उत्तर प्रदेश

आमदनी बढ़ाने का बेहतर विकल्प है ‘ऑर्गेनिक खेती’, सस्ते में इस तरह बनाई जैविक खाद

लखनऊः खेती से आजीविका चलाने के लिए पूरी जानकारी और उनका इस्तेमाल तो नहीं किया जा सकता है लेकिन आमदनी बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक जो विकल्प तलाश चुके हैं, उनको प्रयोग में लाया जा सकता है। वर्तमान में खेती करने की प्रक्रिया में कई बदलाव हुए हैं। पूर्व में खेती में किसी प्रकार के रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता था, परंतु अब अन्न की मांग बढ़ने से रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग तेजी से बढ़ गया है। इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो एक ही खेत में कम से कम दो फसलें ले रहे हैं। यह फसलें अपेक्षा के मुताबिक होती हैं। हाल में इसका चलन फिर बढ़ रहा है, जबकि इसकी तेजी से ब्रांडिंग भी हो रही है। ऑर्गेनिक खेती से बड़ी संख्या में किसानों ने दूरियां बना रखी हैं। इसका परिणाम ही है कि तमाम नई बीमारियां जन्म ले रही हैं।

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ज्यादा लाभ के लालच में लोग तमाम तरह की दवाएं भी फसलों में इस्तेमाल कर रहे हैं। आर्गेनिक खेती में जो लौकी एक माह में तैयार होने वाली होती है, उसे तीन दिन में रासायनिक उर्वरकों के जरिए तैयार किया जाने लगा है। कुछ किसान तो चोरी-छिपे इंजेक्शन का इस्तेमाल कर सब्जियों का वजन भी बढ़ाने में माहिर हैं, जबकि इनका स्वाद भी पहले की अपेक्षा मनपसंद नहीं होता है। वर्तमान में कुछ नर्सरियों और कंपनियों में ऑर्गेनिक खेती पर जोर दिया है। इसके लिए वह इसकी ब्रांडिंग भी कर रहे हैं। बाजारों में तमाम तरह के पैकेट आने लगे हैं।

क्या है ऑर्गनिक खेती

फसल उत्पादन की एक प्राचीन पद्धति में ऑर्गेनिक खेती शुमार है। इसको हम जैविक खेती नाम से भी जानते हैं। खेती करने के लिए गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसलों के अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध कुछ खनिज पदार्थों का उपयोग पोषक तत्व के लिए प्रयोग किया जाता है। ऑर्गेनिक खेती में फसलों के उत्पादन के दौरान कीटनाशक दवाओं के स्थान पर जैविक खादों का प्रयोग किया जाता है। उपज बढ़ाने के लिए वर्तमान में ऐसे खाद की मांग बढ़ने लगी है। खेती में रासायनिक खादों से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है, जबकि जैविक खाद से इसे संतुलित बनाए रखने में मदद मिलती है।

त्वरित एक्शन से बचें किसान

ऑर्गेनिक खेती के दौरान किसी प्रकार की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। यदि उपज अच्छी है या फिर खराब, इसमें पूर्व के अनुभव और वैज्ञानिकों की सलाह के साथ मिट्टी की जांच आवश्यक है। इसके लिए निजी लैब या सरकारी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की प्रयोगशाला से भी मदद ली जा सकती है।

आसान और सस्ते में बन सकती है खाद

सबसे पहले जरूरी होता है कि जैविक खाद बनाने की अच्छी जानकारी हो। जिन चीजों से लोगों की दूरियां बनती हैं, उनके पास आना होगा मतलब कि पशुओं के मल और मूत्र को संग्रहित करना होता है। फसलों के अवशेष और खेत में खड़ी कुछ फसलों को भी इसमें इस्तेमाल किया जाता है। यह खाद 4-6 माह में तैयार हो जाती है।

सड़ने से ही बनती है उपजाऊ

जैविक खाद बनाने के लिए एक गड्ढा खोद लें। इसमें एक प्लास्टिक शीट बिछा दें। इसी में सभी उन वस्तुओं को डाल दें, जिनको खाद बनाने में इस्तेमाल करना है। पूर्व में लोग बिना पॉलीथिन बिछाए गड्ढे में गोबर आदि डालते थे, इससे काफी खाद खराब हो जाती थी।

शहर में है पर्याप्त भंडार

जैविक खाद का लखनऊ शहर में पर्याप्त भंडार है। कई कंपनियों ने भी इसे अलग तरीके से तैयार करना शुरू किया है। यह कंपनियां गोबर की खाद को घोल बनाकर उसे छान लेते हैं। इसके बाद सुखाकर उसे पैकेट में बेच देते हैं, जबकि किसान गोबर को सड़ाकर उसे खेत में डालते हैं। सड़ी खाद ही अच्छी साबित होती है। इसके लिए एक साल तक नमी में रखकर इसे काली पड़ने के लिए छोड़ दें। यही अच्छी खाद जैविक खाद होगी।

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