भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान हनुमान की प्रतिमा यहां दक्षिण की ओर मुख करके स्थित है। हिंदू मान्यता के अनुसार, मनु और सतरूपा मानव जाति के पहले जोड़े हैं। यहीं पर उन्होंने 23,000 वर्षों तक तपस्या की, जिसके बाद उन्हें ब्रह्मा ने अपनी संतान के रूप में आशीर्वाद दिया। असुर का वध करने हेतु इंद्र दधीचि ऋषि की हड्डियां मांगने के लिए दधीचि ऋषि के पास गए, ताकि वृत्रासुर को मारने के लिए एक हथियार तैयार किया जा सके। दधीचि ने तुरंत अपनी हड्डियों के दान की स्वीकृति दे दी और अपनी अंतिम इच्छा का उल्लेख किया कि वे मरने से पहले सभी पवित्र नदियों के दर्शन करना चाहते हैं। उनकी इच्छा पूरी करने के लिए और असुर का वध करने में समय बर्बाद ने हो, इसलिए इंद्र ने जल देवता को को निर्देशित करते हुए कहा कि नैमिषारण्य में पवित्र नदियां आकर अपना स्थान लें और भारत की समस्त पवित्र नदियों के स्नान को इस नदी के स्नान के समान महत्व दिया गया।

एक और अति प्राचीन शिवलिंग, जिसको भक्तगण बाबा भूतेश्वरनाथ के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि ये नीमसार के 33 करोड़ देवी-देवताओं और 88 हजार ऋषियों के रक्षक हैं। चक्रतीर्थ परिसर में बने इस प्राचीन बाबा भूतेश्वरनाथ महादेव मंदिर में सुबह और शाम भव्य आरती का आयोजन होता है। 108 हिंदू देवी-देवताओं को यदि आप एक ही स्थल पर देखना चाहते हैं, तो शायद इससे अच्छी कोई और जगह आपको नहीं मिलेगी। देवपुरी मंदिर के थोड़ा ही आगे श्री बांके रमण बिहारी चार धाम मंदिर है। श्री बालाजी मंदिर और श्री त्रिशक्ति धाम मंदिर नैमिषारण्य के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है। श्री बालाजी मन्दिर अभी निर्माणाधीन है और पूरा बन जाने के बाद अत्यंत उत्कृष्ट होगा, वैसे अभी आप इस मंदिर में दर्शन हेतु जा सकते हैं। इस सुंदर मंदिर को आंध प्रदेश की संस्था आन्ध्र आश्रम संस्थान ने बनवाया है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक विराट मूर्ति बनी हुई है और मां दुर्गा की भी एक बड़ी सी मूर्ति बनी है। दोनों मूर्तिया वास्तव में बेजोड़ है।

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कैसे पहुंचे नैमिषारण्य तीर्थ स्थल

नैमिषारण्य तीर्थ उत्तर प्रदेश राज्य के सीतापुर जिले में स्थित है। नीमसार सीतापुर से लगभग 35 किलोमीटर और लखनऊ से इसकी दूरी 88 किमी है। नीमसार के निकट ही हरदोई जनपद भी है, जहां से इसकी दूरी 40 किलोमीटर है।
वायु मार्ग- यदि आप वायुमार्ग से जाना चाहते हैं, तो नैमिषारण्य तीर्थ का सबसे निकटवर्ती हवाई अड्डा लखनऊ का अमौसी एयरपोर्ट है। आप सबसे पहले अमौसी एयरपोर्ट आइए, फिर वहां से आपको तमाम साधन मिल जाएंगे।
रेल मार्ग- यदि आप रेलवे मार्ग से जाना चाहते हैं, तो यहां रेलवे स्टेशन बना हुआ है। कानपुर और बालामऊ के रेलवे स्टेशन से नीमसार के लिए पैसेंजर ट्रेन उपलब्ध है, बालामऊ हरदोई से 40 किलोमीटर आगे है और बालामऊ के लिए आपको कई ट्रेन मिल जाएंगी।
सड़क मार्ग- यदि आप सड़क मार्ग से आना चाहते हैं तो आपको लखनऊ, सीतापुर, हरदोई से आपको बड़ी आसानी से साधन मिल जाएंगे।

ज्योतिप्रकाश खरे

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