Gandhi Jayanti Speech: अहिंसा के पुजारी थे महात्मा गांधी, जब उनकी आवाज से डरे अंग्रेज..

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नई दिल्लीः भारत के इतिहास में 02 अक्टूबर की तारीख का खास महत्व है। यह तारीख देश के दो महान विभूतियों के जन्मदिन के तौर पर इतिहास के पन्नों में दर्ज है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 02 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर में हुआ था। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 02 अक्टूबर, 1904 को हुआ था। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।

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13 साल की आयु में हो गई थी शादी

महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में बताया है कि बचपन में परिवार और मां के धार्मिक होने का उन पर गहरा असर पड़ा। शुरुआती पढ़ाई पोरबंदर में हुई और फिर राजकोट में। 1883 में 13 साल की उम्र में कस्तूरबा से शादी हो गई। 1888 में वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए। लौटकर बंबई में वकालत शुरू की, लेकिन चली नहीं। इसी दौरान 1893 में गुजराती व्यापारी शेख अब्दुल्ला के बुलावे पर दक्षिण अफ्रीका गए और वहीं के हो गए। डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे, तब फर्स्ट क्लास का टिकट होने के बावजूद एक गोरे ने उन्हें रात को ट्रेन से उतार दिया। स्टेशन पर रात बितानी पड़ी। इसने उन्हें भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा दी।

दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने प्रवासी भारतीयों के अधिकारों और रंगभेद नीति के खिलाफ सफल आंदोलन किए। तब तक उनकी ख्याति भारत पहुंच चुकी थी। 1915 में जब भारत लौटे, तो बंबई में स्वागत करने कई कांग्रेस नेता पहुंचे। गोपालकृष्ण गोखले भी इनमें से एक थे। गोखले को गांधीजी का राजनीतिक गुरु कहा जाता है। गोखले की सलाह पर ही गांधीजी ने देश का भ्रमण किया। 1917 में चंपारण से नील आंदोलन की शुरुआत की और सफलता मिली। इसने गांधीजी की लोकप्रियता कई गुना बढ़ा दी। 1918 में उन्होंने खेड़ा (गुजरात) आंदोलन का नेतृत्व किया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद अंग्रेजों से मिले पुरस्कार लौटाएं

बाल गंगाधर तिलक के निधन के बाद गांधी कांग्रेस के बड़े नेता माने जाते थे। 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने अंग्रेजों से मिले सभी पुरस्कार लौटा दिए। रौलेट एक्ट के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। 1930 में गांधीजी ने दांडी मार्च किया। इसके बाद नमक सत्याग्रह किया। राजनीति से दूर होने के बाद भी वे 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए। इस दौरान आजाद हिंद फौज की सक्रियता, नौसेना विद्रोह और दूसरे विश्वयुद्ध से बने हालात को देखते हुए अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का मन बना लिया था।

इस बीच, 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। हालांकि, बंटवारा हुआ और भारत-पाकिस्तान दो देश बने। महात्मा गांधी के विचारों में सबसे ताकतवर था अहिंसा का विचार। इस विचार को दुनिया के कई देशों में क्रांति और विरोध का हथियार बनाया गया। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव पारित कर 02 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाने का फैसला किया था।

जब गांधी की आवाज से जब डरे अंग्रेज..

दरअसल गांधी अपने समय के सबसे बड़े ब्रैंड थे। सिर्फ भारत में नहीं, पूरी दुनिया में। वह ब्रैंड न सिर्फ उनके विचारों का था, बल्कि जीवन-शैली का भी था। जब मीडिया के सभी साधन गांधी के उस अद्भुत ब्रैंड का फायदा उठा रहे थे, तब ग्रामोफोन कैसे अछूता रह पाता उससे। गांधीजी के 1931 के लंदन-प्रवास की मेजबान मुरिएल लेस्टर अपने संस्मरण में लिखती हैं कि तमाम ग्रामोफोन कंपनियां उनसे आग्रह कर रही थीं कि गांधीजी की आवाज रेकॉर्ड करने की अनुमति दिलवा दें। अंत में कोलंबिया ग्रामोफोन कंपनी के लिए रेकॉर्डिंग करने के लिए महात्मा गांधी राजी हो गए। रेकॉर्ड का कंटेंट क्या हो, यह बड़ा सवाल था। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि वह किसी राजनीतिक विषय पर नहीं, ईश्वर की अवधारणा पर बोलेंगे। लगभग साढ़े छह मिनट की रेकॉर्डिंग के लिए गांधीजी को कहा गया।

एक तरफ भारत में ब्रिटिश हुकूमत इस रेकॉर्ड को लेकर ऊहापोह में थी, तो दूसरी तरफ पूरी दुनिया में वह रेकॉर्ड धूम मचा रहा था। मार्च, 1932 के अंक में अमेरिका से निकलने वाली ‘डिस्क’ पत्रिका ने महात्मा गांधी के उस रेकॉर्ड की खूब तारीफ की और कहा कि यह रेकॉर्ड गांधीजी की उस काबिलियत की तस्दीक करता है कि क्यों सारी दुनिया उनकी आवाज़ से आंदोलित हो उठती है। सचमुच, गांधीजी ने अपने चमत्कारी स्पर्श से साधारण-सी दिखने वाली चीजों को भी ब्रिटिश हुकूमत के लिए एक चुनौती बना दिया- चाहे वह चरखा हो या ग्रामोफोन रेकॉर्ड।

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