सनातनियों की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है बाबा विश्वनाथ की नगरी ‘वाराणसी’

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वाराणसीः देश के प्रमुख शहर वाराणसी का जन्मदिन सोमवार को मनाया जा रहा है। बाबा विश्वनाथ की नगरी के जन्मदिन को लेकर सोशल मीडिया में भी लोग उत्साहित हैं। कोरोना संक्रमण काल में लोग शहर के प्राचीनतम होने का स्कंद पुराण, काशी खंड में लिखे तथ्यों को भी लगातार शेयर कर रहे हैं। ऐसा करते समय नगर के प्राचीन नाम ‘विश्वनाथ’ का जिक्र किया जा रहा है। हजारों साल पुराने शहर को 24 मई 1956 को आधिकारिक तौर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद ने मान्यता प्रदान की थी। गजट के अनुसार वाराणसी का आज 65वां स्थापना दिवस है। वाराणसी गजेटियर, 1965 में प्रकाशित किया गया था, उसके दसवें पृष्ठ पर जिले का प्रशासनिक नाम वाराणसी किये जाने की तिथि अंकित है।

स्वतंत्रता के बाद प्रशासनिक तौर पर ‘वाराणसी’ नाम की स्वीकार्यता राज्य सरकार की संस्तुति से इसी दिन की गई थी। सरकारी गजट में वाराणसी की उम्र भले ही 65 वर्ष है। लेकिन शहर का इतिहास हजारों साल पुराना है। बाबा की नगरी का जिक्र पद्यपुराण और मत्स्यपुराण में है। इसमें शहर के दक्षिण-उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी का जिक्र है। स्कंद पुराण के काशी खंड में भी इसका उल्लेख है। काशी सुमेरू पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती बताते हैं कि शहर पांच हजार साल से अधिक पुराना है। पुराणों में इसे मोक्ष की नगरी कहा गया है। अनादि काल ये सनातनी बाबा विश्वनाथ के शहर में मोक्ष पाने आते हैं। काशी विश्वनाथ, विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा बताते हुए कहा गया है कि जहां यह विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग अवस्थित है, यह पावन नगरी ही जीव को मुक्ति प्रदान करने वाली है। महादेव स्वयं यहां मृत्यु प्राप्त करने वाले जीव के अंत काल में तारक मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे जीव को मुक्ति प्राप्त होती है। स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि सृष्टि की आदि स्थली भी इसी नगरी को माना गया है। ये पावन नगरी प्रलय काल में भी नष्ट नहीं होती है। उस समय भगवान शंकर इसे स्वयं अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि मत्स्यपुराण में काशी की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है कि जप, ध्यान, ज्ञान रहित और दुखी मनुष्य के लिए एकमात्र काशी में परमगति सुलभ है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि काशी कितनी पुरानी है। काशी महर्षि अगस्त्य, भगवान धन्वंतरि, गौतम बुद्ध, संत कबीर, अघोराचार्य बाबा कानीराम, रानी लक्ष्मीबाई, पाणिनी, पार्श्वनाथ, पतंजलि, संत रैदास, स्वामी रामानन्दाचार्य, वल्लभाचार्य, शंकराचार्य, गोस्वामी तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास की जन्म और कर्मस्थली रही है।

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गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस यहीं लिखा था। गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन काशी के ही पास सारनाथ में दिया था। स्वामी नरेन्द्रानंद ने बताया कि वाराणसी या बनारस नाम दो नदियों वरुणा नदी एवं असि नदी के नाम से मिलकर बना है। काशी को अविमुक्त क्षेत्र, आनंद-कानन, महाश्मशान, सुरंधन, ब्रह्मावर्त, सुदर्शन, रम्य, एवं काशी नाम से भी संबोधित किया जाता रहा है। ऋग्वेद में शहर को काशी या कासी नाम से बुलाया गया है। उन्होंने बताया कि काशी शब्द सबसे पहले अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा से आया है इसके बाद शतपथ में भी इसका उल्लेख है। स्कंद पुराण के काशी खण्ड में नगर की महिमा 15 हजार श्लोकों में कही गई है। काशी नगर की स्थापना भगवान शिव ने लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व की थी। ये शहर सनातनियों की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। बताते चलें कि अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने भी लिखा है कि बनारस इतिहास से भी पुरातन है। अति प्राचीन उपनिषद जाबालोपनिषद में काशी को अविमुक्त नगर कहा गया है।