Thursday, January 30, 2025
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeटॉप न्यूज़‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ ने बिगाड़ा चीनियों का खेल !

‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ ने बिगाड़ा चीनियों का खेल !

​नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन की सेनाओं के पीछे हटने की प्रक्रिया का पहला चरण पूरा होने के करीब है​​​।​ अगस्त, 2020 में ​छठे दौर की सैन्य वार्ता तक चीन पूरी अकड़ में रहा लेकिन सेना ​प्रमुख जनरल एमएम नरवणे की अगुवाई में चले ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ ने चीन की हर चाल को बेनकाब करके सीमा पर पासा पलट दिया।​ ​इसी का नतीजा रहा कि अगली तीन वार्ताओं में चीन को भारत से समझौता करने के लिए घुटने टेकने पड़े​​​। चीन ने अब खुद ही तंबू उखाड़े, बंकर तोड़े​ और पैंगोंन झील के दोनों किनारों को खाली करके उसे वापस अपनी हद में जाना पड़ा है​। ​​ऑपरेशन स्नो लेपर्ड ​में शामिल रहे भारतीय सेना के 37 जवानों को इस साल वीरता पुरस्कार ​भी ​दिया गया है​​​​। ​

चार चरणों में ​पूरी होनी है प्रक्रिया

भारतीय सेना ​की ओर से जारी तस्वीरों के अनुसार ​​​चीन ने पैंगोंग लेक के टकराव वाले क्षेत्र से अपने बंकरों को तोड़ दिया है। तंबू उखाड़ दिए हैं और अपनी तोपों को भी हटा दिया है।​ ​​कई चीनी सैनिक ​अपनी स्थाई चौकियों की ओर जा रहे हैं​​। पैंगोंन के दक्षिणी किनारे पर ​तैनात टैंक ​चीन ने हटा लिये हैं। यह पूरी प्रक्रिया सेना की उत्तरी कमान के उन्हीं कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी की निगरानी में चल रही है जिन्होंने ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ में अहम भूमिका निभाई थी​​।​ 10 फरवरी से शुरू हु​ई यह प्रक्रिया चार चरणों में ​पूरी होनी है​​।​ पहले चरण में टैंक-बख्तरबंद गाड़ियों की वापसी हो चुकी है​​​​।​ ​​दूसरे और ती​​सरे चरण में उत्तर एवं ​दक्षिण ​किनारों से इन्फैंट्री को ​पीछे हटाया जाएगा​​। चौथे चरण में कुछ अहम चोटियों से ​पीछे हटने की प्रक्रिया होगी।​ इसके बाद कॉर्प्स कमांडर की 10वें दौर की वार्ता होगी जिसमें गोगरा, हॉटस्प्रिंग और डेपसांग सहित अन्य टकराव वाले मुद्दों पर चर्चा की जाएगी​।​

क्या था ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’

स्नो लेपर्ड यानी बर्फीला तेंदुआ, जिसे दुर्गम स्थान और कठिन परिस्थिति में भी शिकार पर तेजी से अचूक निशाना साधने की महारथ हासिल है। भारतीय सेना ने भी जिस तरह इस ऑपरेशन को अंजाम दिया, वह किसी बर्फीले तेंदुए जैसी हरकत से कम नहीं थी।​ इस ऑपरेशन के लिए अगस्त, 2020 की शुरुआत से तैयारी की गई। सबसे पहले उन रणनीतिक पहाड़ियों की पहचान की गई जिन्हें हासिल करना था जैसे कि ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, रेजांग ला, मगर हिल, रेचिंग ला, हेलमेट टॉप। भारतीय थलसेना के प्रमुख जनरल एमएम नरवणे की अगुवाई में उत्तरी कमान के कमांडर ​लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी, कोर कमांडर हरजिंदर सिंह, डिविजनल कमांडर और वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर तैनात लोकल कमांडर, स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स की टीमों के साथ समन्वय करके इस ऑपरेशन की रणनीति बनाई गई। सैन्य वार्ताओं में चीन की अकड़ खत्म न होते देख ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ को अंतिम रूप दिया गया। इस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने की पहली शर्त यही थी कि इसकी चीनी सेना को जरा भी भनक न लग पाए।

