लखनऊः कई विटामिन के साथ ही प्रचुर मात्रा में पाये जाने के कारण प्याज सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इसके साथ ही रबी की खेती के रूप में प्याज उत्तम खेती मानी जाती है। अब किसान इसकी रोपाई करने में जुटे हुए हैं। यदि इसकी खेती सही ढंग से की जाए तो किसानों की आय बढ़ाने में काफी सहायक है। इसका औसत उत्पादन 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। इस माह में रोपी गयी प्याज मार्च-अप्रैल में तैयार हो जाएगी। ज्यादातर किसान हरी मटर तोड़ने के बाद उसमें प्याज की रोपाई करते हैं। इसकी रोपाई से पहले खेत की तैयारी के साथ ही रोग मुक्त रखने के लिए सावधानी जरूरी है।
इस संबंध में उद्यान विभाग के उपनिदेशक अनीस श्रीवास्तव का कहना है कि प्याज की खेती करते समय मिट्टी की जांच जरूर करा लेनी चाहिए। इससे उर्वरक की मात्रा कितनी डालनी है। यह किसान को पता चल जाएगा। इसके साथ ही रोगों से बचाव रोगों से बचाव के लिए बीज और पौधशाला की मिट्टी को कवक नाशी या थीरम आदि से उपचारित कर लेना चाहिए। बीज और पौधशाला को ट्राइकोडर्मा भी उपचारित किया जा सकता है। रोपाई से पूर्व पौधों की जड़ों को कार्बेंडाजिम 9 प्रतिशत से या अन्य किसी उपाचारित करने वाली दवा के घोल में डूबा देना चाहिए। उन्होंने बताया कि एक हेक्टेयर खेत में 20-25 तक गोबर की खाद रोपाई से एक माह पूर्व ही खेत में मिला देना चाहिए।
अच्छे उत्पाद के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और ६0 किग्रा पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। गंधक और जिंक की कमी होने पर ही उपयोग करें। उन्होंने बताया कि बाजार में प्याज की तमाम वेराईटी उपलब्ध हैं। अपनी मिट्टी के अनुसार किसानों को बीज का चयन करना उपयुक्त होगा। इसके लिए जीवांशयुक्त हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। अधिक अम्लीय मिट्टी सर्वथा अनुपयुक्त है। जमीन की जुताई अच्छी के साथ-साथ खाद एवं उर्वरक जुताई के समय डालकर अच्छी तरह मिला दिया जाय। मिलाने के बाद पाटा देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्याज एक ऐसी फसल है, जिसमें बिचड़े की रोपनी के बाद यानि जब पौधे स्थिर हो जाते हैं तब इसमें निकौनी एवं सिंचाई की आवश्यकता पड़ती रहती है। इस फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी जड़ें 15-20 सेमी सतह पफ फैलती है। इसमें पांच दिनों के अंतराल पर सिंचाई चाहिए। इस फसल में 12-14 सिंचाई देना चाहिए। अधिक गहरी सिंचाई हानिकारक है। पानी की कमी से खेतों में दरार न बन पाये। आरम्भ में 10-12 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें। पुनः गर्मी आने पर 5-7 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्याज को आंगमारी रोग से पत्ते पर भूरे धब्बे बाद में पत्ते सूख जाते हैं। इसके लिए 0.15 प्रतिशत डायथेन जेड-78 का छिड़काव करें। इसमें मृदुरोमिल फफूंदी रोग भी हानिकारक होते हैं।
यह भी पढ़ेंःडकैती डालने जा रहे बदमाशों की पुलिस से मुठभेड़, 2 घायल, नौ बदमाश गिरफ्तार
पत्ते पहले पीले, हरे और लम्बे हो जाते हैं तथा उन पत्तों पर गोलाकार धब्बे दिखाई पड़ते हैं। बाद में ये पत्ते मुड़ने और सूखने लगते हैं। इसके लिए 0.35 प्रतिशत ताम्बा जनित फफूंदी नाशक दवा का छिड़काव करें। इसके प्रकोप होने पर शल्क गलकर गिरने लगते हैं। इसकी रोकथाम के लिए फसल को कीड़े और नमी से बचाना चाहिए। इसके साथ ही थ्रिप्स रोग के लिए कीटनाशी दवा (मालाथियान) का छिड़काव करें।