हर चोटी पर तिरंगा फहरने के बाद लगी भनक

इस बीच चीनी सेना ने जब 29/30 अगस्त की रात में पैंगोंन झील के दक्षिणी इलाके की थाकुंग चोटी पर घुसपैठ की कोशिश की तो भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ दिया। सेना को ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ अंजाम देने का यही मौका सही लगा। इसके बाद इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए ऐसी टीम तैयार की गई जिनके पास ऊंची पहाड़ियों पर तैनाती या युद्ध लड़ने का अनुभव है। इसमें स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स की टीम को भी शामिल किया गया। इस खास टीम को दो दिन के अन्दर ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, रेजांग ला, मगर हिल, रेचिंग ला, हेलमेट टॉप को अपने नियंत्रण में लेने का टास्क दिया गया। इन चोटियों को अपने नियंत्रण में लेते वक्त सैन्य टीमों की सुरक्षा के लिए भारतीय वायुसेना के फाइटर जेट लगातार आसपास पेट्रोलिंग करते रहे। यह ऑपरेशन इतना गोपनीय रहा कि चीनियों को हर चोटी पर तिरंगा फहरने के बाद ही भनक लग सकी।

ऊंची पहाड़ियों से थी चीन पर नजर

​इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिण में करीब 60-70 किलोमीटर तक का पूरा क्षेत्र अपने अधिकार में लेकर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को चौंका दिया। चीन से 1962 के युद्ध से पहले यह पूरा इलाका भारत के ही अधिकार-क्षेत्र में था लेकिन युद्ध के दौरान रेचिन-ला और चुशुल की लड़ाई के बाद दोनों देश की सेनाएं इसके पीछे चली गई थीं और इस इलाके को पूरी तरह खाली कर दिया गया था। इसके बाद से इन पहाड़ियों पर दोनों देश अब तक सैन्य तैनाती नहीं करते रहे हैं। 1962 के बाद यह पहला मौका ​था जब भारत ने चीनियों को मात देकर पैंगोंग के दक्षिणी छोर की इन पहाड़ियों को अपने नियंत्रण में लिया।​ ऑपरेशन ​पूरा होने के बाद ​भारतीय सेना ने पैंगोंन झील के दक्षिणी और उत्तरी किनारों की ऊंची पहाड़ियों पर अपनी तैनाती बढ़ा दी जहां से चीन की गतिविधियों पर सीधी नजर रखी जा सके।

यह भी पढ़ें-पुलिस वाले ने हिंदू लड़की को अगवा कर कबूल करवाया इस्लाम, फिर किया निकाह

सीक्रेट फोर्स की थी अहम भूमिका

पूर्वी लद्दाख में चीन की साजिश का जवाब देने के लिए भारत ने सीक्रेट यूनिट ‘स्पेशल फ्रंटियर फोर्स’ को तैनात किया है। ऑपरेशन स्नो लेपर्ड में भारत की सीक्रेट यूनिट स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की अहम भूमिका थी। अभी तक भारत इस सीक्रेट यूनिट का इस्तेमाल गुपचुप तरीके से करता था, लेकिन ऑपरेशन स्नो लेपर्ड के बाद अब इस यूनिट के अस्तित्व को खुलकर गर्व के साथ स्वीकार किया है। इस ऑपरेशन में शामिल जिन 37 भारतीय जवानों को वीरता पुरस्कार दिया गया है उनमें इसी यूनिट के सेक्शन लीडर टर्सिंग नोरबू भी हैं। इसी यूनिट के सूबेदार नइमा तेंजिंग दक्षिणी पैंगोंग झील में एक लैंडमाइन की चपेट में आकर घायल हो गए थे, बाद में उनकी मौत हो गई थी। भारत ने 1962 में चीन युद्ध के बाद इस फोर्स का गठन किया था। इस यूनिट में वह तिब्बती शामिल हैं जो अपने देश से निर्वासित होकर भारत में रह रहे हैं। यह यूनिट पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध, करगिल युद्ध समेत कई ऑपरेशन में भी हिस्सा ले चुकी है।

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें